भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक   

आशंकाएँ बेबुनियाद साबित हुईं। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में, खासतौर से लाल किले पर जो हुआ उससे आंदोलन कमज़ोर पड़ने की आशंका उभरने लगी थी। किसानों के हमदर्द इस चिंता में डूबे थे कि आंदोलन शायद आगे ज़्यादा मजबूती से ना चल पाए। इस आशंका को एक नए घटनाक्रम से भी बल मिल रहा था कि दो किसान संगठनों ने इस आंदोलन से हटने का एलान कर दिया था। हालांकि उनके एलान के तुरंत बाद किसान आंदोलन में सक्रिय संगठनों से बयान आ गया कि वे दोनों संगठन आंदोलन से जुड़े कब थे जो अलग होंगे। ऐसी खबरें किसानों का मनोबल तोड़ने के लिए फैलाई जा रही थीं।

सोशल मीडिया पर जो वीडियो और तस्वीरें वायरल हो रही हैं, उनसे किसानों की बेगुनाही पूरी तरह साबित हो जाती है। साथ ही यह भी निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि लाल किले पर धार्मिक झंडा लगाने की घटना का असली खलनायक दीप सिद्धू है।  एक वायरल वीडियो में दीप सिद्धू स्वीकार कर रहा है कि उसने लाल किले पर धार्मिक झंडा लगाया। जब उसे यह एहसास हुआ कि वह आंदोनकारियों से घिर गया है और इस जघन्य अपराध के कारण उसकी पिटाई हो सकती है तो वह भागने लगा। आंदोलनकारी किसान उसे गाली देते हुए उसका पीछा कर रहे हैं। अब इससे ज़्यादा और क्या साबित करना रह गया है। इसके अलावा दीप सिद्धू आम जीवन में कभी पगड़ी नहीं पहना लेकिन जब भी किसानों के बीच गया है, पगड़ी पहने हुए था ताकि किसानों का भरोसा जीत सके और शक के दायरे से बाहर रहे। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के साथ फ़ोटो में दीप सिद्धू बिना पगड़ी है। धर्मेंद्र और हेमा मालिनी के साथ फ़ोटो में भी पगड़ी नहीं पहनी है। आम जीवन में कभी पगड़ी पहनता ही नहीं है। गणतंत्र दिवस के दिन पगड़ी पहन कर रैली में इसलिए शामिल हुआ कि वह जनता को दिखा सके कि एक सरदार धार्मिक झंडा लगा रहा है।

हैरान करने वाली बात है कि खुफिया एजेंसियों ने एक दिन पहले ही सरकार को रिपोर्ट दे दी थी कि गणतंत्र दिवस पर बवाल हो सकता है। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट से बहुत पहले से ही आम जन भी यही आशंका जता रहा था। कम से कम खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट पर ही सरकार चौकस हो जाती। लाल किले जैसी संवेदनशील इमारत के आसपास सुरक्षा बंदोबस्त कड़े क्यों नहीं किए गए थे। क्यों खुफिया एजेंसियों की चेतावनी को नजरअंदाज किया गया था। आंदोलनकारी इतनी आसानी से लाल किला तक पहुंच जाते हैं; दीप सिद्धू झंडा लेकर लाल किले की प्राचीर पर चढ़ जाता है; इत्मीनान से झंडा लगा कर नीचे आ जाता है; फिर पुलिस से बच कर सुरक्षित बाहर आ जाता है, उसके बाद झंडा लगाने पर हंगामा होता है। यह सारा घटनाक्रम देश का हर वो  व्यक्ति समझ गया है जिन्हें समझना था। जिन्हें नहीं समझना था, उन्हें कितने भी सबूत दिए जाएं वे नहीं समझेंगे और किसानों को दोषी बताने का डंका पीटते रहेंगे।

अब राज्य सरकारें निराश हैं क्योंकि दिल्ली में लाल किले पर झंडा लगाने की घटना और हिंसक वारदातों से किसानों को दोषी साबित करने की  सुनियोजित योजना का पर्दाफाश हो गया है और किसानों का मनोबल नहीं टूट पाया है। किसान चट्टान की तरह डटे हुए हैं। किसानों ने फिर स्पष्ट कर दिया है कि उनका आंदोलन शांतिपूर्ण था और शांतिपूर्ण रहेगा। हरियाणा में किसानों के खिलाफ आम जन को भड़काने के भी प्रयास हो रहे हैं लेकिन इसका भी आंदोलन पर कोई असर नहीं होगा क्योंकि सभी जानते हैं कि वो लोग राज्य सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं। 

हरियाणा सरकार भी उत्तर प्रदेश सरकार की तरह धरना स्थल पर बिजली बंद करने और पानी छोड़ने जैसे कदम भी उठा सकती है। हालांकि ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर उत्तर प्रदेश सरकार का यह प्रयोग विफल हो गया है इसलिए राज्य सरकारें किसानों के चट्टानी इरादों के सामने मायूस और बेबस नज़र आ रही हैं।

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