– लाचित बड़फुकन अंग्रेजों नहीं मुगलों से लड़े थे।
– सन 1671 में सराईघाट-युद्ध में औरंगजेब   की फौज़ को करारी शिक़स्त दी थी
– अंग्रेज तो डेढ़ सौ साल बाद 1826 में    असम पर काबिज़ हुए थे
० बाल विवाह क़ानून के लिये ब्रिटिश   हुक़ूमत से लड़े थे समाज सुधारक
०शिक्षा का अधिकार क़ानून भी यूं ही  नहीं बनाया था सरकार ने
विपक्षी दलों पर प्रहार करते समय अपने पद की गरिमा को भी भूल जाते हैं।

अशोक कुमार कौशिक 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर मिथ्या वाचन किया है। असम में चुनाव प्रचार में उन्होंने वहां के वीर योद्धा लाचित बड़फूकन को अंग्रेजों से युद्ध करते बताया है जबकि लाचित ने मुगलों को शिक़स्त दी थी। प्रधानमंत्री ने गत दिवस चुनाव अभियान में कहा कि असम के ‘वीर योद्धा लाचित बडफुकन ने आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों को धूल चटाई।’ 

यह कथन सिरे से ग़लत है। असल में लाचित बड़फुकन ( कहीं कहीं ‘बोड़फुकन’ नाम मिलता है ) ने जिस युद्ध में पराक्रम दिखाया था वह अंग्रेजों से नहीं मुगलों के साथ हुआ था। तब अंग्रेजी राज्य की स्थापना भी भारत में नहीं हुई थी। अंग्रेज तो डेढ़ सौ साल बाद असम पर कब्ज़ा करने में क़ामयाब हुए थे।

असम पर अंग्रेजों का अधिकार 1824-25 के एंग्लो-बर्मा युद्ध के बाद हुआ। इस युद्ध के बाद 1826 में हुई संधि के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूर्वोत्तर के बड़ी भूभाग पर आधिपत्य प्राप्त किया और अहोम सम्राज्य का पतन हो गया।

– कौन थे लाचित बड़फुकन और कब हुआ युद्ध 

इतिहास की किताबें बताती हैं कि ब्रह्मपुत्र घाटी में 13 वीं सदी से 19 वीं सदी के शुरू तक अहोम साम्राज्य स्थापित रहा। उधर 16वीं सदी तक दिल्ली के तख़्त पर मुग़ल साम्राज्य निर्द्वंद राज्य कर रहा था। पूर्व-उत्तर पर विस्तार के लिये मुगलों ने सन 1662 में अहोम साम्राज्य की राजधानी गुवाहाटी पर दबिश दी और उस पर कब्जा कर लिया था। मुग़लों ने तत्कालीन अहोम सम्राट जयध्वज को अपमानजनक संधि करने पर विवश कर दिया था।

लेकिन अगले पांच सालों में स्थानीय विद्रोह के कारण गुवाहाटी मुगलों से मुक्त हो गया। कालांतर में औरंगजेब ने सन 1669-70 में अपनी भारी भरकम फौज़ असम पर चढ़ाई के लिये भेजी थी। छुटपुट संघर्ष के बाद 1671 में मुग़लों और अहोम साम्राज्य के बीच निर्णायक युद्ध हुआ।
तब राजा चक्रध्वज सिंह गद्दी पर आसीन थे। अहोम सेना की कमान वीर सेनापति लाचित बड़फुकन के हाथ थी। दूसरी तरफ़ मुगल सेना की बागडोर मिर्जा राजा जय सिंह के पुत्र रामसिंह के हाथ थी।

ब्रह्मपुत्र घाटी में हुआ यह संग्राम ‘सराईघाट-युद्ध’ के रूप में इतिहास में दर्ज़ है। इस निर्णायक युद्ध में लाचित बड़फूकन ने गुरिल्ला रणनीति से मुग़लों की भारी भरकम फौज़ की करारी शिकस्त दी थी। मुग़ल सेना के मुकाबले लाचित के पास सीमित संसाधन और सैनिक थे लेकिन उन्होंने अदम्य साहस से इस युद्ध का संचालन किया और मुग़लों को खदेड़ दिया। इस पराजय के बाद मुग़लों ने असम की तरफ़ पलट कर नहीं देखा।

– लाचित के नाम पर एनडीए में गोल्ड मैडल

लाचित बड़फुकन की गुरिल्ला रणनीति को नेशनल डिफेंस एकेडमी के अध्ययन में शामिल किया गया है। लाचित के नाम पर एनडीए में बेस्ट कैडेट को गोल्ड मैडल प्रदान किया जाता है। असम में हर साल 24 नवंबर को ‘लाचित दिवस’ मनाया जाता है।

 इससे पूर्व संसद में किया मिथ्या वाचन 
सॉरी सर,  बिना मांगे नहीं बने ये कानून।

० बाल विवाह क़ानून के लिये ब्रिटिश हुक़ूमत से लड़े थे समाज सुधारक
०शिक्षा का अधिकार क़ानून भी यूं ही  नहीं बनाया था सरकार ने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा था कि बाल विवाह कानून,शिक्षा का अधिकार कानून बिना मांगे बनाये गए थे। किसी ने मांग नहीं की थी और सरकारों ने बना दिये थे। वे बिना मांगे किसान क़ानून बनाने की हिमायत कर रहे थे। माफ़ कीजिये साहेब यह सरासर मिथ्यावाचन किया है। बाल विवाह के खिलाफ़ क़ानून बनाने के लिये समाज ने फिरंगी राज में लंबी लड़ाई लड़ी थी।

उन्नीसवीं सदी में राजा राममोहन राय ने बाल विवाह के खिलाफ़ आवाज़ उठाई थी। बीसवीं सदी की शुरुआत में ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’, ‘महिला भारतीय संघ’ और ‘भारत में महिलाओं की परिषद’ ने बाल विवाह के खिलाफ़ अलख जगाया था। समाज सुधारक,बाल विवाह विरोधी संस्थाओं के लोग तत्कालीन नेताओं के सामने अपनी मांग रखने जाते थे। 

सन 1927 में रायसाहब हरविलास शारदा ने केंद्रीय विधानसभा में ‘हिन्दू बाल विवाह बिल’ पेश किया। इसमें विवाह के लिये लड़कियों की उम्र 14 और लड़कों की 18 वर्ष करने का प्रावधान रखा गया। समाज सुधारकों, स्वतंत्रता सेनानियों के दवाब में ब्रिटिश सरकार ने इसे एक कमेटी के पास भेज दिया। कमेटी के सदर सर मोरोपंत विश्वनाथ जोशी थे। कमेटी में आर्कोट रामास्वामी मुदलियार, खान बहादुर माथुक, मियां इमाम बख़्श कुडू,रामेश्वरी नेहरू, श्रीमती ओ बरीदी बीडोन,मियां सर मुहम्मद शाह नवाज़,एमडी साग आदि मेम्बर थे।

कमेटी ने 20 जून 1929 को रिपोर्ट पेश की। इस बिल को ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ ने 29 सितम्बर 1929 को पारित किया। यह कानून 30 अप्रैल 1930 से पूरे देश में लागू हुआ। बिल पेश करने वाले रायबहादुर हरविलास शारदा के नाम पर ही इसे ‘शारदा एक्ट’ के नाम से जाना गया। बाद में सन 1949, 1978 और 2006 में इस कानून में ज़रूरी संशोधन भी किये गए। अब विवाह की न्यूनतम आयु सीमा लड़कियों और लड़कों के लिये क्रमशः 18 और 21 वर्ष है।

० यूं ही नहीं आया शिक्षा के अधिकार का क़ानून

मोदी ने यह भी कहा था कि शिक्षा के अधिकार का क़ानून (RTE) भी बिना किसी के मांगे बनाया गया है।यह भी सरासर ग़लत है। शिक्षा के अधिकार के लिये क़ानून भारत ज्ञान विज्ञान समिति के प्रणेता प्रो. विनोद रैना जैसे लोगों के सतत संघर्ष का परिणाम है। प्रो. रैना अखिल भारतीय जनवादी विज्ञान नेटवर्क के सह संस्थापक थे। सन 2009 में उनके और तमाम दूसरे लोगों के संघर्ष के बाद शिक्षा का अधिकार कानून बना। इसका ड्राफ्ट भी प्रो रैना ने तैयार किया था।

साहेब आपने केवल दो बार ही मिथ्या वाचन नहीं किया अपितु पूर्व में भी बार-बार झूठी जानकारी परोसते रहे है। भले ही वह दो संतो के समकालीन होने की झूठी बात हो। आश्चर्य तो यह है कि प्रधानमंत्री पद पर होने के बाद भी वह जरा सा भी संकोच नहीं करते । इसके अलावा वह विपक्षी दलों पर प्रहार करते समय अपने पद की गरिमा को भी भूल जाते हैं।

अब उन्होंने बंगाल की रैली में नरेन्द्र मोदी ने टीमसी का मतलब “ट्रांसफार्मर माई कमीशन” बताया है !आप इस आदमी के भाषा की इस प्रकार की स्तरहीनता से ही इसकी नीचता का पता कर सकते हैं । क्या ये एक प्रधानमंत्री की भाषा है ? ये आदमी भूल जाता है कि ये सिर्फ भाजपा और संघ का कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान का प्रधानमंत्री भी है ।  

इसके पहले भी प्रधानमंत्री रहते हुये इसने तेजस्वी यादव, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, मायावती इत्यादि के बारे स्तरहीन बातें की हैं । हिंदू-मुस्लिम के नाम पर भारत को दो धड़ों में बाँटने के बाद अब भाषाई स्तरहीनता को ऑफिसियल लैंग्वेज बनाया जा रहा है । जब कोई प्रधानमंत्री पद पर बैठा हुआ व्यक्ति अभद्र भाषा का इस्तेमाल करेगा तो उसके अनुयायी क्या करेंगे ? निश्चित तौर पर ग्राउंड लेवल तक आते-आते भाषा का यह स्तर और गिरेगा । यही कारण है कि आज भाजपा और उसके सहयोगी दलों के कार्यकर्ता गाली-गलौज तक उतर आते हैं और अपने प्रधानमंत्री की तरह झूठ परोसने में जरा भी संकोच नहीं करते।

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