कुंभ में टूटते सभी नियम, कैसे होगा देश में कोरोना के प्रसार पर नियंत्रण।
मरकज और जमाती के नाम पर चिल्लाने वाली मीडिया अब बोलती बंद?
आस्था की भारी कीमत आने वाले वक्त में देश को चुकानी पड़ सकती, इससे अछूते हिंदू भी नहीं रहेंगे।
गंगा पहले ही इंसान की गंदगी ढो-ढोकर मैली हो चुकी है, उसे अब कोरोना वायरस के प्रसार का माध्यम बनाकर क्या इंसान सही कर रहा है?
भारत, दुनिया के सर्वाधिक कोरोना प्रभावित देशों में से एक।
एक रावत ने सख्त नियम बनाए दूसरे ने आते ही उनको तोड़ दिया आखिर क्यों?
भारत में इस भयावह समय में महाकुंभ का आयोजन बदस्तूर हो रहा है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने तो कुंभ मेले का आयोजन रद्द करने की अपील की थी।

अशोक कुमार कौशिक 

हजारो साल से पतितपावनी गंगा हिंदुओ के पाप धोते आ रही है और आज भी धो रही है। तो सवाल खड़ा होता है की क्या हिन्दू पापी है ? 

ये मैं नही कहता ये तो राज़ कपूर ने कहा था “राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते धोते। ” तो मित्रो गंगा माँ ने किसे बुलाया था और कौन दौड़े दौड़े आया था । अब माँ गंगा ने तो पापी की पाप धोने के लिए बुलाया था । पर पापियो को इतना समय नही की अपने पाप धोने के लिए माँ गंगा में एक भी डुबकी लगा ले। सुना आपने, देखा आपने, फर्जी हिंदुओ ने गंगा में डुबकी लगाई हो ।तो माँ गंगा का लाडला बेटा कोरोना पापी नही है। बस कोरोना का दत्तक बेटा और उसके भ्राताश्री पुण्यात्मा है। जब तक धरा पर है आपको माँ गंगा में गोते खिलाते रहेंगे।  

“दो ग़ज़ की दूरी मास्क है जरूरी ” पर केवल ये उन पर ही लागू होता है जिस से कोरोना नफरत करता है और उनका मुँह देखना पसंद नही करता। बाकी सब पतितपावनी माँ गंगा की असीम अनुकम्पा है। नंगे नहाओ ,चड्डी पहन के नहाओ,  मास्क ज़रूरी नही क्योकि माँ ने बुलाया है। कोरोना को नही बुलाया क्योकि वो पापी नही है वो आया तो ढोल, तासे ,नगाड़ो के साथ थाली और ताली भी बजी । दीप जला कर उसके आगमन पर दीपावली भी मनाई। महीने भर तक घर में कैद रहे पर यह ससुरा करोना फिर भी नहीं गया? 

पूरी दुनिया पिछले एक साल से भी अधिक समय से कोरोना के ख़ौफ़ में जी रही है। भारत, दुनिया के सर्वाधिक कोरोना प्रभावित देशों में से एक है और इसकी दूसरी लहर तो देश पर बहुत भारी पड़ती दिख रही है। अब देश में रोज़ाना एक-डेढ़ लाख मामले सामने आ रहे हैं। अस्पतालों के बाहर मरीजों की कतारें देख कर समझा जा सकता है कि पिछले एक साल में सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी के लिए कोई ख़ास मेहनत नहीं की। 

कोरोना के कारण दुनिया भर में कई जरूरी आयोजन या तो रद्द हो गए हैं, या स्थगित कर दिए गए हैं या वर्चुअली आयोजित हो रहे हैं। लेकिन भारत में इस भयावह समय में महाकुंभ का आयोजन बदस्तूर हो रहा है। इसे बीमारी पर आस्था भारी जैसी चुपड़ी बातों से उपेक्षित नहीं किया जा सकता, क्योंकि इस आस्था की भारी कीमत आने वाले वक्त में देश को चुकानी पड़ सकती है।

उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने महामारी के बीच कुंभ के आयोजन को लेकर कुछ सख़्त नियम बनाए थे और उम्मीद की जा रही थी कि इस सख़्ती के कारण भीड़ काबू में रहेगी और बीमारी भी। लेकिन नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पद संभालते ही पिछले मुख्यमंत्री के कई फ़ैसलों को बदल दिया और कुंभ को लेकर लगाई गई कई बंदिशें हटा दी गईं।

पिछले कई दिनों से हरिद्वार में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ रही थी और सोमवार को सोमवती अमावस्या के मौके पर गंगा नदी में स्नान के लिए हज़ारों की संख्या की में लोग इकठ्ठा हुए। पौराणिक मान्यता है कि गंगा नदी में सारे पाप धुल जाते हैं, मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन इस बार तो ये डर लग रहा है कि कहीं यहां बीमारी की प्राप्ति न हो जाए। श्रद्धालुओं ने अपने पाप धोने के लिए डुबकी तो लगा ली, लेकिन बहुत से लोगों के लिए ख़तरा भी उस पानी में छोड़ दिया। गंगा नदी पहले ही इंसान की गंदगी ढो-ढोकर मैली हो चुकी है, उसे अब कोरोना वायरस के प्रसार का माध्यम बनाकर क्या इंसान सही कर रहा है, इस दृष्टि से भी विचार करने की ज़रूरत है।

सत्ता के लिए यह बहुत सुविधाजनक होता है कि जनता उससे सवाल न पूछे और किसी न किसी बात में मसरूफ़ रही आए। धर्म और आस्था में लोगों को उलझा कर बेहद आसान काम है। अभी जनता ये देखकर भले खुश हो जाए कि देश के कई हिस्सों में महामारी के कारण बहुत सी पाबंदियां लगाई जा रही हैं, लेकिन कुंभ को लेकर उसकी धार्मिक मान्यताओं के पालन में कोई पाबंदी नहीं है। पर यहीं उसे यह विचार करने की भी जरूरत है कि आखिर इस ढील का क्या नुक़सान उसे और पूरे समाज को भुगतना पड़ेगा। प्रशासन ने तो सोमवार की भीड़ के बाद कह दिया कि भारी संख्या में लोगों के इकठ्ठा होने से पुलिस को कोरोना के कारण लगाई पाबंदियों का पालन करने में मुश्किलें पेश आ रही है। अगर पुलिस जबरन लोगों को घाटों पर सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों का पालन करने के लिए कहती भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो सकती थी।

गौरतलब है कि कुंभ मेले से पहले सरकार ने कहा था कि मेले में उन्हीं को आने की अनुमति दी जाएगी जिनकी कोविड-19 रिपोर्ट नेगेटिव होगी और मेले में शिरकत करने वालों को कोरोना के कारण लागू किए गए सभी दिशानिर्देशों का पालन करना पड़ेगा। लेकिन मेले में आए कई साधु-संतों समेत कई लोग कोरोना पॉज़िटिव पाए गए हैं। सोमवार को हुए गंगास्नान के बाद चिंता जताई जा रही है कोरोना संक्रमण श्रद्धालुओं के बीच तेजी से फैल सकता है और ये भी संभव है कि वायरस यहां से लौटने वाले श्रद्धालुओं के साथ उनके गांवों और शहरों तक पहुंचे। 
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने तो कुंभ मेले का आयोजन रद्द करने की अपील की थी। तब सरकार ने सभी दिशानिर्देशों के पालन की बात कही थी। पर अब साफ़ दिख रहा है कि सरकार न तो दिशानिर्देशों का पालन करवा पा रही है, न अपनी ज़िम्मेदारी निभा पा रही है। इसलिए बेहतर है लोग खुद अपना ख्याल रखें।

अब यहां सवाल देश की राष्ट्रीय मीडिया के ऊपर भी खड़ा होता है देश में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने वाली मीडिया अब इस खतरे के प्रति मौन क्यों है? कभी मरकज और जमातीयो का होव्वा दिखा देश को भ्रमाने वाली मीडिया की चुप्पी क्या यह इशारा नहीं कर रही कि वह अपने दायित्व से कोसों दूर हो गया। कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों को दरकिनार करके कुंभ के आयोजन पर राष्ट्रीय मीडिया की चुप्पी बहुत बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही है।

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