भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक किसान आंदोलन अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है और इसे कोई सुखद बात नहीं कहा जा सकता। प्रजातंत्र में प्रजा और तंत्र का आमने-सामने होकर एक-दूसरे को अपनी शक्ति प्रदर्शित करना प्रजातंत्र के पतन के रूप में देखा जा सकता है। किसान आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता जो अब तक मानी जा सकती है, वह यह है कि यह शांतिपूर्ण रहा है और जनता इनके साथ जुड़ रही है। 26 जनवरी को लाल किला और आइटीओ पर हंगामे हुए। सरकार ने उन घटनाओं को किसानों की रैली से जोड़ा, जबकि प्रत्युत्तर में किसानों ने इसे सरकार द्वारा प्रायोजित हिंसा करार दिया और समाज में यह संदेश अधिक गया कि किसान तो शांतिपूर्ण धरना कर रहे हैं परंतु सरकार ही इनमें फूट डालने और हिंसा भडक़ाने का कार्य कर रही है। अब भारत एक प्रजातांत्रिक देश है, इसमें विपक्ष भी होता ही है चाहे वह कमजोर हो चाहे सशक्त और विपक्ष का काम सरकार को कटघरे में खड़ा करना होता है। ऐसे में यदि विपक्ष सरकार पर सवाल उठा रहा है तो गलत क्या। हमारे देश में त्रासदी यह है कि हर काम में राजनीति चलती है। किसी ठेके पर कर्मचारी लगवाना हो, वहां भी राजनीति चलती है, कोई सडक़ बनती है, कोई पुल बनता हो। तात्पर्य यह है कि कोई भी कार्य बिना राजनीति के पूर्ण नहीं होता। अत: विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि किसान आंदोलन में भी राजनीतिक सक्रिय हैं, जबकि किसानों की ओर से इसे गैर राजनीतिक कहा जा रहा है। किसान आंदोलन में देखने में आ रहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष सभी अपने आपको किसान हितैषी बता रहे हैं। और जो किसानों के साथ मोर्चे पर पहुंचता है, वह भी किसी न किसी रूप में इस बात को अत्याधिक प्रचारित करना चाहता है और करता भी है। उसके पीछे आगामी समय में राजनैतिक लाभ लेने की ही तो मंशा है। 6 फरवरी को जो चक्का जाम किसान आंदोलन की ओर से घोषित है, वह जो निर्देश किसान नेताओं द्वारा दिए जा रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि वह जनता को परेशान नहीं करना चाहते और नहीं करेंगे। इस तरीके से वह जनता का सहयोग अपनी ओर और बढ़ाना चाहते हैं। इस तरीके से वह सरकार को अपनी शक्ति जोकि प्रजातंत्र में जनता होती है, प्रदर्शित करना चाहते हैं। इस तरीके से वह सरकार को मजबूर करना चाहते हैं। Post navigation शीशे के घरों में रहने वाले दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते ! सरकार की तानाशाही के ख़िलाफ़ सफल रहा चक्का जाम -चौधरी संतोख सिंह