सड़कों पर मार पीट , दबाने के लिए षड्यन्त्रकारियों की पूरी टीम तैयार रहती है
—  धर्म हमें उदार और उदात्त भी करता है’ , तभी तो करोड़पति भी दूसरों की चप्पलें उठा-उठाकर रखते है
— उनके पास ऐसा क्या है जो हमसे अलग है?’‘दस गुरु औऱ गुरुग्रंथ साहिब…’

अशोक कुमार कौशिक 

 ये सरकार मानो षड्यंत्र रचने , जनता का नुक़सान करवाने , उन्हें बाटने , लड़वाने ही आयी है, फिर किसानो को और आम जनता को लड़वा दिया , जे॰एन॰यू॰ हो, दिल्ली दंगे हो अथवा आज का किसान आंदोलन हो हर जगह विरोध करने वालों के ख़िलाफ़ माहोल और गुंडे पहले खड़े कर दिए जाते हैं। ये मैंने पिछली सरकारों में कभी नहीं देखा की जब भी सरकार का विरोध हो तो सरकार के समर्थन में रैलियाँ निकल रही हो, लोग सड़कों पर मार पीट कर रहे हो , विरोध को दबाने के लिए मानो षड्यन्त्रकारियों की पूरी टीम तैयार रहती है । इनके माई बाप जो अंग्रेजो के साथ काम करते थे उनसे ही फूट डालो राज करो सिखा है , शर्म आती है ऐसी सरकार है हमारी ।

दिल्ली में किसान आंदोलन की तस्वीरें, वीडियो औऱ रिपोर्ट्स देखते-पढ़ते अक्सर एक सवाल बार-बार उठता है कि आखिर सिख अलग कैसे हैं औऱ क्यों हैं? आज दो महीने हो गए हैं किसानों को दिल्ली में। बड़ी संख्या में किसानों ने दिल्ली की सीमा के इर्द-गिर्द डेरा डाला हुआ है।

मजाल है कि कहीं से किसी उपद्रव, अव्यवस्था, अशांति की कोई खबर आई हो। ऐसा नहीं है कि इस प्रदर्शन में सिर्फ पुरुष ही हैं, महिलाएँ भी हैं और बच्चे भी। दिल्ली में इस बीच बारिश भी हुई और कड़ाके की ठंड भी पड़ी, लेकिन जिस साहस और आत्मविश्वास से किसान डटे हुए हैं वो काबिले तारीफ है।

कई साल पहले नवरात्रि के दौरान उस पुराने शहर के एक मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की चप्पल रखने के लिए एक छोटा टेंट लगा रखा था। वहाँ तक तो सब ठीक था, लेकिन उस टेंट में महँगे कपड़े पहने स्त्री औऱ पुरुष श्रद्धालुओं की चप्पलें उठा-उठाकर रैक में रख रहे थे।  उस छोटी-सी दुनिया में यह मेरे लिए बड़ा अनुभव था।

करोड़पति लोग दूसरों की चप्पलें उठा-उठाकर रख रहे हैं। यह मेरे लिए और भी सोचने वाली बात थी। मैं सोचता रहा कि आखिर उन्होंने यह क्यों चुना? लोग प्याऊ लगा देते हैं, उस पर किसी को बैठने के लिए हायर कर लेते हैं। ये लोग भी तो ऐसा कर सकते हैं न?

कई साल लगे इस राय तक पहुँचने में कि दरअसल अहंकार का शमन इतना आसान नहीं होता है। ये सब कुछ जो हम करते हैं वह अहंकार से निजात पाने के लिए करते हैं। हालाँकि यह हम नहीं चुनते हैं, लेकिन यह हमें हमारी परंपरा, हमारे धर्म हमें सिखाते हैं।

 एक सवाल उठता है पैगंबर के खिलाफ एक शब्द भी कहे जाने के विरोध में पूरी दुनिया का मुसलमान उत्तेजित हो जाता है, लेकिन अपने ही लोगों की मदद करने के लिए कितने मुसलमान सामने आते हैं? इस सिलसिले में एक दोस्त के बात हुई तो मेरे मन में सवाल आया कि हर साल जकात देने वाले मुसलमान रोहिंग्याओं के खिलाफ हो रहे अनजस्ट को लेकर आक्रोशित तो होते हैं, मगर मदद करने के लिए तत्पर नहीं होते हैं।

एक महान प्राचीन धर्म के अनुयायी सुदूर इतिहास की कड़वाहट को अपनी नफरत के लिए ढाल बनाते हैं। एक अपेक्षाकृत नए धर्म के अनुयायी अपने अतीत-वर्तमान की कड़वाहट को ढाल भी बनाते हैं औऱ हथियार भी बनाते हैं तो फिर एक बिल्कुल ही नए धर्म के अनुयायी अपने इतिहास की कड़वाहट को मरहम बनाकर दूसरों को राहत पहुँचाते हैं।

हिंदूओं की नाराजगी मुसलमानों से है तो वे हरसंभव उन्हें पीड़ित-प्रताड़ित कर रहे हैं और अपनी नफरत को इतिहास के संदर्भ से जायज ठहराते हैं। मुसलमान अपनी स्थिति के लिए दुनिया में उनके खिलाफ हो रहे षडयंत्र के प्रतिकार के हर तरीके को जायज ठहरा रहे हैं। इन दोनों के ठीक उलट सिख हैं, इतिहास ने उनके साथ भी कम अन्याय नहीं किया है।

विभाजन के दौर के विस्थापन से पहले भी सिखों को इतिहास में खून और हिंसा का सामना करना पड़ा है… फिर 1984… फिर ऐसा क्या है कि सिख न तो हिंदुओं के प्रति शिकायती है औऱ न ही मुसलमानों के प्रति। फिर से वह क्या है जो सिखों को सिख बनाता है? किसान आंदोलन में भी सिखों के खिलाफ भी जनता में खालिस्तानी जहर भरने का भरकस प्रयास किया गया है।

आज का समाज उससे सैकड़ों साल आगे आ चुका है !कुछ दक्षिण पंथी और पोंगापंथी ताक़तें जबरन अपना सर उठाकर , लोगों को विज्ञान की वस्तुओं के सहारे से ही वैज्ञानिक चेतना कुंद करने के कार्य में लगी है ।जागरूक , प्रोग्रेसिव लोगों की ज़िम्मेदारी है कि इन धार्मिक बैसाखियों की मदद से सियासत का सफ़र करने वालों की यात्रा का अंत किया जाए।

हाँ, सच ही तो। दुनिया का शायद एकमात्र धर्म है जो किताब की पूजा करता है। क्या किताब की पूजा सिर्फ प्रतीक के तौर पर ही है? आखिर ऐसा क्यों है कि इसी धरती पर जन्मे इस धर्म के अनुयायियों का डीएनए इसी मिट्टी में जन्मे दूसरे धर्म के अपने भाइयों से अलग है?

सब कुछ दूसरे देश में छोड़कर, अपनों को खोकर, अपनों से बिछड़कर, कई तरह के अत्याचार औऱ अन्याय को सहकर भी वो क्या है जो सिखों को सिख बनाता है? क्यों नहीं सिखों के मन में किसी के प्रति नफरत है, क्यों वे मानव सेवा के हर अवसर पर बिना किसी कड़वाहट के उपस्थित रहते हैं?

‘उनके पास ऐसा क्या है जो हमसे अलग है?’ ‘दस गुरु औऱ गुरुग्रंथ साहिब.. .’‘मतलब धर्म हमें उदार और उदात्त भी करता है!’  ‘नहीं, सिर्फ उन्हें करता है जो धर्म को धारण करते हैं, ग्रहण करते हैं।’
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