–कमलेश भारतीय पंजाब में पिछले दिनों हुए निकाय चुनाव में जिस तरह से अकाली दल , आप और खासतौर से भाजपा का सूपड़ा साफ हुआ , उससे यह बात सामने आ रही है कि दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन का साया इन चुनावों पर पड़ा है । इसके बावजूद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस सत्य को पचाने को तैयार नहीं । वे कह रहे हैं कि बात कुछ हजम नहीं हुई । उनका इस संदर्भ में बड़ा हास्यास्पद बयान दिया है कि पंजाब में पहले से ही भाजपा कमज़ोर थी । इसे किसान आंदोलन के साथ जोड़ कर न देखें । यह बात भी कुछ हजम होने वाली नहीं । तोमर जी कह रहे हैं कि पहले हम अकाली दल के साथ मिल कर चुनाव लड़ते थे । इस बार हम अकेले ही मैदान में थे क्योंकि अकाली दल से गठबंधन टूट चुका है । जैसे हरियाणा में पुराने सहयोगी इनेलो से गठबंधन खत्म हो चुका है । वैसे तो भाजपा नेता अकेले अपने दम के बड़े बड़े बोल बोलते हैं लेकिन फिर हार के समय बहाने लगाने शुरू कर देते हैं । यह बात भी सही है कि कांग्रेस को पंजाब में अपने कामकाज या शासन का विरोध सहन नहीं करना पड़ा तो इसके पीछे किसान आंदोलन ही माना जा सकता है । इस तरह भाजपा को यह साफ संकेत समझ लेना चाहिए कि आने वाले समय में क्या हश्र होने वाला है इन कृषि कानूनों के प्रति हठधर्मितापूर्ण रवैया अपनाए रखने से । पंजाब के निकाय चुनाव परिणामों पर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी कहा कि हरियाणा में भी लोग बदलाव का मन बना चुके हैं । हालांकि सत्तारूढ़ दल इस बात को मानने से इंकार कर रहे हैं । फिर भी यह तय है कि मार्च में अविश्वास प्रस्ताव आयेगा । यूं ही लंच डिप्लोमेसी नहीं की गयी या अमित शाह के सिंह ने विधायकों की परेड करवाई गयी । बेशक चाटुकारिता की हदें पार करते गोदी मीडिया रोज़ हाजीपुर के खाली टेंट दिखाकर किसान आंदोलन के जल्द खत्म होने की बात कर रहे हों लेकिन हरियाणा में लगातार किसा महापंचायतों की बढ़ती भीड़ को अनदेखा कैसे कर सकते हैं ? किसान आंदोलन दम तोड़ने वाला होता तो रेल रोको आह्वान को सफलता कैसे मिलती ? दिल्ली, अम्बाला और रोहतक के साथ साथ हिसार में भी इसका अच्छा खासा असर देने को मिला । कितनी देर तक आंखें मूंदें कवरेज कर गुमराह करते रहेंगे ? किसानों का रेल रोको अभियान शांतिपूर्ण संपन्न हुआ लेकिन सरकार को किसानों की ज्यादा परीक्षा न लेकर इस समस्या का हल निकालना चाहिए । नहीं तो उत्तर भारत के राज्यों में भाजपा की स्थिति कमज़ोर होती जायेगी । Post navigation कैसे थे बुरे दिन , अच्छे दिनों के मुकाबले बरवाला पहुंचे भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम चढूनी