धर्मपाल वर्मा

क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद को भविष्य में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत कर एक बड़ी योजना पर काम कर रहे हैं ,यह अब राजनीतिक चर्चा में यक्ष विषय बनने लगा है।

यह तय है कि अब वे दिल्ली से बाहर निकलकर खुद को उसी तरह पेश करते नजर आने लगे हैं जैसे कभी पूर्व मुख्यमंत्री कुमारी मायावती करने लगी थी।

अब यह साफ होता जा रहा है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली के अलावा हरियाणा पंजाब उत्तर प्रदेश उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में अपना प्रभाव बढ़ाने जनसंपर्क तेज करने की कोशिश में है ।पार्टी ने गुजरात में निकाय चुनाव में न केवल हिस्सा लिया बल्कि सत्तारूढ़ भाजपा का मुकाबला किया और कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेलने में कामयाबी हासिल की।

यह भी मान कर चलिए कि पार्टी अब अगले वर्ष होने वाले तीनों प्रदेशों उत्तर प्रदेश उत्तराखंड और पंजाब के विधानसभा चुनाव पूरी गंभीरता से लड़ेगी और वह हरियाणा में अगले विधानसभा चुनाव में सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में नजर आ रही है।

किसान आंदोलन को लेकर अधिकांश राजनीतिक दल जिनमें कांग्रेस भी शामिल है ,बार-बार यह संदेश दे रहे हैं कि इस आंदोलन में उनकी ओर से कोई राजनीति नहीं होगी लेकिन सब जानते हैं कि यह कहना भी तो राजनीति ही है ।ऐसे सभी दल राजनीति कर रहे हैं और आम आदमी पार्टी ने भी की है ।जींद मैं 4 अप्रैल को आयोजित आम आदमी पार्टी की किसान महापंचायत का आयोजन इसी का एक उदाहरण है क्योंकि किसान नेताओं ने इसका समर्थन नहीं किया इसमें सहयोग नहीं किया ।

अरविंद केजरीवाल बहुत शार्प किस्म के नेता है । दिल्ली में विकास और चुनाव जीतने के उनके फार्मूले ने राजनीति के धुरंधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बैकफुट पर लाने का काम किया। इसमें भी कुछ संदेह नहीं है कि देश में अरविंद केजरीवाल अकेले ऐसे नेता हैं जिसका प्रधानमंत्री भी किसी न किसी रूप में खौफ खाते हैं। इसके अलावा वे किसी और नेता की की परवाह नहीं करते नजर नहीं आते।

राहुल गांधी हो ममता बनर्जी नीतीश कुमार ,प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में अपनी चमक और संभावनाएं समाप्त करते दिखे तो इस मामले में एक शून्यता सी उभर रही है और अरविंद केजरीवाल की नजर उसी बिंदु पर हो सकती है।

एक बात और संभव है ,वह यह कि आप पार्टी अगले वर्ष होने वाले पंजाब के चुनाव में अच्छे से परफॉर्म कर जाए तो फिर श्री केजरीवाल हरियाणा पर अपना पूरा ध्यान देते हुए चुनाव इस विचार से लड़ेंगे कि जिस तरह 2014 में चौधरी भजन लाल के प्रभाव का वोटर भाजपा में शिफ्ट हो गया था उसी तरह 2024 में भाजपा का वोट बैंक आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो सकता है। हरियाणा में राजनीतिक दल जिस फार्मूले पर राजनीति कर रहे हैं उस मामले में अरविंद केजरीवाल अलग फार्मूले पर काम करेंगे । अरविंद का जन्म हरियाणा में हुआ है और यदि वे कामयाबी की ओर थोड़े से भी मुखर नजर आने लगे तो उन्हें इसका तुरंत लाभ मिल जाएगा ऐसा राजनीतिक लोगों का मानना है ।

यदि दिल्ली के आसपास के प्रदेशों में आम आदमी पार्टी का प्रभाव बढ़ता है तो फिर उसका राष्ट्रीय राजनीति में भी हस्तक्षेप बढ़ जाएगा और यह भी सब जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल ही नहीं सभी राजनीतिक लोग महत्वकांक्षी होते हैं और अरविंद केजरीवाल खुद को नरेंद्र मोदी का विकल्प साबित करने की कोशिश में हुए तो विधानसभा में होने वाले चुनाव मैं उनका प्रदर्शन उनके बहुत काम आएगा।

यदि हम हरियाणा की बात करें तो हरियाणा के लोग अरविंद केजरीवाल में दो कमजोरियां देखते हैं और इसी कारण से हरियाणा में वे खुद को स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। एक यह कि उनके साथ किसी भी दल के कार्यकर्ता तो जा सकते हैं बड़े नेता नहीं जुड़ेंगे क्योंकि ऐसे नेताओं को अरविंद केजरीवाल अहमियत ही नहीं देते । इस मामले में लोग दिल्ली के दो उदाहरण हमेशा मन मस्तिष्क में रखकर चलते हैं और यह हैं कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव।

दूसरा यह कि वे अग्रवाल बंधुओं को राजनीति में ज्यादा अधिमान देते हैं जबकि हरियाणा की राजनीति में जाटों की अहमियत बहुत ही ज्यादा है। हरियाणा में पार्टी के पास कोई जाट चेहरा भी नहीं है आम मान्यता यह भी है कि अरविंद केजरीवाल भी किसी जाट को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत भी नहीं करेंगे । बे हरियाणा की जाट गैर जाट की राजनीति की खुली आलोचना करते रहे हैं और योग्यता को अधिमान देने का समर्थन करते आ रहे हैं। हरियाणा में नवीन जयहिंद के आप पार्टी से बाहर चले जाने के बाद अरविंद केजरीवाल कोई ऐसा चेहरा भी तलाश नहीं कर पाए हैं जो पार्टी का हरियाणा का प्रभावी ध्वजवाहक साबित हो जाए।

अंत में यह कहा जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल की नीति विधानसभा के चुनावों में पार्टी को खड़ा करने का मकसद खुद को भविष्य के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करना हो सकता है । बड़े-बड़े न्यूज़ चैनल्स में दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य मैं हुए कामों के बड़े-बड़े और शानदार विज्ञापन देखकर उस पर करोड़ों रुपए खर्च कर देश की जनता को एक संदेश देने की अरविंद केजरीवाल की कोशिश को राजनीतिक पर्यवेक्षक उपरोक्त दृष्टिकोण से ही देख रहे हैं। वह माहौल बनाते दिख रहे हैं और लोग कहते हैं कि माहौल बनाना ही राजनीति है।

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