भारत सारथी/ ऋषि प्रकाश कौशिक ऐतिहासिक किसान आंदोलन में काँग्रेस की भूमिका पर आज नहीं तो कल उंगलियाँ अवश्य उठेंगी। काँग्रेस के भी नेता किसानों से एकजुटता दिखाने के लिए उनके बीच नहीं पहुंचे ; ना ही किसी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया। इस्तीफा नहीं दिया तो कोई विशेष बात नहीं है। सभी राजनीतिक दलों और नेताओं के विरोध प्रदर्शन या समर्थन के अपने अपने तरीके होते हैं। ज़रूरी नहीं है कि कांग्रेस नेता भी किसानों से हमदर्दी दिखाने का वही तरीका अपनाएं जो अभय चौटाला ने अपनाया है। लेकिन, काँग्रेस नेताओं से किसान शुभचिंतकों ने इतनी अपेक्षा ज़रूर की होगी कि किसानों से हमदर्दी दिखाते हुए जिस शख्स ने ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाया है उसकी आलोचना तो नहीं होनी चाहिए; कम से कम उसकी नीयत पर शक तो नहीं करना चाहिए। विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर किसानों के साथ एकजुटता दिखाने वाले इनेलो के अभय सिंह चौटाला की आलोचना करते समय विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा मर्यादा ही भूल गए और अभय चौटाला को सरकार का मददगार बता दिया। हुड्डा यह भूल गए कि बीजेपी के पास कुल 55 विधायकों की ताकत है जबकि बहुमत साबित करने के लिए 45 विधायक चाहिएं। इस समय दो स्थान रिक्त होने के कारण कुल सदस्य संख्या 88 है जिस पर 45 सदस्यों से बहुमत बनता है। एक व्यक्ति के इस्तीफा देने से अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा और विपक्ष की हार हो जाएगी, यह सोचना बचकानापन है। महज आलोचना के लिए आलोचना करना जैसा लगता है। यदि हुड्डा यहीं रूक जाते तो उनकी आलोचना के मायने या अंतर्निहित अर्थ नहीं ढूंढ़े जाते। हुड्डा ने सन् 2000 में हुए कंडेला कांड का ज़िक्र कर अभय चौटाला को नीचा दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने इस पक्ष को नजरंदाज कर दिया कि अभय चौटाला ने किसानों के लिए बड़ा त्याग किया है। कितनी अजीब बात है, काँग्रेस अपनी लड़ाई को तो अभूतपूर्व मान रही है जबकि दूसरों की लड़ाई को महत्त्वहीन समझ रही है। काँग्रेस और इनेलो दोनों ही किसानों के साथ हैं; दोनों ही पार्टियाँ अपने अपने तरीक़े से किसानों का सहयोग कर रही हैं। ऐसे में एक सहयोगी को दूसरे सहयोगी की आलोचना करना और पिछला इतिहास दोहरा कर नीचा दिखाना शोभा नहीं देता। यह घड़ी आलोचना की नहीं, सराहने की है। पिछले इतिहास के पन्ने उलट कर एक-दूसरे की कमियाँ उजागर करने का समय नहीं है। काँग्रेस का इतिहास भी तो कुरेदा जा सकता है। काँग्रेस को दूसरों का इतिहास बताते समय यह एहसास होना चाहिए कि हरियाणा में उसका अपना भी कोई स्वर्णिम इतिहास नहीं रहा है। जिनके अपने घर शीशे के हों वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते हैं। Post navigation कैंपेन आई केयर गुरुग्राम‘ के तहत 15 फरवरी से आँखों की दृष्टि की जाँच के लिए लगाए जायेंगे निशुल्क कैंप चक्का जाम : लक्ष्य शक्ति प्रदर्शन