— आंदोलन पर हावी रही भाजपा की अंदरूनी राजनीति— टिकैत ने नहीं किया आदित्य राज योगी और राजनाथ सिंह के ऊपर किसी प्रकार का अटैक— मिल गया किसानों को एक कलंदर अशोक कुमार कौशिक दुनिया में दो तरह के पतंगबाज होते है, एक जो खींच कर पतंग काटते हैं दूसरे वो जो ढील देकर काटते हैं। खींच कर काटने वालों के साथ दिक्कत ये है कि वो शोर बहुत मचाते हैं और ढील देकर काटने वाला चुपचाप काट ले जाता है। आंदोलन की शुरुआत में राकेश टिकैत सबसे कमजोर कड़ी मालूम पड़ते थे , और भाजपा से मिले होने के आरोप भी थे, इसके पीछे वाजिब वजह भी थीं। शुरुआत में जहां अन्य सारे आंदोलनकारी नेता बड़ी मजबूत स्थिति में नजर आ रहे थे, वहां से पूरा आंदोलन अब टिकैत ने झटक लिया है। कल रात से पहले मामला जितना सीधा दिख रहा था अब है नहीं। जहा टिकैत ने योगी जी और राजनाथ सिंह पर अभी तक कोई अटैक नहीं किया है तो उसके पीछे भी बड़ी रणनीति है। शायद यही कारण रहा कि यु पी पुलिस कल रात पीछे हट गई। किसान बनाम राज्य की लड़ाई को योगी जी ने फिर से केंद्र बनाम राज्य की लड़ाई बना ही दिया है। — अगर बीजेपी का फ़ायदा नुकसान देखा जाये तो अमित शाह ने आदित्यनाथ जी को फसा दिया है अब किसान आंदोलन मे । योगी जी भी बड़बोलेपन का शिकार हो गये हैं । आखिर टिकैत ने अपने गाँव का ही पानी पी लिया ।जरुरत क्या थी योगी जी आपको बिजली ,पानी कटवाकर चारो तरफ से घेरवाने की ?आप नही समझ पा रहे थे कि दो महीने से आंदोलनरत किसानों पर आखिर केंद्र सरकार (गृहमंत्री) क्यों नही सख्त हो पा रहे थे ?दिल्ली मे झंडा किसने फहराया सबको पता चल गया और जबरदस्त काउंटर किया किसानों ने । हर जगह केंद्र सरकार व उसकी भांड मीडिया व सोशल मीडिया के लठैतों से भी ऊंचे व बुलन्द आवाज में चिल्लाकर ,रोकर किसानों ने बता दिया कि आंदोलन को बदनाम सिर्फ़ भाजपा करना चाहती है । झंडा फहराने वाला भाजपाई है। योगी जी आप तब भी नही समझ पाये की कैसे अमित शाह ने गेंद आपके पाले में डाल दी है जो कि दो महीने से उनके सर का जंजाल थी ।कम कीजिये अपनी प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांछा योगी जी , नही तो ये मोदी अमित शाह की भाजपा है। ये किसी को भी बलि का बकरा बना सकती है ।मुझे आपके प्रधानमंत्री बनने से कोई समस्या नही लेकिन बनने से पहले पार्टी ही आपकी छवि धूमिल कर देगी तो हम एक फाईटर तो खो ही देंगे । बच के मुख्यमंत्री जी । दिल्ली की कुर्सी पर साधु नही बैठा है । बाकी गांव में कहावत है कि जाट मरा तब जानिए जब तेरहवीं हो जाए। — किसानों को कलंदर मिल गया है जब यह लिख रहा था तब सिंघु बार्डर पर बवाल चल रहा है सरकार उसी रोडमेप पर चल रही है जो 26 जनवरी के प्लान का ही हिस्सा है मतलब किसानों और पूरे आंदोलन को बदनाम करके जनता का समर्थन उनसे खिंच लेना इसके लिए वो लोकल कार्यकर्ताओ को आम नागरिक बता कर विरोध करवा रही है लेकिन यह नुस्खा अब चलेगा नही क्योकि इस आंदोलन को एक चेहरा मिल गया है जो किसी भी आंदोलन के सफल होने की सबसे पहली शर्त है इस देश मे आजादी से पहले और बाद में जितने भी आंदोलन हुए है उसका एक नायक था। जो पूरे आंदोलन को कंट्रोल करता था। हर निर्णय उसके सहमति से ही लिया जाता था। इसलिए वो आंदोलन अपने उद्देश्यों से भटके नही औऱ सफल भी हुए। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन हो या 1977 की जनता क्रांति। कभी उसके नायक बापू थे कभी जेपी औऱ लोहिया थे। राम मंदिर और लोकपाल आंदोलन जैसे घोर राजनीतिक आंदोलन भी आडवाणी और अन्ना हजारे जैसे चेहरों के दम पर सफल हुए थे लेकिन 2 महीने से चल रहे इस सबसे बड़े आंदोलन के कोई एक चेहरा ही नही था कल टिकैत के आंसुओं ने इस आंदोलन को नया नेता और नई दिशा दोनो दी है । लगता है राकेश टिकट नरेंद्र मोदी से सफल एक्टिंग करने में सफल रहे । इससे पहले यह आंदोलन टुकड़ो में चल रहा था। सबके अपने अपने एजेंडे थे और अपने अपने लक्ष्य । इसलिए आंदोलन अपनी दिशा भटक कर खत्म होने की कगार था। खुद नरेश और राकेश टिकैत इसको सम्मान जनक तरीके से समाप्त करने के पूरे मुड़ में थे अगर बीजेपी के स्थानीय गुर्जर विधायक ने ओछी हरकत नही की होती तो यह आंदोलन कल रात को ही समाप्त हो जाता । जाटों की सारी खाप में बालियान खाप सबसे बड़ी है और उसके नेता नरेश टिकैत है जो राकेश टिकैत के बड़े भाई है । कल राकेश टिकैत के आसुंओ ने जाट अस्मिता को जगा दिया था इसलिए इतनी तीव्र और उग्र प्रतिक्रिया जाट बेल्ट से आई थी और पूरे जाट बेल्ट में यह लड़ाई आत्मसम्मान की लड़ाई बन गयी है राकेश टिकैत महेंद्र सिंह टिकैत के लड़के है। दो बार चुनाव लड़ चुके है, 42 बार जेल जा चुके है। आंदोलन उनके डीएनए में है। लेकिन चुनावी राजनीति में उनके अंदर का आंदोलनकारी दबा दिया था। वो अपने पिता की विरासत सही ढंग से संभाल नही पा रहे थे । 2013 के मुज्जफरनगर में उनकी भूमिका पर भी कई सवाल उठ चुके है। उनका इतिहास ग्रे हो सकता है लेकिन उनके के आंसुओं ने सारे अतीत को धो दिया है। जिससे वो पवित्र होकर अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए अब पूरी तरह तैयार है । एक आंसू ने समंदर कर दिया किसान को कलंदर कर दिया राजनीति में एक्टिंग का बहुत महत्व है और यही एक्टिंग है जो मोदी जी को बाकी नेताओ से आगे खड़ा करती है. कल गाजीपुर बॉर्डर के ये हाल थे कि राकेश टिकैत के साथ महज दो ढाई सौ लोग बचे थे बाकी सभी अपने घरों को लौट चुके थे। भारी संख्या में RAF, दिल्ली पुलिस, यूपी पुलिस का जमावड़ा हो गया था बिजली काट दी गई थी पानी हटा दिया गया था। सोने के लिए लगे टैंट उखाड़ दिए गए थे। बसें बुला ली गई थीं. बज्र वाहन तैनात कर दिए गए थे. धारा 144 और 133 लगा दी गई थी । लग रहा था किसी भी पल पुलिस का लठ्ठ बज सकता है और आंदोलन “एक था आंदोलन” हो सकता है! सरकार फ्रंट पर खेल रही थी राकेश टिकैत की सांसे गले में अटकी थीं। बड़े भाई नरेश टिकैत आंदोलन को खत्म करने की घोषणा कर चुके थे। फिर…फिर क्या भाजपा को ओवर एक्टिंग करने की सूझी…गाजीपुर बॉर्डर पर 25 – 30 भाजपाई खड़े कर दिए गए। गोदी मीडिया बताने लगी ये देखो स्थानीय गांव के लोग नकली किसानों की खिलाफत करने सड़को पर उतर आए हैं। कहा तो ये भी जा रहा है कि स्थानीय विधायक भी राजनीति करने आ गए हालांकि इसके अभी तक ठोस सबूत नहीं मिले हैं! राकेश टिकैत करीब करीब समर्पण करने बाले थे लेकिन टिकैत आखिरी वक्त पर मोदी बन गए । अचानक से गला भर गया । आंखों से आंसू छलकने लगे । फफक फफककर रोने लगे । बोले पुलिस ने यहां से पानी हटवा दिया है । हमें मारने की तैयारी चल रही है। हम गद्दारी का दाग लेकर यहां से नहीं जाएंगे। अब पानी तभी पिऊंगा जब गांवों से ट्राली में भर भरकर पानी आएगा! माहौल बदल चुका था। यूपी के मुजफ्फरनगर में टिकैत के घर पर आसपास के गांव बालो का हुजूम उमड़ पड़ा ।फैसला किया गया राकेश टिकैत को अकेला नहीं छोड़ा जाएगा । पश्चिमी यूपी के गांव गांव में किसान इकठ्ठा होने लगे हालात इतने खराब हो चले कि शासन को लखनऊ खबर करनी पड़ी कि अगर पश्चिमी यूपी के किसी भी क्षेत्र में पुलिस ने कार्रवाई की तो हालात बिगड़ सकते हैं ।सर्द रातों में लोग ट्रैक्टर ट्राली कार स्कूटर लेकर दिल्ली की तरफ दौड़ने लगे। रास्ते खोले जा चुके थे पुलिस सड़को पर खड़ी जरूर थी लेकिन किसी को रोक नहीं रही थी। सिर्फ पश्चिमी यूपी ही नहीं बल्कि हरियाणा पंजाब के जाट बाहुल्य कई क्षेत्रों में किसान इकठ्ठे होने लगे । रोड जाम किये जाने लगे । उधर किसानों ने चंडीगढ़ दिल्ली हाइवे सहित कई रोड फिर से जाम कर दिए । वक्त बदल चुका था, फिजां बदल गई थी, माहौल बदल गया था । इसी बीच राकेश टिकैत की तबियत खराब होने की सूचना आई। आनन फानन में प्रशासन ने डॉक्टर भेजा। जांच हुई तो पता चला मामूली सा ब्लड प्रेशर बढ़ा है घबराने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन शासन और प्रशासन घबरा चुका था। कुछ ही देर में गाजियादबाद के डीएम और एसपी गाजीपुर बॉर्डर पहुंच गए । लोगों में हलचल बढ़ी। इसी बीच डीएम और एसपी राकेश टिकेत से मिलकर बाहर निकलते हैं । मीडिया डीएम साहब के मुंह पर माइक लगाकर पूछती है,क्या हुआ ? पुलिस कितनी देर में कार्रवाई कर रही ? अधिकारी कहते हैं क्या बात कर रिये हो मियां । हम तो यहां राकेश टिकैत के हालचाल लेने आये थे। रात को ही गाजीपुर बॉर्डर पर बिजली वापिस आ गई लोगो को उठाने आई पुलिस खुद उठने लगी । आंदोलन स्थल पर लोगों की भीड़ बढ़ने लगी, तिरंगे लहराए जाने लगे । देखते ही देखते माहौल फिर बदल चुका था। ये एक्टिंग का दौर है साहब, राजनीति हो या आंदोलन यहां एक्टिंग बहुत जरूरी है। — मीडिया और ब्यूरोक्रेसी की भूमिका मीडिया और ब्यूरोक्रेसी ने मिलकर भाजपा को तगड़ा फंसा दिया है। अब काले कृषि कानूनों की वापसी हो या न हो दोनों तरफ बीजेपी के लिए नई मुसीबत खड़ी हो रही है। एक तरफ समूचे काऊ बेल्ट में बीजेपी का जनाधार जमींदोज हो रहा है दूसरी तरफ अब तक हाशिये पर खड़े तमाम नेताओं को नई ऊर्जा मिल गई है। यह कुछ ऐसा जैसा जेपी आंदोलन के दौरान हुआ था। आडवाणी, नीतीश, लालू, मुलायम, जनेश्वर, जार्ज को कौन जानता अगर आपातकाल न लगा होता? बीजेपी और मोदी इस फजीहत से बच सकते थे जब तीसरे चौथे दौर की बातचीत चल रही थी। अगर उस वक्त काले कृषि कानून वापस ले लिए जाते तो किसानों और भाजपा दोनों का सम्मान रह जाता। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नही है कि मोदी कपड़े पहनने से लेकर कानून लागू करने मे मीडिया की ओर देखते हैं। वही उनकी अमिताभ कांत जैसे नौकरशाहों की ओर भी रहती है जो कहते हैं कि हिंदुस्तानियों को कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र दे दिया गया है। मीडिया पहले से ही किसानों को देशद्रोही बता रहा है। ब्यूरोक्रेसी की मर्जी के बिना यह कानून लागू होना संभव ही न था। यह सेल्फ गोल सबसे ज्यादा यूपी, पंजाब और हरियाणा में असर डालने जा रहा है। असम में किसान शून्य फीसदी ब्याज पर फसल ऋण दिए जाने के वायदे से हटने पर सख्त नाराज है।आज आलम यह है कि बंगाल असम में भाजपा कृषि बिल के मुद्दे पर चुनाव लड़ने का साहस नही दिखा पा रही है। केंद्र में राजनाथ सरीखे नेता ताक लगाए बैठे हैं कि कब कुर्सी का पावा थोड़ा सा खिसके। अब यह आंदोलन महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ समेत जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नही हैं वहां की सत्ताधारी पार्टियों को और मजबूती देगा। यूपी में एक वर्ष बाद ही चुनाव हैं अब वहां के शक्ति समीकरण बदल जाएंगे। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नही होगी कि आप एक अहंकार में मद सरकार का पतन देख रहे हैं। — कल शाम कंपनी मीडिया के एक बड़े कारोबारी चैनल ‘आज तक’ पर मेरे लिए एक यादगार क्षण था। स्टूडियो से अंजना ओम कश्यप ने घोषणा की, “राकेश टिकैत सरेंडर करेंगे।” इस घोषणा के बाद अंजना ओम कश्यप ने रिपोर्टर चित्रा त्रिपाठी को लगभग टास्क दिया कि इसे साबित कर दो। जितनी जल्दी हो सके। चित्रा त्रिपाठी राकेश टिकैत के पीछे पड़ गयीं। लगभग बीस बार से अधिक उन्होंने कहा, ” आज आप सरेंडर कर रहे हैं ?” कभी पूछने के लहज़े में तो कभी राकेश टिकैत को ही बताने के लहज़े में, आज आप सरेंडर करने जा रहे हैं।” किसान नेता राकेश टिकैत अपनी बात पर अडिग थे। उन्होंने कहा था, “हम सरेंडर नहीं कर रहे बल्कि सुप्रीम कोर्ट से दीप सिद्धू और उनसे संबंधित लोगों के बारे में जाँच की मांग करते हैं।” चित्रा त्रिपाठी ‘आज तक’ की अभिलाषी घोषणा को फिर भी साबित करने में जी जान से लगी थीं। अंत में मैंने देखा कि राकेश टिकैत ने मंच की ओर बढ़ते चित्रा त्रिपाठी के सिर पर हाथ जैसा रखा। मानो कह रहे हों बेटी परेशान मत करो मुझे मंच तक जाने दो वहीं बताउंगा क्या करना है। मैंने यह क्षण देखा तो दिल में नमी महसूस की। कितना अमानवीय कर दिया टीवी ने पढ़ी लिखी स्त्रियों को। मेरा ख़याल है चित्रा त्रिपाठी अगर महसूस कर पायीं होंगी तो उन्होंने अपनी क्रूर पत्रकारिता के बीच भीड़ में कल शाम एक इंसान का अपने सिर पर आता हुआ हाथ महसूस किया होगा। कोई कुछ भी कहे राकेश टिकैत इंसानियत से भरे सरोकारी किसान नेता हैं। तभी ऐसा हुआ होगा कि कल वे भावुक हुए और उसके बाद देर रात लोग उनके समर्थन में सड़क पर जुटने लगे थे। मैं एंकर चित्रा त्रिपाठी को नहीं जानता। उनके किसी करीबी मित्र से भी परिचय नहीं है। लेकिन मैं हमेशा जानना चाहूंगा कि कल शाम चित्रा त्रिपाठी ने राकेश टिकैत के लिए वाक़ई क्या महसूस किया? कुछ महसूस किया भी या नहीं ? अगर चित्रा त्रिपाठी वह महसूस कर सकी होंगी जिसका मुझे अनुमान है और कभी बता सकेंगी तो वही है जिसकी हत्या मीडिया इन दिनों लगातार कर रहा है। इसी हत्यारी प्रवृत्ति के कारण अंजना ओम कश्यप और रुबिका लियाकत स्त्री होकर भी डरावनी लगती हैं। Post navigation पुलिस कांस्टेबल रह चुके हैं राकेश टिकैत, 44 बार जेल भी गए, ऐसे बने किसानों के मसीहा किसानों पर हंसने वालों अगला नंबर आपका है