— राकेश टिकैत कट्टर भाजपाई होने के बावजूद हो गया हृदय परिवर्तन, अपनी गलती महसूस कर रहे है. — हरियाणा  के 14 जिलों में इंटरनेट सेवा बीती रात बंद की गई ताकि चैनलों को देखने के लिए बाध्य हो जनता. – दिल्ली में इजरायली दूतावास के बाहर बम विस्फोट करता है किसी षड्यंत्र की ओर इशारा

अशोक कुमार कौशिक

ये पहली सरकार है जिसने किसानों को देशद्रोही सिखों को खालिस्तानी बताया और देशभक्ति की चाशनी में डुबोकर अपने कार्यकर्ताओं से गाली दिलवाईं। सिंघु बॉर्डर पर बहुत किसानों ने  कहा कि हमने 2014 और 2019 में भाजपा को वोट दिया था। हमें नहीं मालूम था कि हमारे वोटों से बनी सरकार हमें ही खालिस्तानी और देशद्रोही बताएगी। ये मोदी सरकार का दुस्साहस ही कहा जाएगा कि वह अपने वोटर को भी देशद्रोही कह देती है। ये सत्ता का अहंकार है। किसान आंदोलन खत्म नहीं हुआ उल्टे किसानों पर भाजपा के लोगो कि ज़्यादती ने उसे  मज़बूत किया है।

किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए जब साम, दाम, दंड, भेद कुछ भी काम न आया तो अब वे उसी दांव पर उतर आए हैं जिसमें उन्हें दशकों का अनुभव है, महारत हासिल है । लोगों को ही आपस में लड़वा देना, दंगे भड़का देना। नरमुंडों की नींव पर सजे सिंहासन की यही मजबूरी भी होती है। जब-जब उनका सिंहासन डोलने लगता है, उसे स्थिर करने के लिए और ज़्यादा नरमुंडों की जरूरत पड़ती है। लेकिन दुनिया तमाम का इतिहास देख लीजिए, ऐसे सिंहासनों पर बैठे शासकों को ख़ुद के ख़ुदा होने का कितना ही यक़ीन क्यों न रहा हो, उनका अंत हमेशा शैतानों वाला ही हुआ है।

सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नही हो सकता हर शाम की एक सुबह होती है फिर ये शाम तो एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत लायी गयी थी । सरकार के साथ किसानों की विगत अंतिम वार्ता में सरकार का यह कहना कि अब हम “इससे बेहतर विकल्प नही दे सकते” स्पष्ट था कि सरकार की आगे की मंशा क्या है। किसान भली भांति अवगत थे कि सरकार अब झूठे मुकदमे और पुलिसिया कार्यवाही पर उतारू होगी किन्तु अपनी सदभावना एवं ईमानदारी के अति आत्मविश्वास में सरकार के षड्यंत्रकारी मंसूबों को समझने में असफल रहे।

सरकार के पास किसानों के विरुद्ध तीन हथियार गोदी मीडिया, सोशल मीडिया और ट्रोल पार्टी  जिसका कि वह असफल प्रयोग कर चुकी और ये प्रयोग निष्प्रभावी हो चुके । अब सरकार की नजर अपने अंतिम  हथियार हिंसा भड़काना, झूठे मुकदमे, पुलिसिया कार्यवाही और भाजपा के लोगों की फौज के सहारे किसान आंदोलन की गरिमा को खंडित करने के लिए ही यह षड़यंत्र रचा गया । ताकि इन अंतिम अस्त्रों का प्रयोग किया जा सके और अब किया भी जा रहा है किंतु याद रहे सच्चाई और ईमानदारी अंततः रंग लाती ही है। सरकार के ये अंतिम अस्त्र भी असफल साबित हो रहे हैं। अब लगने लगा है कि किसान सफल होकर ही लौटेंगे।

26 जनवरी को भी जो षडयंत्र रचा गया था तुरंत कुछ घंटों में ही दीप सिद्धू वगैरह की पोल खोल दी गई और सरकार के धुरंधरों के मंसूबे पूरी तरह सफल नही हो पाए थे। इसके बाद प्रचारित किया गया की सौ पचास सदस्यों वाले एक दो किसान संगठन आंदोलन छोड़ कर गए । मीडिया ने दिखाया की तमाम किसान संगठनों ने आंदोलन का साथ छोड़ा। सौ पचास भाजपाई गुंडे सिंघु बार्डर पर सरकार के पक्ष में नारेबाजी करने लगे। मीडिया ने दिखाया की लोकल गाँव वाले किसानो ने विरोध में आये हैं।

सरकार की इस हिमाकत हरियाणा-राजस्थान के गाँव मसानी, डूंगरवास, खेड़ा, शाहजहांपुर- जयसिंहपुर  खेड़ा बॉर्डर, फिर सिंधु बॉर्डर पर, उसके बाद गाजीपुर बॉर्डर पर स्थानीय किसानों/ग्रामीणों के नाम पर भाजपा के लोगों ने जो उत्पात मचाया अव धीरे धीरे सार्वजनिक हो रहा है। यह योजना कोई स्थानीय स्तर पर हुई हो ऐसा भी नहीं दिखाई दिया। इसका प्रयास ऊपर के इशारे से किया गया जो बाद में सिंधु बॉर्डर और गाजीपुर में भी दौहराया  गया है। सिंधु बॉर्डर पर उत्पात मचाने वाला अमन डबास है । यह रहता बवाना में है और उपद्रव कर रहा था सिंधु बॉर्डर जा कर। यह कोई सामान्य स्थानीय नागरिक नही है। भाजपा का नेता हैं, इसकी पत्नी अंजू डबास, बवाना विधानसभा से भाजपा की निगम पार्षद है। गाजीपुर बॉर्डर पर भी बीजेपी के स्थानीय गुर्जर विधायक ने ओछी हरकत नही की होती तो यह आंदोलन बीती रात को ही समाप्त हो जाता । किसानों की तरफ से अब तक जिन लोगों को पकड़कर पुलिस के हवाले किया गया है उनके बारे में पुलिस और सरकार ने कोई बात सार्वजनिक नहीं की है?

इन लोगो के पास मीडिया , पुलिस, फ़ौज , नौकरशाही , आई टी सेल की पूरी फ़ौज , नफरती चिंटुओं की ज़मात से लेकर हर ताकत है जो किसान आंदोलनों को ख़तम करने में आमादा है। अब दिल्ली पुलिस ने 44 लोगों को गिरफ्तार किया है, इनमें दिल्ली-हरियाणा के बीच के सिंघु बॉर्डर (Singhu Border Clash) पर शुक्रवार को पुलिसकर्मी पर तलवार से हमला करने का आरोपी भी शामिल है। सिंघु बॉर्डर तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का केंद्र है। पुलिस को सिंघु बॉर्डर पर किसानों और पुरुषों के एक बड़े समूह के बीच झड़प को शांत करने के लिए शुक्रवार को आंसू गैस के गोले के साथ लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा था। युवकों का यह समूह खुद को स्थानीय निवासी बता रहा था और प्रदर्शनकारियों से रास्ता खाली करने को कह रहे थे।

दिल्ली में बीती शाम हुई इस्राइल दूतावास के बाहर कथित बम विस्फोट की घटना टीवी पर आईं । किसी को खरोंच तक नहीं आई है। यह पुलवामा की तरह आपका ध्यान भटकाने की कोशिश हो सकती है। क्योंकि किसान आंदोलन के पुनर्जीवित होने पर तमाम शक्तियाँ परेशान हैं।

इस घटना के बाद गोदी मीडिया किसान आंदोलन ठीक से दिखाएगा नहीं। लेकिन उसे मसाला तो चाहिए। कोई है जो गोदी मीडिया के लिए ऐसे मसाले का इंतज़ाम करता और कराता है ।अब गोदी मीडिया के लिए इस्राइली दूतावास के बाहर की घटना किसान आंदोलन से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। इस घटना में हिन्दू मुसलमान का रंग देने का पूरा फ़्लेवर है।

इस्राइली दूतावास के बाहर कथित बम विस्फोट की घटना से ज़्यादा गंभीर ख़बर हरियाणा में 14 ज़िलों को छोड़कर इंटरनेट बैन कर दिया गया। यह पाबंदी फ़िलहाल 30 जनवरी तक है। हरियाणा का शहरी आदमी इंटरनेट बैन होने पर हाय मैया और हाय दैया कर रहा है। यह एक राज्य का हाल है। जल्द ही कई राज्यों में ऐसा होगा। तब यह शहरी आदमी क्या करेगा? उदाहरण के रूप में कश्मीर के लोगों को तो इंटरनेट के बिना रहने की आदत पड़ गई है। देश कश्मीर में इंटरनेट बैन को चुपचाप देखता रहा और पूरी निर्लज्जता से उसे सही ठहराता रहा।

अब क्या हुआ? हरियाणा में अगला चुनाव होने तक यही हालात रहने वाले हैं। सरकार को लगता है कि वह हरियाणा में इंटरनेट बैन कर सूचना का प्रवाह रोक देगी।
यह नामुमकिन है। सूचनाएँ ज़रूर बाहर आती हैं।

ख़बर है कि हरियाणा के एक बड़े हिस्से में किसान सड़कों पर शांतिपूर्ण तरीक़े से बैठे हैं। हिसार-रोहतक राजमार्ग जाम है। रोहतक के पास मदीना गाँव सड़क पर है। चंडीगढ़ जाने का रास्ता बंद है। जीन्द में कंडेला गाँव के लोग सड़क पर आ गए हैं। फोगाट खाप की महापंचायत में आज शाम फ़ैसला लिया गया कि भाजपा-जेजेपी (दुष्यंत चौटाला) के नेताओं का हुक्का पानी क़ृषि क़ानूनों की वापसी तक बंद रहेगा। अब तो हुड्डा खाफ भी किसानों के समर्थन में आ गयी है। हरियाणा में खाप पंचायत के फ़ैसले हवा में नहीं लिए जाते। फोगाट खाप बहुत प्रोग्रेसिव सोच वाली खाप है।

हरियाणा इस समय शांत नहीं है। मुख्यमंत्री खट्टर काफ़ी परेशान हैं। सबसे अलोकप्रिय वही हैं। डर है कहीं भाजपा नेतृत्व उनकी क़ुर्बानी न माँग ले। सिंधु बॉर्डर पर कल किसानों व पुलिस पर जिन स्वयंसेवकों और भगवा गुंडों ने जो पथराव किया है, उससे खट्टर की लोकप्रियता में और कमी आ गई है।

जबकि सच यह है कि सभी धरना स्थलों पर किसान मजबूती से डटे हुए हैं। किसानों की तादाद पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गई है। लगातार किसान जत्थे बनाकर धरना स्थलों की तरफ बढ़ रहे हैं। अलग-अलग गांवों, पंचायतों और खापों ने दिल्ली बॉर्डर जाने का ऐलान किया है।

हरियाणा के 14 जिलों में कल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई। आपको बताना चाहता हूं कि अब इंटरनेट को बंद करके टेलीविजन के जरिए आंदोलन को कमजोर करने वाली खबरों को प्रसारित किया जाएगा।

टेलीविजन की खबरों को देखकर किसी को भ्रमित होने की जरूरत नहीं है। अफवाहों से सावधान रहने और किसी भी तरह के उकसावे से बचने की जरूरत है। एकता और भाईचारा बनाए रखिए।

अगर ये इन काले कानूनों को लाने में सफल हो गए तो सन्देश ये जाएगा की भारत की जनता इतनी डम्ब है की इन्हे आसानी से बहलाया भटकाया जा सकता है। और अगर कोई जाग भी जाए तो उसे आसानी से दबाया जा सकता है । और यकीन मानिये — 2014 – 2019 का काल तो सिर्फ एक प्रयोग था । ये देखने के लिए की हमको कैसे कैसे भटकाया जा सकता है। असली लूट खसोट तो अब शुरू होगी। तमाम नीतियां ऐसी है जो बन्दर पार्टी ने लागू ही नहीं करि और पूंजीपतियों को अटका रखा है अपनी सत्ता के आधार और नौकरशाही में अपनी पकड़ बनाने के लिए। ये आप देख सकते है की कैसे ये लोग हठधर्मी बने हुए हैं क्योंकि दवाब इनके आकाओं की तरफ से है की कानून रद्द नहीं होने चाहिए। अब चूँकि ये छठा साल चल रहा है तो इन्हे हर वो काम करना पडेगा जो इनके पूंजीपति आका कहेंगे। इसलिए अगर अबकी पीछे हट गए तो आगे ऐसी ही  लूट खसोट की आर्थिक नीतियां लागू होती रहेंगी। फिर कहूंगा – की ये सिर्फ इस आंदोलन की बात नहीं है।

— आखिर क्यों हो गया राकेश टिकैत का हृदय परिवर्तन

राकेश टिकैत को शुरू से ही आरएसएस भाजपा का एजेंट मानते हुए इनको कभी सीरियसली नहीं लिया था, मुजफ्फरनगर दंगों में इनकी भूमिका ने भाजपा की काफी मदद की। एक समय ये भाजपा संघ की आंख के तारे बने हुए थे।

किसान आंदोलन में इनको प्लांट भी आंदोलन को विफल करने के लिए करवाया गया था , याद कीजिए उन्होंने एक मंदिर वाला बयान दिया था उसके बाद इनको ट्रोल किया गया हिंदु विरोधी साबित करते हुए ,किसान आंदोलन को सिर्फ सिक्ख आंदोलन साबित करने की कोशिश की गई थी, तब तक राकेश टिकैत भाजपा के ही एजेंडे पर चल रहे थे।

लेकिन वो वजह क्या है कि अचानक राकेश टिकैत मोदी सरकार के लिए खलनायक बन गए और सरकार इनके खिलाफ देशद्रोह की धारा लगा कर बलप्रयोग पर उतर आई ।

आपको बताएं कुछ रोचक जानकारी जो बिंदुवार नीचे दी गई है

1- पिछले 2-3 सप्ताह से इनके चेहरे पर नूर दिन ब दिन तेज होता दिखने लगा, इनका कॉन्फिडेंस बॉडी लैंग्वेज सब तेजी से इम्प्रूव हुआ , यूं लगने लगा कि अब ये सधे हुए कदम से कदमताल करना सीख गए है।

2 –  राकेश टिकैत को ही विज्ञान भवन में पीयूष गोयल ने कहा था कि आप ज्यादा मत बोलो हमारे पास सबकी फ़ाइल है हम सब जानते है। यह वीडियो काफी वायरल हुआ था।

3- किसान नेताओ से बातचीत करने के लिए  पीयूष गोयल  नरेन्द्र सिंह तोमर कमान संभाले रहे, एक बार अमित शाह भी आगे आए, कुछ और फुटकर मंत्री भी आए।

4-  राजनाथ सिंह का नाम बाद में इस लिस्ट (विज्ञान भवन वाले मंत्रियों)  में से हटा दिया गया था , उन्हें कोई लीड भूमिका नही दी गई।

5- राकेश टिकैत ने कभी भी राजनाथ सिंह पर कोई जवाबी हमला नही किया, जितनी बार भी उनका नाम लिया सम्मान के साथ लिया । टिकैत के सभी भाषण में राजनाथ का जिक्र चैक कर लीजिए।

6-  पूरे किसान आंदोलन में जहां खालिस्तान कनाडा और इंटरनेशनल फंडिंग की बात उठाई गई लेकिन एनएसए अजित डोभाल को ले कर कोई बड़ी न्यूज़ नही सुनने को मिली कि वो क्या कर रहे है? चाइना के अतिक्रमण पर भी उनकी कोई खबर नही दिखी है।

7-  एनएसए अजित डोभाल और राजनाथ सिंह दोनों ठाकुर है।

8- 26 जनवरी की परेड में एक वीडियो वायरल हो रखा है जहां राजनाथसिंह को ,चन्द्रगुप्त ने इशारे से परे हटने को कहा , वो वीडियो राजनाथसिंह की इंसल्ट करता है। क्योंकि वो उनके और कैमरों के बीच आ रहे थे…यह सिर्फ कैमरा प्रेम था या कोई खास इंटरनल रिपोर्ट ??  इससे पहले राजनाथ कभी भी इस तरह कदमताल करते हुए नही चले थे ,,राजनाथ क्या कोई भी नेता आपको इस फ्रेम में एक बराबर चलते हुए नही दिखेगा लास्ट साढ़े छह साल के शासन में।

9- इधर राकेश टिकैत के आंसू गिरे उन्होंने एक भावनात्मक भाषण दिया और उधर गेम पलट गया …यह सिर्फ संयोग नही हो सकता है  …

10- मेरा अनुभव यह कहता है कि टिकैत अकेले नही है, उनके साथ कुछ और ताकत भी है ,यही वजह रही कि कल उनके ऊपर एक साथ गोदी मीडिया और चन्द्रगुप्त लॉबी ने  अटैक किया उनका मजाक उड़ाया …लेकिन सब धुरंधर चित्त हो गए…बाजी पलट गई .
 

11-  26 जनवरी को भी जो षडयंत्र रचा गया था तुरंत कुछ घंटों में ही दीप सिद्धू वगैरह की पोल खोल दी गई और सरकार के धुरंधरों के मंसूबे पूरी तरह सफल नही हो पाए थे।

12- इन सब कनेक्टिंग डॉट्स को मिलाने पर एक बात समझ आती है कि कोई शक्ति,  कोई एक्सपर्ट  यहां राकेश टिकैत के साथ भी है …

13-  इन सब के बीच मत भूलिए कि अब जॉय बिडेन आ चुके है, अमरीकी एजेंसीज अब अलग मोड़ में है

उक्त विचार मेरे निजी है, मेरे अनुभव और एनालिसिस के आधार पर है , हो सकता है कुछ डॉट्स अभी कनेक्ट न हो रहे हो लेकिन इतना तय है कि इंडिया में अब #जिओ_पॉलिटिक्स  गेम किसान आंदोलन में कूद चुका है। मेरे इनपुट्स फिलहाल यही इशारा कर रहे है।

मेरा मानना है कि बतौर नागरिक एक संवेदनशील इंसान हम सबको किसान आंदोलन के पक्ष में खड़ा होना चाहिए । राकेश टिकैत कट्टर भाजपाई होने के बावजूद आज रो रहे है, अपनी गलती महसूस कर रहे है कि गलत पक्ष का साथ दिया है उन्होंने पूर्व में। आने वाले कल में यही हालात शायद आपके भी बनेंगे लेकिन हम उस टाइम हंसी नही उड़ाएंगे आपका साथ देंगे।
जानते है क्यों

क्योंकि हम स्वतंत्र है किसी के भक्त नही है।

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