–  वो हरियाणा, जिस धरती से देश के प्रधानमंत्री ने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” मुहीम की आगाज की थी। उसका गृहमंत्री तो उसके समूल नाश की बात रहा है. – साहेब इंटरनेट के दौर मे रह रहे हैं। एक शब्द यहाँ लिखा जाता है, पूरी दुनिया में दिख जाता है।. – सुन लीजिए साहब ऐसे सच्चे भारतीयों को बोलने पर आप डरा नहीं सकते।. – सरकार हर उस आवाज को दबाने की कोशिशें कर रही हैं, जो उससे इत्तेफाक नहीं रखती है, विरोध करती है, आलोचना करती है।

अशोक कुमार कौशिक

ये कोई पहली बार नहीं है कि सत्तापक्ष बच्चियों से डर रहा है। कई दफ़ा हो चुका है ऐसा। वो सत्तापक्ष जिसने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसा सशक्त नारा दिया है, वो अपनी बेटियों की कितनी सुनता है? विदेशियों को आप ये कह सकते हो कि वे देश की छवि को धूमिल करना चाहती हैं। अपनी देश की बेटियां आपके बारे में क्या सोच रही हैं, ये देखने वाली बात है।

आज हम एक ऐसी ही नन्ही जानो की बात करेंगे। एक है  जिसने प्रधानमंत्री तक को हड़का दिया था।
नाम-लिसीप्रिया कांगूजाम (Licypriya Kangujam)
उम्र- नौ साल
राज्य-मणिपुर
देश-भारत
लिसीप्रिया सात साल की उम्र से ही जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं और इसी कड़ी में उन्होंने 2018 जून में संसद भवन के सामने प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए एक प्रदर्शन भी किया था। 2019 में अक्टूबर के महीने में इंडिया गेट से लेकर राजधानी के कई क्षेत्रों में अपने हजारों समर्थकों के साथ  “ग्रेट अक्टूबर मार्च 2019” का आयोजन भी कर चुकी हैं जिसका मकसद था -भारत के पर्यावरण कानून में आमूल चूल परिवर्तन हो। उसके बाद पूरी दिल्ली तीन महीने तक हांफी थी, उठे धुंवे के कारण! खैर…

…तो वाकया कुछ इस प्रकार है!!

एक दिन मोदी जी ने कहा कि मैं सोशल मीडिया त्याग दूंगा! फिर अगले ही दिन पलट गए और घोषणा की, कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन वे अपना ट्विटर अकॉउंट एक प्रेरणादायक  महिला को समर्पित कर देंगे! आपलोग महिलाओं की प्रेरक कहानियां उन्हें भेजिए!

इसके लिए ट्विटर पर हैशटैग  #SheInspiresUs चलाया गया। कहानियां भेजी गयीं। उन कहानियों में एक कहानी इस नन्ही बच्ची की भी थी, जिसे 5 मार्च को भारत सरकार ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से शेयर किया था । लेकिन ये कोई टॉफी या बिस्किट नहीं लाने पर नाराज हुई एक छोटी बच्ची तो थी नहीं। अगले ही दिन 6 मार्च को उस ट्विट के जवाब में इसने एक मजमून लिख मारा। लिसिप्रिया ने लिखा….

“आदरणीय मोदीजी, यदि आप मेरी आवाज नहीं सुनना चाहते हैं तो कृपा करके मेरा गुणगान मत कीजिये। देश की लाखों प्रेरणादायक महिलाओं में मुझे भी शुमार करने के लिए शुक्रिया। कई दफा सोचने के बाद मैंने यह फैसला किया है कि मैं आपका यह सम्मान ठुकरा दूँ।
जय हिंद”

दूसरी है छोटी सी प्यारी सी नन्ही सी….

सोशल मीडिया अंडोले कल से दिशा को गर्भवती बनाने के तौर तरीके बता रहे हैं। हरियाणा का गृहमंत्री तो उसके समूल नाश की बात रहा है। वो हरियाणा, जिस धरती से देश के प्रधानमंत्री ने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” मुहीम की आगाज की थी।

बेंगलुरू की 21 वर्षीय दिशा पंजाब के किसानों के लिए लड़ती है। वो बेजुबान जानवरों के लिए लड़ती है। वो पेड़ो औऱ पहाड़ों के लिए लड़ती है। वो सच्ची भारतीय है जो अपने जल,जंगल और जमीन की रक्षा लिए किसी भी से आतताई से टकरा जायेगी और एक इंच पीछे नही हटेगी।

दिल्ली पुलिस का कहना है कि दिशा और उसके साथी डिजिटल स्ट्राइक की तैयारी में थे। जरा ट्विटर देखकर आइये भाई लोगों ने बहुत धूमधाम से सरकार का जुलूस निकाल रखा है। डिजिटल स्ट्राइक नही डिजिटल बम्बार्डमेन्ट हो गया है। टॉप 20 में 20 ट्रेंड कान फाड़ देने वाला बम है।

मुझे लगता था यह अति-प्रतिक्रियावाद है। 70 साल से हमारा लोकतंत्र कायम है। इमरजेंसी के दौर के बाद फिर से लोकतंत्र बहाल हो गया। इतने सालों से हम अपने लोकतंत्र को बरतना और समझना सीख गए हैं। अब कोई भी सत्ता इसके साथ नहीं खेल सकती है।

ज्यादा वक्त नहीं लगा मेरे इस विचार को भ्रम में बदलने में। देखते-ही-देखते विरोधी आवाजें दबाई जाने लगी थीं। देशभर में अलग-अलग हिस्सों में काम करते एक्टिवस्टों को अलग-अलग आरोप लगाकर गिरफ्तार किया जाने लगा। पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं।

अलग-अलग मीडिया हाउसेज में काम करने वाले दो-तीन मित्रों ने बताया कि यूँ तो वे सालों से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते रहे हैं, लेकिन अब अपनी कंपनी उनसे सोशल मीडिया अकाउंट की सारी जानकारी डॉक्यूमेंट में ले रही है। इतना ही नहीं पत्रकारों के सोशल मीडिया अकाउंट पर भी नजर रखी जा रही है।

इतने सबसे भी जब लोगों के कहने पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं तो फिर कुछ शब्द जो कभी तारीफ हुआ करते थे, अब गाली की तरह की इस्तेमाल हो रहे हैं जैसे, वामपंथी, सेक्युलर, बुद्धिजीवी, पढ़े-लिखे, धर्मविरोधी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी, आतंकवादी … ये शब्द गाली की तरह इस्तेमाल किए जा रहे हैं।

जो लोग स्वतंत्र तौर पर लिख रहे हैं, उनकी ‘रीच’ को प्रभावित किया जा रहा है। ट्रोल उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं और उन पर अलग-अलग मुकद्दमे दायर किए जा रहे हैं। मुझसे मेरे कई दोस्त पूछते हैं कि ‘जिस तरह से तू लिख रहा है, तुझे डर नहीं लगता है?’ ये लिखते हुए डर लगने लगा है। क्या पता कल पुलिस आकर मुझसे पूछताछ करें कि आपको ये लिखने के लिए किस एजेंसी से फंडिंग मिल रही है?

ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है, कैसे मीडिया ने किसान आंदोलन को खालिस्तानी या आतंकवादियों का आंदोलन बताना शुरू कर दिया था। अजीब बात यह भी है कि लोग मानने भी लगे थे कि ये किसान नहीं है, खालिस्तान समर्थक या फिर आतंकवादी हैं।

सरकार हर उस आदमी की आवाज को दबाने की कोशिशें कर रही हैं, जो सरकार से इत्तेफाक नहीं रखती है, विरोध करती है, आलोचना करती है। पहले कभी लगता था कि ये सब अल्पसंख्यकों के साथ ही हो रहा है, लेकिन धीरे-धीरे जाना कि यह हर विरोधी के साथ हो रहा है।

ग्रेटा थनबर्ग के ट्विट के मामले से सरकार इतनी बौखला गई कि ‘टूलकिट’ को षडयंत्र ठहराने पर आमादा हो गई है। इसके लिए एक्टिवस्ट दिशा रवि को गिरफ्तार कर लिया गया है। कल खबर पढ़ी कि सरकार अब आईपी एड्रेस के आधार पर आपकी रिच कम करने का प्रस्ताव लाने वाली है।

टूलकिट में ऐसा क्या है जिसके आधार पर दिशा रवि को गिरफ्तार किया जाना चाहिए था? किसान आंदोलन की जानकारी औऱ आंदोलन की रणनीति ही न। दो महीने से ज्यादा हो गए हैं इस आंदोलन को, सरकार प्रायोजित हिंसा के अलावा इसमें कोई अव्यवस्था, कोई अराजकता नहीं हुई हैं।

अंतरराष्ट्रीय हस्तियों के ट्विट से बौखलाई सरकार ने पहले देशी हस्तियों को समर्थन में ट्विट करने के आदेश दिए, अब गिरफ्तारियाँ । जावड़ेकर कह रहे हैं कि टूलकिट देश को बदनाम करने का षडयंत्र हैं। साहेब इंटरनेट के दौर मे रह रहे हैं। एक शब्द यहाँ लिखा जाता है, पूरी दुनिया में दिख जाता है।

देश को बदनाम करने के लिए प्रयास करने की जरूरत नहीं है, देश को तो आपने यूँ ही बदनाम कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय अखबार, चैनल, बुद्धिजीवियों को पढ़, सुन, जान लें, समझ आ जाएगा कि अब तक जिसे देश का डंका बजना कहकर प्रचारित किया जा रहा था। वह प्रचार औंधे मुँह गिर गया है।

दिशा रवि को गिरफ्तार कर लिया है, दिल्ली पुलिस कह रही है टूलकिट जो दिशा ने ग्रेटा से कथित रूप से शेयर की है वह देशद्रोही है। जबकि दिशा वकील है औऱ जलवायु कार्यकर्ता है। एक 21 साल की पढ़ी लिखी लड़की से देश को इसलिए खतरा है क्योंकि वह किसी आंदोलन का समर्थन कर रही है। सुन लीजिए साहब ऐसे सच्चे भारतीयों को बोलने पर आप डरा नहीं सकते।

किधर है लोकतंत्र…! दिख जाए तो मिलवाने जरूर लाइएगा।

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