– पुलवामा घट रहा था और शासक की शूटिंग कंटिन्यू थी– अरनव के व्हाट्सएप चैट ने सरकारी हत्याकांड पर मुहर लगा दी ।– 40 शहीदों के परिवार तक कितनी सरकारी मदद पहुँची, उनसे किए गए कितने वादे पूरे हुए ?? – सच्ची श्रद्धांजलि तब होता जब हम यह मांग करते कि यह अटैक आखिर हुआ कैसे? अशोक कुमार कौशिक एक तानाशाह शासक की शूटिंग हो रही थी,, स्क्रिप्ट तैयार थी “मैन VS वाइल्ड”,, तानाशाहशासक बेखौफ था कि देश सुरक्षित हाथों में है और जंगल में मंगल कर रहा था । सो टोटली माहौल खुशनुमा था। पर कहानी स्टार्ट होती है फुलवाना रोड से,, चेक पोस्ट हटा दिया गए,, जबकि सरकार को इंटेलिजेंस द्वारा इनपुट दी गई थी कि जवानों को एअरलिफ्ट किया जाए।जहां एक परिंदा पर नहीं मार सकता वहां एक कार 300 किलो आर डी एक्स के साथ खड़ी थी। उस कार वाले को यह भी पता था कि जवानों की गाड़ियों की काफिला आ रही है और सभी गाड़ी बुलेट प्रूफ है बस एक गाड़ी को छोड़कर, मतलब यहां भी स्क्रिप्ट तैयार था। जो गाड़ी बुलेट प्रूफ नहीं थी वहां खड़ी कार उसी गाड़ी में जाकर टक्कर मार थी । 40 जवान शहीद हो जाते हैं और कितने विकलांग हो जाते हैं जो न जीने के लायक है ना मरने के लायक । ऐसे में शासक की शूटिंग कंटिन्यू रहती है “मैन वर्सेस वाइल्ड”। दो साल बीत गए ना कोई जांच, ना कोई रिपोर्ट। बस पुलवामा में हुए शहीदों के नाम पर फंड बने। पर मीला किसी को नहीं। अरनव के व्हाट्सएप चैट ने सरकारी हत्याकांड पर मुहर लगा दी है। ठीक दो साल पहले आज ही के दिन पुलवामा आतंकी हमला हुआ । लोकसभा चुनाव क़रीब थे इसलिए सरकारों और राजनेताओ ने घोषणाओं और शहीदों के परिवार की मदद के लिए वादों के अम्बार लगा दिए । पुलवामा हमले के बाद मारे गए जवानों के परिवारों की मदद पहुंचाने के लिए “वीर भारत कोष” फ़ंड बनाया गया। उस फंड में अब तक कितने पैसे जमा हुए और सरकार ने उन पैसों का क्या किया ?? इसकी जानकारी शायद ही देश में किसी के पास हो । मीडिया को भी इतनी फ़ुर्सत नहीं कि इस पर कोई रिपोर्टिंग कर सके कि 40 शहीदों के परिवार तक कितनी सरकारी मदद पहुँची, उनसे किए गए कितने वादे पूरे हुए ?? क्या शहीदों के परिवार को सम्मान मिला? उत्तर – पुलवामा में शहीद विजय सोरेंग की पत्नि आज सब्जी बेचकर जीवन यापन कर रहीं हैं। विजय सोरेंग की पत्नी विमला देवी से किया गया एक भी वादा रघुवर सरकार पूरा नहीं कर पायी । मजबूरन अपनी जीविका के लिए उन्हें सब्ज़ी बेचनी पड़ी । झारखंड में सरकार बदली , हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने , उनकी नज़र इस खबर पर पड़ी तो उन्होंने फ़ोरन ज़िला प्रशासन को आदेश दिया कि विमला देवी से किए गए वादे पूरे किए जाए और ज़िला प्रशासन ने तत्काल प्रभाव से उनकी मदद की । और लगभग सारे शहीदों के परिवारों का यही हाल है। लेकिन इस स्थिति में पहुंचाने के ज़िम्मेदार कौन हैं? किनके कारण हमारे 40 जवान शहीद हुए? कौन शहीदों के नाम पर वोट मांग रहे थे चुनाव में? अगर ये सवाल जिस दिन आप स्टैटस लगा देंगे ना कसम से यकीन मानिए अगला पुलवामा नहीं होगा। रमेश यादव प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस से थे , पुलवामा में शहीद हुए , तीन साल का छोटा सा बेटा था । जवान बीवी विधवा हो गयी , घर पर अकेले कमाने वाले थे , पिताजी अब साइकल पर दूध बेचते हैं । पत्नी को सरकारी नौकरी मिली है लेकिन बाक़ी कोई भी वादा सरकार पूरा नहीं कर पायी है । उनकी शहादत पर प्रदेश सरकार ने उनके गाँव की सड़क उनके नाम पर बनाने , गाँव में उनके नाम पर गेट बनाने जैसे कई वादे किए थे , लेकिन एक भी वादा सरकार पूरा नहीं कर पायी । बाक़ी 38 शहीदों के परिवार की भी कोई कहानी होगी । वो आज किस हालत में है , इसकी रिपोर्टिंग भी होनी चाहिए । मीडिया को कम से कम उनके परिवारों तक पहुँचकर उनकी आवाज़ को सरकार तक पहुँचाना चाहिए । कुछ फैक्ट बता रहा हूँ जो आपको हिन्दी के पेपर में और ना ही न्यूज चैनल में दिखाया गया होगा। अँग्रेजी मेरी भी कमजोर है इसलिए मैंने अँग्रेजी न्यूज पेपर दूसरे से पढ़ाया था जिसमें कुछ हकीकत लिखी थी आपसे साझा कर रहा हूँ -पुलवामा हमले होने कि आशंका 1 महीने पहले intelligence विभाग ने गृह मंत्रालय को दिया था!लेकिन फिर भी सरकार सचेत नहीं हुई आखिर क्यूँ?सैन्य विभाग ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखा था कि हमारे जवानों को airlift कराया जाय क्यूंकि इससे पहले भी ऐसा ही होता था (airlift कराया जाता था). लेकिन नहीं कराया गया क्यूँ? जिस रास्ते पर गुजरना था वहाँ हिमस्खलन होने का संभावना था फिर भी उसी रास्ते ले जाया गया आखिर क्यूँ? क्या जान बूझकर ढकेला गया शहीद होने? एक साथ इतने जवान नहीं गए कभी फिर उस दिन ही क्यूँ? आखिर ये किसका घटिया विचार था? इससे पहले जब भी उस रास्ते से सैन्य काफिला गुजरता था तो आम नागरिक का ‘नो एंट्री’ होता था जगह जगह घेरा बंदी चैक पोस्ट लेकिन उस दिन 300 केजी RDX लिए गाड़ी घुस गया किसी को पता तक नहीं चला। जब कोई एक ट्वीट तक कर दे तो सरकार बिल में से खोज निकालती है लेकिन 300 kg आरडीएक्स कहाँ से आया सरकार यह आजतक पता नहीं लगा पायी? हैं तो और भी बहुत कुछ लेकिन बस इतना बता दीजिए अपने मन से पूछ कर कि इस हमले से फायदा किसे हुआ? और किसने पुलवामा हमले के नाम पर वोट माँगा? अब तीन सवाल है : 1- इन शहीदों के नाम पर बने “वीर भारत कोष “ में कितना धन इकट्ठा हुआ और वो इनके परिवारों को मिला या नहीं मिला ? 2- शहीद परिवारों को सरकार पेंशन देती है या नहीं ? 3- सरकार अगर अपने वादे भूल जाए तो मीडिया और विपक्ष की यह ज़िम्मेदारी है या नहीं कि इन परिवारों से मिलकर पूछे कि सरकार ने कौन कौन से वादे पूरे नहीं किए है और उसे सरकार के सामने उठाए । राष्ट्रवाद पर दिन रात लेक्चर देने वालों को भी इन परिवारों से मिलकर एक बार अपना राष्ट्रवाद चेक कर लेना चाहिए । पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों के प्रति यदि सच्ची संवेदना है तो अपने सरकार से पुछिए कि 300kg RDX कहाँ से आया और काफिला में कैसे घुसा ? किसी की जिम्मेदारी आजतक क्यों नहीं तय हो पाया ? फिर कभी किसी जवान की शहादत इस तरह ना हो इसके लिए जिम्मेदारी तय होना जरूरी है. अन्यथा एक फोटो और उसके पीछे बैकग्राउंड में बज रहे गाने नौटंकी से कम नहीं है और इस नौटंकी से शहीद परिवारों को तकलीफ ही होती होगी. सच्ची संवेदना है तो न्याय दिलाइए. सरकार से सवाल पुछिए कि दो साल से आप की जाँच एजेंसी क्या कर रही है…? इन बातों को जानना जरूरी है। पाकिस्तान ने पुलवामा अटैक पर भारत के डोजेयर को यह कहकर मानने से इनकार कर दिया था कि भारत ने हमें सुबूत के नाम पर कुछ फोन और व्हाट्सएप नंबर दिए हैं जिनसे यह इस्टेब्लिश नही किया जा सकता कि हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गई। पाकिस्तान को जैश के खिलाफ जो सुबूत दिए गए उनमे फेसबुक, ट्विटर के स्क्रीनशॉट हैं। अर्णब गोस्वामी के व्हाट्सएप चैट से स्पष्ट था कि उस हमले में बहुत ज्यादा और वक्त से पहले जान गया था। पुलवामा हमले में अब तक दोषी अफसरों के खिलाफ किसी किस्म की कार्रवाई सामने नही आई है। हमला स्थल पर इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक कैसे पहुंचा यह बात अभी तक स्पष्ट नही हो पाई है। इतने बड़े इंटेलिजेंस फेल्योर के लिए किसी भी एजेंसी की जिम्मेदारी नही तय की गई। नि:शब्द हूं, शून्य में हूं, लेकिन भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है। मेरे देश पर कुर्बान हुए शहीदों को दिल से नमन,,, Post navigation हिमालय देवभूमि को सुरक्षित रखना समय की जरूरत है किधर है लोकतंत्र…! दिख जाए तो मिलवाने जरूर लाइएगा।