केंद्र की सरकार पर ही दिखाई दे रहा है प्रेशर. अब 45वें दिन में आंदोलन क्या निकलेगा समाधान

फतह सिंह उजाला

केंद्र सरकार के द्वारा लागू किए गए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन 45वें दिन में प्रवेश कर चुका है । तारीख पर तारीख के बाद में, आठ तारीख शुक्रवार को एक बार फिर से केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसान संगठनों के बीच में बात होगी । 8 तारीख को होने वाली बात से पहले किसान आंदोलन में शामिल शामिल 40 किसान संगठनों के द्वारा अपने-अपने ट्रैक्टर ट्रालीयों पर सवार होकर किसान आंदोलन को लंबे से लंबा चलाया जाने  का ट्रेलर भी दिल्ली के चारों तरफ दिखा दिया है । ट्रैक्टर ट्रालीयों के ट्रेलर से कहीं ना कहीं केंद्र सरकार पर ही प्रेशर दिखाई दे रहा है । क्योंकि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस का समय भी नजदीक आता जा रहा है , वही किसान संगठन पहले ही घोषणा कर चुके हैं की केंद्र सरकार के द्वारा कृषि कानून वापस नहीं लिए गए तो 26 जनवरी को अनगिनत ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली में फिर से ट्रैक्टर मार्च किया जाएगा ।

इसी बीच ऐसे संकेत प्राप्त हुए हैं ,जिसके मुताबिक आठ को होने वाली बात से पहले केंद्र सरकार के ही विभिन्न वरिष्ठ मंत्रियों के साथ-साथ केंद्रीय कृषि मंत्री की की कृषि कानूनों के मुद्दे को लेकर गंभीरता से चर्चा हुई । गुरुवार को ट्रैक्टर ट्रालीयों के ट्रेलर को दिखाते हुए भी आंदोलनकारी किसानों के चेहरे पर रत्ती भर भी शिकन दिखाई नहीं देना। यह इस बात का संकेत माना जा रहा है कि जिस प्रकार से संयुक्त किसान मोर्चा कृषि कानूनों को वापस लेने की एक ही मांग करता आ रहा है और यह बात संभव दिखाई नहीं दे रही कि केंद्र सरकार लागू किए गए कृषि कानूनों को किसी भी सूरत में वापस लेगी अथवा रद्द करेगी ।

इसी बीच में एक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम घटा, केंद्र सरकार के लाए गए कृषि कानून, उन्हीं कृषि कानूनों को कथित रूप से पंजाब सरकार के द्वारा पंजाब में लागू कर दिया गया। जिस प्रकार से किसान आंदोलन चलता आ रहा है , कड़ाके की ठंड, बरसात सहित अन्य परेशानियों को झेलते 60 कुर्बाानियां देने के बरवजूद बिना विचलित हुए भी विभिन्न प्रांतों के किसान जिस मजबूती और दृढ़ता के साथ लंगर डाले हुए हैं , वह लंबे समय तक आंदोलन की तैयारी की ही एक महत्वपूर्ण रणनीति है । गुरुवार को जिस प्रकार से आंदोलनकारी किसानों के द्वारा ट्रैक्टर मार्च में लोगों का समर्थन मिला दिखाई दिया , ऐसे में किसानों का  विश्वास और अधिक मजबूत होने से इनकार नहीं किया जा सकता ।

बात करते हैं आठ जनवरी शुक्रवार को होने वाली बात की । ऐसे में अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के घटक किसान संगठनों के पास केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के मुताबिक अब खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है ? आंदोलनकारी किसानों के मुताबिक कृषि कानून लागू होने के बाद कृषि और किसान पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे। इससे स्पष्ट होता है कि किसानों के पास अब खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा। आंदोलनकारी किसानों को तो अपना हक-हकूक लेना है और इसका एक ही माध्यम है कि केंद्र सरकार के द्वारा जो कृषि कानून लागू किए गए तथा बिजली अध्यादेश है उसे केंद्र सरकार वापस ले ।

किसान आंदोलन में बेशक से विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के द्वारा अपना अपना समर्थन झोंकने का दावा किया जा रहा हो । लेकिन आंदोलनकारी किसान संगठन पहले दिन से ही इनकार करते आ रहे हैं कि किसान आंदोलन केवल और केवल किसानों का आंदोलन है ।  यह बात किसी हद तक सही भी साबित होती दिखाई दे रही है किसान आंदोलन के दौरान संयुक्त किसान मोर्चा के मंच पर अभी तक किसी भी राजनीतिक पार्टी अथवा राजनीतिक पार्टी के नेता को नहीं देखा जा सका है ।

अभी तक किसान आंदोलन के प्रकरण को देखें तो यही निचोड़ निकलता दिखाई दे रहा है कि किसानों के पास जो खोना था, उसके अलावा कुछ बचा नहीं । और केंद्र सरकार को जो कुछ दे दिया, उसे केंद्र सरकार को वापस अब लेना नहीं । आंदोलनकारी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों अभी तक कि केंद्र सरकार के साथ हो चुकी बातचीत के बाद यह भी बात दोहराते आ रहे हैं कि केंद्र सरकार के द्वारा लिखित में किसी भी प्रकार का कोई भी आश्वासन नहीं दिया जा रहा है । संभवत यही एक बड़ा और ठोस कारण भी है कि आंदोलनकारी किसान अपनी अपनी एक सूत्री मांग कि केंद्र सरकार अपने कृषि कानूनों को वापस लें अथवा रद्द करें । इसी मांग का ही झंडा बुलंद किए हुए हैं ।

जिस प्रकार से दिल्ली के चारों तरफ सीमा क्षेत्र पर किसानों के द्वारा लंगर डाला हुआ है, दिल्ली के साथ लगने वाले विभिन्न क्षेत्रों में उद्योग भी अच्छे खासे प्रभावित हो रहे हैं। कुल मिलाकर अब देखना यही है कि शुक्रवार आठ को  किसानों और केंद्र के बीच में होने वाली अनसुलझी बात की गांठ कैसे और किस प्रकार से खुल सकेगी ? क्योंकि कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और किसानों के बीच जो भी खींचतान अथवा विवाद बना हुआ है, उसका समाधान केवल और केवल बातचीत से ही निकलना तय है । और उम्मीद को न तो छोड़ा जा सकता है न ही नजरअंदाज किया जा सकता है। अब सभी के बीच एक ही जिज्ञासा बनी है कि आठ शुक्रवार को केंद्र से बातचीत के विज्ञान भवन पहुंचने वाले किसान संगठनों के प्रतिनिधी कितनी देर बाद बाहर आकर अपना क्या फैंसला सुनाएंगे।

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