ना ताली काम आई ना थाली, दिए भी अंधेरे को कम न कर पाए।
पुलिस वाले पिछवाड़ा लाल करने में पीछे नहीं रहते।
दोनों डोज लगने के बाद डॉक्टर पॉजिटिव हो वेंटिलेटर पर।
आखिर आज जो महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब सहित अन्य जगहों पर हाहाकार मचा है उसका जिम्मेदार कौन ?
हमने और सरकार ने पिछले एक वर्ष में क्या सीखा, यह सबसे बड़ा सवाल है।
18 साल से एक आदमी मुख्यमंत्री और लगातार दूसरी बार पीएम रहेगा तो आप और क्या उम्मीद करेंगे ।
प्रधानमंत्री रैली में मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर कुछ नहीं बोलते।

अशोक कुमार कौशिक

 कोरोना के बारे में किसी को कुछ नही पता, दावे कोई कितने भी कर ले, हम तो साल भर से डब्ल्यूएचओ, वायरोलॉजिस्ट, बड़े बड़े डॉक्टर्स वगैरह की बातों का खंडन ही होते देखता आ रही है। ये लोग अपनी ही बात पर नही टिकते। तुर्रा ये है कि रिसर्च चल रही । तो सबको ही सोचने समझने का मौका दो। WHO का एक नमूना बोलेगा की आँख में पट्टी  बांध लो, फिर सरकार पुलिस को लगा देगी की सड़क पर जिसने आँख में पट्टी नही बांधी पिछवाड़ा लाल कर दो। पुलिस अपने विवेक को घर मे छोड़ती है और दूसरे के आदेश को सर पर बैठा कर नँगा नाच दिखाती है।

कुछ दिन बाद फिर एक नमूना कहता है कि आँख में नही कान में पट्टी बाँधने से अधिक लाभ है, फिर वही कहानी शुरू। खैर कोरोना को फैलाने में चीन की कोई साजिश है, इसपर भी दावा नही किया जा सकता। पहली लहर मे वुहान के अलावा भी चीन के और शहरों में था।बहुत दिन तक तो चीन की सरकार भी समझ नही पाई।इज़राइल अमेरिका चीन के संयुक्त सैन्य अभ्यास से सबसे पहले कोरोना फैला इससे भी इंकार नही किया जा सकता है, लेकिन ये सब एक दूसरे पर आरोप मढ़ने जैसा है। इसलिए आप दावा नही कर सकते कि कैसे आया, कारण क्या था

कोरोना से मौतें हो रही हैं पहली लहर में भी दूसरी में भी, मरने वालों में बच्चे बूढ़े जवान सब है। अच्छी अच्छी इम्युनिटी वाले भी पॉज़िटिव हो रहे है चाहे वो फेडरर जैसे प्लेयर हो या किसान। एक थोड़े गंभीर कोरोना पेशंट का भी xray और HRCT Thorax में लंग्स में दिक्कत दिखने लगती है इसलिए इसे यूँ ही फ़र्ज़ी नही कह सकते और न ही नॉर्मल फ्लू।

इसकी अभी तक कोई दवा नही बनी है, शुरु में कहा हाइड्रोक्लोरोक्वीन दवा सही है,अमेरिका तक झंडे गाड़े जा रहे थे, बाद में वो बकवास निकली। फिर Ivermecitin को रामबाण बताया पर वो भी कारगर नही रही। बाक़ी काढ़ा वाढ़ा सब बेकार है, बहुत ज़्यादा काढ़े से लोगो ने अपने पेट की दिक्कतों को बढ़ा लिया। किसी चीज़ का कोई सटीक तर्क नही दे पा रहे है बस रिसर्च के लिये रिकार्ड रखा जा रहा है इसका असर हो रहा है या नही।

सिम्पटम्स से आप कोरोना का पता लगाने में कन्फ्यूज हो सकते है। किसी को फ़ीवर नही आता, सिर्फ खाँसी आती है फिर भी वो पॉज़िटिव हो सकता है। किसी कोई सिम्पटम्स नही है फिर भी पॉज़िटिव हो सकता है। कोई पॉज़िटिव होकर निगेटिव हो जाता है और उसे पता भी नही लगता। किसी के फ़ीवर 103 तक पहुँच जाता है, उल्टी होती है, डायरिया होता है, स्किन पर रैशेज पड़ते है, धुंधला दिखता है, बोलने सुनने सूंघने में दिक्कत होती है, खाने में स्वाद पता नही चलता, सांस लेने के दिक्कत होती है, गला चोक होता है, सूजन आ जाती है, पैरों में दर्द होता है, कंपकपी के साथ फ़ीवर आता है, याद करने में दिक्क्त होती है।

इसके टेस्ट में भी आप उलझ सकते है, कहिये तीन बार टेस्ट में नेगेटिव आये फिर पॉज़िटिव आ जाये, हो सकता है आज पॉज़िटिव आये दो दिन बाद निगेटिव हो जायेट्रूनेट में नेगेटिव हो RTPCR में पॉज़िटिव आये, कई बार उल्टा भी हो जाता है। एक पॉज़िटिव पेशंट्स कहिये आपके साथ पूरा दिन घूमे फिरे आप पॉज़िटिव न हो, और ये भी हो सकता है कि बाहर निकलने भर से पॉज़िटिव हो जाये, ये वैल्यू पर डिपेंड है। ठंड देशो में गर्म देशो में कैसे काम कर रहा इसका कोई सटीक आंकड़ा बन नही पा रहा।

चीन में आँकड़ा कैसे कम हो गया पहली लहर में अमेरिका में कैसे कम नही हो रहा था और दूसरी लहर में एकदम उल्टा ही असर इन सबकी कोई सटीक जानकारी नहीं है। मुंबई के घने और पिछड़े इलाके धारावी में जब कोरोना फैला तो लोगो ने कहा तबाही का जाएगी पर वहाँ दस दिन में कोरोना खत्म हो गया जबकि उसके बाद दो महीने तक कोरोना आफत मचाता रहा तो क्या आप सोशल डिस्टेंसिंग पर दावा कर सकते है? कोरोना से बचाव ही इसका सबसे सटीक इलाज है ये कुछ देशों में गलत साबित हो रहा।

कोरोना कब तक रहेगा इसकी जानकारी किसी के पास नही है। वायरोलॉजिस्ट ने कहा था ठंड में बढ़ेगा पर हुआ उसका उल्टा। थाली दीया पुष्पवर्षा म्यूज़िक वग़ैरह जनता को बहकाने के अलावा कुछ नही था। वो 12 घण्टे में चेन तोड़ने वाला बेवकुफयाना हुआ था वो ग़ज़ब था, पहले कहा कि 24 घण्टे घर मे रहेंगे तो वायरस खत्म हो जाएगा। 35 डिग्री टेम्परेचर आएगा तो वायरस कमज़ोर हो जाएगा जबकि गर्मी में तो और तेज़ बढ़ा। जाँचे कम ज़्यादा सरकार अपनी सफलता विफलता के हिसाब से हुई। कभी N95 मास्क कर्ण का कवच कुंडल था कभी एकदम बेकार हो गया।

वैक्सीन को लेकर तो वो माहौल बनाया गया कि मानो साउथ की फिल्मो के हीरो की इंट्री हो रही हो। किसी को दोनो डोज़ लग चुकी है, महीना भर हो रहा, और वह विश्वास से कह सकता है पानी लगा दिया है। अभी कुछ दिन पहले दोनो डोज़ के महीने भर बाद दो डॉक्टर वेंटिलेटर पर चले गए। अभी 2 दिन पहले ही दिल्ली में सर गंगा राम अस्पताल ऑल इंडिया मेडिकल में 35 के करीब डॉक्टर दोनों डोज लगने के बाद पॉजिटिव हो गए। हरियाणा में कोवीड वैक्सीन की दूसरी खुराक लगने के बाद भी नूंह के सिविल सर्जन डॉ सुरेंद्र कुमार कोरोना पॉजिटिव हुए। जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ बसंत दुबे को भी दो इंजेक्शन लगने पर कोरोना पॉजिटिव हुए।

पहले कहा कि वैक्सीन के बाद पॉज़िटिव नहीं होंगे। लेकिन जब पॉज़िटिव होने लगे तो कहने लगे कि डोज़ के 13 दिन बाद असर होता है। एक महीने बाद जब पॉज़िटिव होने लगे तो कहने लगे कि 70 प्रतिशत कारगर है । जब दोनो डोज़ के बाद कई लोग पॉज़िटिव होने लगे तो कहने लगे कि पॉज़िटिव तो हो सकते है पर गांभीर रूप से बीमार नही होंगे। अब खबर आ रही कि कोविशील्ड के नुकसान है।

किसी के पास इसबात का सटीक जवाब नही की चीन में क्यो इसका असर कम है, क्यो नागपुर में अधिक है, क्यो बंगाल में इतनी रैली के बावजूद कम है? किसी को ये नही पता कि ये गर्म ठंड बरसात कब कैसे किस कारण से बढ़ता है। पहली लहर कम क्यो हो गई थी? वायरस कमज़ोर पड़ा था तो ये वायरस कब तक कमज़ोर होगा?

आ रहे हैं मेल और व्हाट्सएप पर यह संदेश
RxRemdesivir 200mg – 5 InjectionRantaz 4.5 – 2 InjectionEnoxaparin – 2 Injection
भैया, दादा प्लीज कही से भी इंतजाम करवा दें, जो भी रुपये होंगे दे दूंगा। इस तरह के संदेश, डाक्टर के लिखें पर्चे, स्कैन किये हुए मेल बहुत आ रहें है। शाजापुर, बड़नगर, खरगोन, सीहोर, महू, नेमावर, खातेगांव, होशंगाबाद, बैतूल, ग्वालियर, भिंड, भिलाई, मुरैना, रतलाम, नीमच, मन्दसौर, जबलपुर, छिंदवाड़ा, मंडला, उज्जैन, देवास से लेकर भोपाल तक से लोग अपने मित्रों परिजनों को फोन कर रहें है । अफसोस यह है कि अस्पतालों की अव्यवस्था बरकरार है हर जगह। उन सभी शहरों में तांडव और कहर है कोरोना का जहाँ पिछले वर्ष भयावह था। अस्पताल, डॉक्टर्स, निजी अस्पताल, जाँच, मरीज़ो के लिये परिवहन, दवाईयां, मरने पर लाश ढोने और जलाने और दफनाने की कोई माकूल व्यवस्था जैसी व्यवस्थाएं बदहाल है और सुधर नही पा रही है।

क्या रेमडेसिवर कोरोना रोगियों के लिए संजीवनी है?

मीडिया पर खबरे और उनके साथ विज़ुअल बार बार दिखाए जा रहे हैं। जिसमें लोगों की लंबी कतार है जो अपने रिश्तेदारों के लिए रेमडेसिवर लेने के लिए खड़े हैं। इस खबर से आम लोगों के ज़हन में यह बात घर कर जाती है कि यही दवाई है बस इस रोग के ख़िलाफ़ और इसे शरीर में डालते ही कोरोना बाहर हो जाता होगा। शरीर में या तो कोरोना रहता है या फिर रेमडेसिवर। लेकिन यह महज़ एक खबर है। खबर अच्छी है लेकिन यह कोई पक्का इलाज भी है ऐसा बिल्कुल नहीं है।

मैं आपको रेमडेसिवर पर हुए एक शोध के बारे में बताना चाहता हूं- ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ के अक्टूबर 2020 के अंक में एक शोध प्रकाशित हुआ था। जिसमें शोधकर्ताओं ने कोरोना रोगियों को रेमडेसिवर और प्लासबो (छद्म दवाई जैसे पानी के इंजेक्शन आदि) दिया यह देखने के लिए कि इससे रिकवरी में कितना अंतर आता है। उन्होंने पाया कि पानी का इंजेक्शन जिन रोगियों को दिया वे 15 दिन में अस्पताल से डिस्चार्ज हुए जबकि रेमडेसिवर दवाई जिन्हें दी गई वे 10 दिन में डिस्चार्ज हुए। मोर्टेलिटी रेट प्लासबो लेने वालों में 15% थी तो रेमडेसिवर लेने वालों में यह महज 4% ही कम थी यानी 11%। ज़ाहिर है कि रेमडेसिवर के यह कोई बहुत चमत्कारी परिणाम नहीं है। 

यदि रेमडेसिवर की तुलना में प्लासबो की जगह कोई दूसरी दवाई जैसे सामान्य निमोनिया में दी जाने वाली एंटीबायोटिक या कोई फ़ेफ़डों के रोगों में दी जाने वाली हर्बल दवाई होती तो हो सकता था कि वह रेमडेसिवर से ज़्यादा बेहतर नतीज़े देती लेकिन चतुर व्यापारी ऐसा भला क्यों करेंगे। एक मूल बात हम सब याद रखें कि रेमडेसिवर या अन्य कोई भी दवाई एक प्रोडक्ट है, उसे बनाने वाली कंपनियां व्यापारी हैं और रोगी एक ग्राहक। और हर व्यापार में प्रोडक्ट बेचना ही एकमात्र लक्ष्य होता है। और हर प्रोडक्ट का एक जैसा प्रचार नहीं होता कुछ के लिए खबरें ही प्रचार का माध्यम होती हैं।

मेरा कहना बस यह है कि रेमडेसिवर यदि नहीं मिलती हैं तो आप निराश न हो। अभी जो अन्य विकल्प उपलब्ध हैं उन्हें लीजिए। अवसाद में मत डूब जाइये अगर यह दवाई नहीं मिल रही है आपके लिए या आपके रिश्तेदार के लिए तो। इस रोग में निराशा और डर बेहद घातक है दोस्तों। न तो पिछले साल वाली HCQ इसकी संजीवनी थी और न इस साल की रेमडेसिवर। अगले साल शायद कोई और नाम आ जाए।
यदि दुर्भाग्य से आप कोरोना की चपेट में आगए हैं तो टीवी और अखबारों से दूर रहें, जब भी याद आए गहरी सांसें लें, उपलब्ध हो तो ऑक्सिजन लीजिए, रोज़ाना धूप में थोड़ी देर बिताएं, अच्छा और पौष्टिक भोजन लें, अपने चिकित्सक की देख रेख में लाइफ सपोर्टिंग मेडिसिन लें, हर्बल दवाओं (आयुर्वेद, होमेओपेथी या यूनानी) का भी उपयोग ज़रूर कीजिए।

हमने और सरकार ने पिछले एक वर्ष में क्या सीखा है यह सबसे बड़ा सवाल है। पिछले साल खरीदी और कमलनाथ सरकार को खो देकर आई शिवराज सरकार के लिए कोरोना से जूझना नया अनुभव था । जैसे पूरी दुनिया के लिये था, पर अब एक साल में शिवराज, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, सचिव स्वास्थ्य, कमिश्नर स्वास्थ्य ने और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की डायरेक्टर क्या बताएंगी पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ कि आपने अस्पतालों में आधारभूत ढांचों, व्यवस्था, अलग -अलग तरह के सप्लाय चैन मैनेजमेंट में क्या किया, प्रशिक्षण और कौशल तथा दक्षता वर्धन के लिये क्या किया, फील्ड में क्या काम ठोस हुआ। 

आखिर आज जो ये हाहाकार मच गया है उसका जिम्मेदार कौन है। केंद्र सरकार की ओर से केबिनेट मंत्री हर्षवर्धन ने कितनी बार दौरा किया प्रदेश का और ज़मीनी हालात की पड़ताल की। केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के अंतर्गत पिछले वर्ष जो मोदी सरकार ने अरबों रुपयों की घोषणाएं की थी दवा, शोध, ढांचों के लिये  निश्चित ही रुपया हजम करके उस फंड का उपयोगिता प्रमाण पत्र तो 31 मार्च को गया ही होगा  पर ज़मीन पर क्या काम हुआ।  प्रदेश के सभी विधायकों, सांसदों ने या पार्षदों और पंच – सरपंचों ने अपने क्षेत्र के अस्पतालों का कितना निरीक्षण कर पुख्ता इंतजामात करने में विधायक निधि, सांसद निधि का उपयोग किया। राजनैतिक विचारधारा आदि सब गई तेल लेने या भाड़ में, पर एक साल के बाद इस हाहाकार और वीभत्स स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है?

मप्र हाई कोर्ट क्यों चुप है ? इस हाहाकार के लिए क्यों नही स्वतः संज्ञान ले रहा ? प्रदेश में राज्य से लेकर जिले और ब्लॉक स्तर तक के बार कौंसिल के सदस्य क्या सिर्फ बार के चुनाव लड़ने तक ही सक्रिय रहते है ।

कुल मिलाकर यह स्थिति Civil Disobedience की ओर जा रही है । जो भीड़ आज लाइन में खड़ी है रात रात भर, इंजेक्शन के लिए चार गुना रुपये दे रही है । वो अपने परिजनों को खोने के बाद निश्चित रूप से हिंसा पर उतरेगी और तब कोई कुछ नही कर सकेगा ।

जरा सोचिये, इसके मूल में हमारी लापरवाही भी तो शामिल नही, सरकारें तो निकम्मी और भ्रष्ट है ही, प्रशासन आपदा में अवसर खोज ही ले रहा है । बर्बर और हिंसक होना शुरू हो ही गया है। पर हम लोग क्या करें जो जनता है और सिर्फ एक वोट है।

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