– “मजा मारे जुम्मन मियां धक्का सहे जुगानी।”
– जितना देश आर्थिक और बौद्धिक रूप से कमज़ोर हो रहा है उतना ही मोदी जी मज़बूत हो रहे हैं। 
– गडकरी देश में वैकल्पिक ईंधन की जोरदार वकालत कर रहे है।
– एलपीजी की जगह लकड़ी का चूल्हा, गोबर गैस फिर से इस्तेमाल करना चाहिए?
– कहाँ गयी वो ऑडियंस जिसको 35₹ वाला पेट्रोल और 300₹ वाला एलपीजी चाहिए था?
 मुद्द्दे, जनता…सब अभी भी मौजूद है इसी देश में, बस उनको भड़काने वालों के सुर बदल गए ।
– मौके न लपककर, चूकते हुए 2024 भी भाजपा की झोली में डालने को आतुर बैठी है कांग्रेस।

अशोक कुमार कौशिक

यह अद्भुत बात है। जितना देश का पतन हो रहा है उतना ही मोदी जी शिखर थाम रहे हैं। देश जितना बर्बादी​ की ओर बढ़ रहा है मोदी जी की उतनी ही बनती जा रही है। देश में जितनी महंगाई बढ़त पर है उतने ही मोदी जी लोकप्रिय हो रहे हैं। जितना ही देश आर्थिक और बौद्धिक रूप से कमज़ोर हो रहा है उतना ही मोदी जी मज़बूत हो रहे हैं। जितना ही जातियों और वर्गों में फूट पड़ रही है उतना ही मोदी जी सुदृढ़ हो रहे हैं। पहले हर सैनिक की शहादत प्रधानमंत्रियों को कमज़ोर करती थी अब हर सैनिक की शहादत मोदी​ जी को नया जीवन दे रही है।इस अद्भुत विरोधाभास के आगे विपक्ष विमूढ़ हो गया है। वह चुनाव में गठबंधन करता है। वह गठबंधन बनाकर आंदोलन नहीं करता है। विपक्ष गठबंधन बनाकर आंदोलन करे और चुनाव बिना गठबंधन के लड़े। इतनी चेतना वह अपने अंदर लाये ताकि यह अद्भुत विरोधाभास ख़त्म हो। समाप्त हो।

पेट्रोलियम पदार्थों के दाम के नियमन में असफल रही सरकार अब नए पैंतरेबाजी कर रही है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने ऐलान कर दिया है कि अब पेट्रोल डीजल के बिना रहने की आदत डाल लेनी चाहिए। राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने देश में वैकल्पिक ईंधन की जोरदार वकालत करते हुए कहा है कि अब देश में वैकल्पिक ईंधन का  समय आ गया है।

नितिन गड़करी का कहना है कि देश में बिजली को वैकल्पिक ईंधन के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है. जो आने वाले समय के लिए शुभ संकेत है। नितिन गडकरी ने कहा कि हमारा मंत्रालय वैकल्पिक ईंधन पर जोर शोर से काम कर रहा है। मतलब साफ है हमे अपने वाहन अब खड़े कर देना चाहिए या फिर गोबर गैस से चलाने चाहिए। एलपीजी की जगह लकड़ी का चूल्हा फिर से इस्तेमाल करना चाहिए।

ये पिछली सरकार कहाँ तक संभालेगी ? जब सारा देश पिछली सरकार ने बिगाड़ रखा है तो सुधारने की जिम्मेदारी उसे जल्दी सौप देंनी चाहिए। बिगाड़ा है तो बनाओ भी ,ये कौन सी बात हुई कि”मजा मारे जुम्मन मियां धक्का सहे जुगानी।”

2013 में जब क्रूड ऑयल 110$ प्रति बैरल था , तब भारत मे प्रति लीटर पेट्रोल 77 से 82 रुपये प्रति लीटर अलग अलग राज्यो में मिल रहा था । आज क्रूड 60$ प्रति बैरल है ओर पेट्रोल 96 रुपये से 100 रुपये प्रति लीटर का मिल रहा है सिंपल गणित का इस्तेमाल करे तो 2013 में यही पेट्रोल हमे 54% सस्ता मिल रहा था , अगर आज के टेक्स रेट लगाया जाए तो हमे ये पेट्रोल 2014 में 190 रुपये प्रति लीटर मिलता , मतलब 2013 में हम आज के मुकाबले 95 रुपये प्रति लीटर बचा रहे थे

अब इसको व्हाट्सएप्प पर भक्तमंडली द्वारा प्रचलित एक पोस्ट से करते है जिसमे उन्होंने प्रति परिवार महीने का 30 लीटर पेट्रोल की जरूरत बताया था , उस हिसाब से वर्तमान टेक्स की दर से 2013 में आपके खर्च होते

190×30= 5700
आप दे रहे थे 80 रुपये प्रति लीटर
80×30= 2400 रुपये
मतलब 2013 में आज की टेक्स दर के हिसाब से आपकी बचत हो रही थी
5700-2400= 3300 रुपये

मतलब सालाना केवल पेट्रोल से प्रति परिवार बचत थी 39600 रुपये , उस समय सोने की कीमत थी करीब 29000 रुपये प्रति तोला , मतलब उस बचत से आपने 13 ग्राम सोना खरीद लिया होगा। सोने की आज की कीमत है 48990 , मतलब इस समय के खरीदे 13 ग्राम सोने की कीमत हो गयी करीब 63000 रुपये।

– अब बताइए कैसे थे बुरे दिन , अच्छे दिनों के मुकाबले

जिन लोगों को लगता है कि 2014 में UPA सरकार के जाने की वजह कांग्रेस है, वे एक बार अपने मुंह पर चिल्ड गंगाजल मारें। कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार को एक सुनियोजित तरीके से बदनाम किया गया। ….और ये काम उन लोगों ने किया जिनकी फैन फॉलोइंग थी । बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, श्री श्री रविशंकर, किरण बेदी, अरविन्द केजरीवाल, जनरल वीके सिंह जैसों की फैन फॉलोइंग करोड़ों में है, और जब वे लोग कोई बात कहते हैं तो उसका असर लोगों पर पड़ता है। इन्होंने लोहा गरम देखकर हथौड़ा मारा! किसके कहने पर मारा, क्यों मारा ये सबको पता है।

देश का CAG हर तीसरे दिन सरकार की किसी न किसी नीति पर अपने आंकड़े जारी किया करता था।…कि इतने का घपला हो गया । यहाँ करप्शन हो रहा है। उसी वक्त ये लोग झंडे वगैरह लेकर रामलीला मैदान में एकत्र हो जाते थे।

इंटरनेशनल मार्किट के हिसाब से एक दो तिमाही में पेट्रोल डीजल और एलपीजी के दामों में हुई बढ़ोत्तरी को लेकर एक “बानरी सेना” हर वक्त विरोध प्रदर्शन करती रहती थी। लोगों के गुस्से को इन्होंने अपने आयोजनों में कैश किया, क्योंकि किसी योग शिविर या धर्मिक प्रवचन के आयोजन पर न तब रोकटोक थी और न अब है। योग सिखाने के नाम पर, प्रवचन के नाम पर, सेमिनार्स के नाम पर, इन्होंने लोगों को भड़काया। देश में आगजनी करवाई। सरकारी संपत्तियों का नुकसान करवाया।

….और सबसे बड़ी बात, देश की जनता के भीतर सबसे पुरानी पार्टी को लेकर नफरत भी इन्होंने ही भरी और देश को अस्थिर करने जैसा पाप किया। आज जबकि हालात 2014 से भी बुरे हैं और इसलिए लोगों में पहले से ज्यादा गुस्सा है। फिर भी न कही विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, न आगजनी हो रही है, न तोड़फोड़ हो रही है।

….तो सवाल है कि 2014 से पहले ये सब कौन करवाता था? कहाँ गयी वो ऑडियंस जिसको 35₹ वाला पेट्रोल और 300₹ वाला एलपीजी चाहिए था? कहाँ गयीं वो गृहिणियां जो सुबह सुबह मेकअप मार के किचेन में महंगाई का रोना रोया करती थीं? कहाँ गए वो रिटायर्ड बुजुर्ग अंकल लोग, जो बिजली बिल से परेशान होकर आलीशान मकानों में बैठकर ताड़ के पत्ते से निर्मित पंखे हिलाया करते थे? वे सारे के सारे अभी भी मौजूद हैं। और इसी देश में हैं । मुद्द्दे, जनता…सब। बस उनको भड़काने वालों के सुर बदल गए हैं।

जनता गुस्से में सड़क पर न निकल जाए इसलिए वे हर ऐसे झटके को राष्ट्रनिर्माण, राष्ट्रहित व राष्ट्रप्रेम से जोड़ दे रहे हैं। अब कौन ऐसा नामुराद होगा जो अपने ऊपर देशद्रोही होने का ठप्पा लगवायेगा? यदि आज महंगा पेट्रोल-डीजल खरीदने का मतलब, घरों में कैद रहने का मतलब, नौकरियां गंवाने का मतलब राष्ट्रनिर्माण में सहायक होना व राष्ट्रप्रेमी होने का परिचायक है…..तो 2014 से पहले इन्ही मुद्दों पर जनता को गुमराह करना, उनको एक चुनी हुआ सरकार के खिलाफ भड़काना देशद्रोह है। और बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर, अन्ना हजारे, किरण बेदी, केजरीवाल वगैरह को देशद्रोही ही माना जाये।

सवाल उठता है कि अब ये मोदी सरकार तो डीजल-पेट्रोल के दाम कम करने से रही। इसलिए, अगर इनके दाम कम करवाने हैं तो जिन राज्यों में गैर भाजपा-एनडीए सरकारें हैं, वे यदि अपना टैक्स 50 प्रतिशत घटा दें तो डीजल-पेट्रोल की कीमतें काफ़ी हद तक कम हो जाएंगी। ऊपर से उनके ऐसा करते ही दूसरे राज्यों की भाजपा-एनडीए सरकारें तथा केंद्र में बैठी यह घोर पूँजीवादी सरकार भी अपने जन-विरोध से घबरा जाएगी और इन सबको भी अपना टैक्स घटाना पड़ जायेगा। जीत विपक्ष और जनता की होगी। इसका सबसे ज्यादा श्रेय भी कांग्रेस को ही मिलेगा।

ऐसे में, अगर कांग्रेस को अब इतनी सी बात भी समझ न आ रही तो उसका भला कौन कर पायेगा? यूँ ही मौके न लपककर, चूकते हुए 2024 भी भाजपा की झोली में डालने को आतुर बैठी है कांग्रेस।

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