गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा से किसान पस्त सरकार फ्रंटफुट पर

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गणमंत्र दिवस पर किसान ट्रैक्टर परेड में जो कुछ स्थान पर अराजकता फैली और लाल किले की प्राचीर पर धर्म विशेष का झंडा लगाया गया। यह किसानों के लिए ही नहीं देश के लिए भी शर्मसार करने वाला है।

इस घटना के पश्चात किसान नेताओं ने इसे अपनी गलती माना है और कहा है कि इतने बड़े आंदोलन में हमारी कमी से कुछ अराजक तत्व शामिल हो गए और उनकी वजह से ये कांड हुआ, जो शर्मनाक है। सरकार को जांच कर दोषियों को पकडऩा चाहिए और हम भी जांच करेंगे कि वे कौन थे तथा ऐसे व्यक्तियों को आंदोलन से दूर रखेंगे।

इस घटना के पश्चात से आज सरकार के नेताओं के ब्यान आने लगे हैं कि एकदम अति पर जाकर यह किसान आंदोलन अराजक तत्वों द्वारा ही चलाया जा रहा है। जाहिर है कि सरकार किसान आंदोलन से घबराई हुई और त्रस्त थी, मौका मिला तो बोलेंगे ही।

मेरी दृष्टि से इतना बड़ा आंदोलन था, अनेक स्थानों पर किसानों ने तिरंगा यात्रा और ट्रैक्टर मार्च निकाला। कहीं से भी अनुशासन भंग होने की शिकायतें नहीं आईं। और यदि राजधानी दिल्ली पर नजर डालें तो यहां भी आंदोलनकारियों द्वारा कहीं कोई ईव टीजिंग या लूट की घटना सामने नहीं आई। इसका अर्थ यही निकलता है कि अधिकांश किसान अनुशासन में रहे। इतनी बड़ी संख्या में जो आंदोलनकारी हैं, उनमें हजार-दो हजार- पांच हजार की गिनती चंद ही कहलाएगी। कह सकते हैं कि इन चंद लोगों ने अनुशासन भंग किया, कानून हाथ में लिया अराजकताओं की सीमा लांघ दी।

इस आंदोलन को सारा विश्व देख रहा है और लाल किले पर झंडा फहराये जाने की बात पर जाहिर है कि विश्व में भारत का मान तो नहीं बढ़ा होगा। यह सवाल अवश्य उठा होगा कि भारत के राष्ट्रीय और सम्मान के प्रतीक स्मारक की सुरक्षा इतनी कमजोर है कि चंद आदमी आते हैं और कब्जा कर उस पर झंडा फहरा चले जाते हैं। यह घटना देश के इतिहास में शर्मनाक घटना के रूप में अवश्य दर्ज हो गई है।इधर हरियाणा की बात करें तो मुख्यमंत्री ने ब्यान दिया कि किसानों का आंदोलन उनके नेताओं के हाथ से निकल गया है। अत: किसानों को अपने घर लौट जाना चाहिए। इससे किसानों की ओर से प्रतिक्रिया आई कि चलो मुख्यमंत्री ने माना तो सही कि किसान आंदोलन कर रहे हैं।

आज भाजपा के लगभग हर नेता को मुखर होकर किसान कानूनों के पक्ष में बोलते देखा गया, जोकि कुछ समय से चुन थे। प्रश्न उठता है कि बीच-बीच में ये मुखर होते हैं और फिर अगले ही दिन चुप्पी साध लेते हैं। क्या ऐसा ही फिर होगा?

यह देखा गया कि भाजपा या संघ द्वारा कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं बनाई हुई हैं और वे जनता के हित के लिए और प्रशासन, शासन की कमियों की आवाज उठाकर यह दर्शाती हैं कि वह जनता की हितैषी हैं, सरकार की नहीं। आज देखा गया कि वह भी मौका और समय की नजाकत देख किसानों के कार्य के विरूद्ध आवाज उठाने में लगे हैं।

कल तक जो किसान हितैषी थे, वे आज किसान विरोधी नजर आ रहे हैं। इसके पीछे क्या सरकार और संगठन के आदेश हैं? जो भी है, जनता के सामने आ ही रहा है।

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