सोसिओ इकोनॉमिक की खैरात और पेपर लीक ने हरियाणा के युवाओं का किया बंटाधार

ये कैसी सरकार है, कैसे है कानून, बिकते पेपर है जहाँ, हो मेहनत का खून !  सरकारी नौकरियों के मामले में हरियाणा सरकार का तर्क कि हमने ऐसे युवाओं को नौकरी देने का काम किया है जिनके घर में पहले से कोई नौकरी नहीं, कितना मजाकिया लगता है?  क्या सरकार इस बात को अपने पर भी लागू करेगी कि हरियाणा में जिस पार्टी की अभी तक कोई सरकार नहीं बनी है, उसे अब तक सरकार न बनने के लिए एक्स्ट्रा पांच सीट और पंद्रह सीटे अलग-अलग भी दी जाएगी. वर्तमान तरीका सरकारी नौकरी के मामले में ऐसे भ्रष्टाचार का खेल है जो खुली आँखों से भी दिखाई नहीं दे रहा, राज्यभर के मेधावी युवाओं के साथ ऐसा धोखा जो जल्द ही उनको अपनी जन्म भूमि छोड़ने को मजबूर कर देगा

✍ –प्रियंका सौरभ  रिसर्च स्कॉलर, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

किसी भी राज्य का प्रथम उद्देश्य वहां के नागरिकों का कल्याण होता है. लेकिन जब राज्य ही उनको भ्रष्ट तरीके अपनाने के लिए मजबूर कर दे तो सोचिये क्या होगा?  कुछ ऐसा ही पिछले सात सालों में हो रहा है देश के छोटे लेकिन सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त प्रान्त हरियाणा में. जहाँ की वर्तमान सरकार के द्वारा सरकारी नौकरी के लिए करवाए गए हर पेपर में पेपर लीक के मामले अख़बारों की सुर्खियां बने, पुलिस थानों में शिकायते दर्ज करवाई गई, ट्विटर पर मुख्यमंत्री को ट्वीट्स के मामले ट्रेंड में रहें.  लेकिन कभी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. आखिर क्यों ऐसा हुआ? प्रदेश के लाखों पढ़े- लिखे मेधावी युवाओं के साथ ऐसे धोखे बार-बार क्यों हुए?  क्या सरकार को इन सब मामलों का पता नहीं या फिर वर्तमान सरकार के नेता और अफसर इन मिली भगत में शामिल रहें.  आखिर क्यों युवाओं के सपनों को वास्तविक रंग देने वाला हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग भ्र्ष्टाचार का अड्डा बन गया ?

हम बात करते है वर्तमान सरकार के सत्ता सँभालते ही क्या हुआ के दिनों की.  जैसे ही वर्तमान सरकार ने सत्ता अपने हाथों में ली.  सरकार ने तुरंत प्रभाव से पिछली सरकार की हज़ारों भर्तियों को अपनी पहली कलम से रद्द कर दिया.  ये ऐसी भर्तियां थी जो हरियाणा के लाखों युवाओं के सपने पूरे कर सकती थी.  सरकारी नौकरी की आस में युवा सालों से बैठे थे.  वो भर्तियां रद्द ही नहीं हुई, अब नई भर्ती में अचानक युवाओं को ऐसे नए नियम और कायदे देखने को मिले, जिनकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो.  हर भर्ती के लिए अब स्पेशल परीक्षा आयोजित करने और सोसियो इकोनॉमिक के अंक देने का नियम चला. सोच कर देखिये सौ अंकों के पेपर में अगर बीस अंकों की खैरात बांटी जाये तो किसका चयन होगा?  क्या वहां कोई भी मेहनती बच्चा जिसके पास ये बीस अंक नहीं है वो टिक पायेगा?

सरकार का तर्क कि हमने ऐसे युवाओं को नौकरी देने का काम किया है जिनके घर में पहले से कोई नौकरी नहीं.  कितना मजाकिया लगता है?  क्या सरकार इस बात को अपने पर भी लागू करेगी कि हरियाणा में जिस पार्टी की अभी तक कोई सरकारी नहीं बनी उसे अब तक सरकार न बनने के लिए एक्स्ट्रा पांच सीट और बाकी की पंद्रह सीटे भी दी जाएगी.  पांच सीट अनाथ होने के लिए, पांच सीट विधवा या विधुर होने के लिए. पांच सीट लगतार राजनीतिक अनुभव के लिए?  क्या ऐसा कानून वो बना पाएंगे?  बिलकुल नहीं.

दरअसल बात ये है कि सरकार ने सस्ती लोकप्रियता के लिए एक ऐसा कानून बनाया जो राज्य के उन लोगों  को अपने आकर्षण में बाँध कर रखे जिनके घर या आस-पड़ोस में कोई नौकरी में नहीं था.  पहले उनको खुश किया गया फिर उनका क़त्ल किया गया.  ये बात इस तथ्य से जुडी है कि ये अंक केवल ग्रुप सी और डी के लिए निर्धारित किये गए जहां सामान्य परिवारों के बच्चे ही नौकरी के लिए आवेदन करते है या कम पढ़े- लिखे युवा फार्म भरते है.  ग्रुप ए और बी में ये प्रावधान सोच समझकर नहीं किया गया क्योंकि उनके लिए इन्ही नेताओं या अफसरों के बच्चे अप्लाई करते और वो इस साजिश को समझ जाते या फिर कोर्ट-कचहरी में जाकर लड़ने का माद्दा रखते तो कानून को चुनौती मिलती.

क्या किसी सरकारी नौकरी के मामले में डबल रिजर्वेशन या सौं में से बीस अंकों का फायदा पहुँचाना जायज़ है?  क्या सरकारी नौकरी न होने का परिवार के किसी एक सदस्य को फायदा पहुंचना संवैधानिक तरीके से सही है? पहला तो ये परीक्षा में बैठने वाले आवेदकों के साथ भेदभाव है.  दूसरा पांच अंक लेने वाले आवेदक के साथ धोखा है.  तीसरा उस परिवार के बाकी सदस्यों के साथ साजिश है. अगर सरकार को उन आवेदकों को ही नौकरी देनी है जिनके घर नौकरी नहीं तो उन्ही से आवेदन मांगे जाये बाकी आवेदकों को क्यों इस अंधी दौड़ शामिल किया जाता है?  जो आवेदक एक बार ग्रुप डी में लग गया आगे के लिए उसके सारे रास्ते अब बंद हो गए.  क्योंकि अब उसे ये फायदा आगे मिलने वाला नहीं.  जैसे कि दो साल पहले लगे हरियाणा के बीस हज़ार ग्रुप डी के युवाओं के साथ हुआ जिनको योग्यता होने के बावजूद बाकी की ग्रुप सी की नौकरी से हाथ धोना पड़ा.  

परिवार में अगर भाई या बहन नौकरी लग गया तो बाकी के साथ तो ये साजिश हुई ही क्योंकि पांच अंकों के अभाव में अब उनको तो नौकरी मिलने से रही.  हरियाणा भर में इन खैरात के अंको की वजह से लिखित परीक्षा के टॉपर भी नौकरी से वंचित होते देखे जा रहें है. अब रही बात हर बार लीक होने वाले पेपरों की.  हरियाणा कर्मचारी आयोग का पिछले सात सालों में ऐसा एक भी पेपर नहीं हुआ जो लीक नहीं हुआ हो. अपवाद को छोड़कर हर पेपर के लीक होने की ख़बरें अखबारों में छपी. आयोग के कर्मचारी जेल भी गए मगर सिलसिला अब तक बदसूरत जारी है. बात साफ़ है कि सरकार भर्ती के माले में सुर्ख़ियों बटोरने के अलावा कुछ नहीं कर रही.  वो भी तब जब प्रदेश के हर महकमे में लाखों पद खाली पड़े है. अकेले शिक्षा विभाग में ही चालीस हज़ार शिक्षकों के पद खाली है.  

आखिर भर्ती क्यों नहीं कर पा रही सरकार? आखिर क्यों जो भर्ती शुरू की जाती है वहां पेपर लीक के मामले हो जाते है या फिर कोर्ट में लटक जाती है?  सच तो ये है कि अगर सरकार चाहे तो सब कर सकती है.  ये सब निर्भर करता है सरकार की सोच और मंशा पर. वर्तमान सरकार को सबसे पहले सोसिओ इकोनॉमिक के क्राइटेरिया को संतुलित करना होगा. पांच  या बीस अंकों का सीधा फायदा बहुत बड़ा अंतर पैदा करता है जब प्रतियोगता कुछ पॉइंट्स की चल रही हो.  सोचकर देखिये एक सीट से अटल सरकार बन और गिर सकती है.  ये मेधावी छात्रों के साथ सोचा समझा धोखा और अयोग्य को चुनने का तरीका है.  दूसरा हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग को भंग करके नए सिरे से चुना जाये.  सालों से बैठे इस आयोग के सदस्य और  कमर्चारी इसको अपनी जागीर समझ बैठे है जो केवल अपना फायदा देखते है, प्रदेश भर के युवाओं का नहीं.  

 पेपर लेने के लिए व्यवस्था को तो सरकार कभी भी सुधार सकती है. अगर उसकी मंशा पारदर्शिता की हो.  अगर ऐसा होगा तभी हरियाणा का मेधावी युवा वर्तमान सरकार और खुद पर गर्व कर पायेगा. अन्यथा ये भ्रष्ट सिलसिला  बदसूरत जारी रहेगा.

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