–कमलेश भारतीय हमारे एक बड़े नेता ने बहुत गर्व से कहा कि मैं यह देश बिकने नहीं दूंगा । मेरी छाती छप्पन इंच की है और आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं । जम्मू कश्मीर की सीमा पर यदि एक जवान का भी सिर कटा तो बदले में दस सिर लाऊगा । हमने भरोसा किया । काला धन बाहर लाऊंगा और इतना लाऊंगा कि सबके खाते में पंद्रह पंद्रह लाख रुपये डाल सकूंगा । आप मेरा साथ दो मैं यह देश कभी बिकने नहीं दूंगा और न झुकने दूंगा । इस तरह के दिवास्वप्न दिखा वह नेता हमारा सब कुछ हो गया और हम आंख मूंद कर उसके ऊपर विश्वास करने लगे क्योंकि उसने यह भी विश्वास दिलाया कि वह हमारा चौकीदार है । फिर क्या हुआ कि एक बड़ा उद्योगपति हजारों करोड़ रुपये लेकर देश से फरार हो गया । एक दूसरा हीरे मोती का व्यापार करने वाला ऐसे ही कितनी बड़ी रकम का घोटाला कर विदेश भाग गया और दूसरा चुनाव जीतने के लिए उस हीरे मोती वाले कारोबारी को बस जल्द ही पकड़ कर देश लाने वाले हैं के दम पर और जम्मू कश्मीर के पुलबामा अटैक से हम थरथरा उठे और फिर सारे वोट उसकी झोली में डाल दिये । यह क्या हुआ कि पहले रेल ठेके पर और फिर एयरपोर्ट यानी हमारा महाराजा भी बिक जाने की खबरें आने लगीं । बीएसएनएल की हालत खस्ता और जियो के टाॅवर फैलते चले गये । हमारी हर व्यवस्था बिगड़ती चली गयी । यह सब किसी एक बड़े उद्योपपति को फायदा देने के लिए किया जाने लगा और देशवासी सब समझने लगे । भेद खुलने लगा । कभी किसी प्रधानमंत्री ने किसी निजी कम्पनी को लांच किया? पर हमारे प्रधानमंत्री ने किया और हम अवाक् देखते रह गये । मजेदार बात कि बस इमर्जेंसी नहीं लगाई पर नोटबंदी करके सब आर्थिक ढांचा तहस नहस कर दिया । लोग बैक की कतारों में लगे और कुछ मरे । यह भी गरीब वोटर को बहुत बढ़िया लगा कि कैसे कुछ अमीर भी उनके साथ कतारों में खड़े हैं । अब पंद्रह लाख की बात कौन करे ? फिर हम जीएसटी में उलझे । फिर आया मुआ कोरोना । बड़े नेता ने हमे किसी औलिया की तरह ताली और थाली बजाने की सलाह दी और हमने घर की मुंडेर पर खड़े होकर खूब जोर से ताली और थाली भी बजाई पर मुआ कोरोना बढ़ता ही गया । गरीब आदमी को बड़े शहरों से गांवों की ओर कूच करना पड़ा ।। कुछ राह में ही दम तोड़ गये । उन्हें अपने गांव की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई । महाराष्ट्र में एक खलनायक ने नायक जैसा काम किया लेकिन उसे परेशान किया जा रहा है कि तुम खलनायक थे फिर नायक बनने की कोशिश क्यों की ? अब आये तीन कृषि कानून और देश बिकने के बिल्कुल कगार पर आ गया । किसान को यह बात समझ आ गयी और दिल्ली की सारी सीमाओं पर धरने शुरू कर दिये । यह भी एक फकीर को बर्दाश्त नहीं हुआ । लाल किले के इतने अपमान की कल्पना किसने की थी ? वह लाल किला जो हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक है लेकिन पता चल रहा है कि लाल किला भी ठेके पर दे रखा है । किसानों को उठाने का काम शुरू किया । किसानों में एक टिकैत भी है जिसने कहा कि मैं यहां से नहीं उठूंगा । इस तरह किसान आंदोलन बचा और चल रहा है लेकिन अब लोकल लोग भेज कर किसानों के तम्बू उखाड़े जाने के भयावह कृत्य सामने आने लगे हैं । क्या यह सचमुच लोक लोग हैं ? अश्वस्थामा ने भी पेडव शिवीर पर आधक रात हमला किया था -अनैताक हमला । टिकैत कहता है कि बिना जीते गांव नहीं जाऊंगा । फकीर जी , झोली उठा कर जब जाओगे तब सही लेकिन कृषि कानूनों को लागू रखने का राजहठ छोड़ दीजिए । Post navigation अभय ने इस्तीफा देकर कमजोरी दिखाई : भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक काॅल , एक कदम , एक दिल की दूरी …..बस एक दिल चाहिए