भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

ट्रैक्टर रैली के माध्यम से आज किसानों ने अपनी शक्ति दिखाई। दूसरी ओर सरकार ने भी मीटिंगें कर इस समस्या से निपटने के प्रयास और तेज कर दिए।आज मीडिया में चल रहा है कि सरकार की पंजाब के किसान नेताओं से बात हुई है और उन्हें समाधान का रास्ता बताया है। इधर किसान नेताओं का कहना है कि यह केवल मीडिया मैनेजमेंट है, बाकी कोई समाधान की राह नहीं निकली है और कुछ निकली है तो उसका भी तो पता लगना चाहिए। वैसे ज्ञात हुआ है कि आज अमित शाह ने भी किसानों की समस्याओं के बारे में बैठक ली है।

जहां किसानों को जनता का समर्थन बढ़ता जा रहा है, वहीं सरकार पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है। परंतु सरकार की ओर से ऐसा कोई संकेत भी नहीं मिला कि वह कृषि कानूनों से पीछे हटेगी। अब भी वह इन्हें किसान हितैषी बता रही है, जबकि उनकी बात किसान समझ नहीं रहे हैं। अब यह बड़ा प्रश्न है कि यदि यह कानून किसानों के लाभ के हैं तो सरकार अपने मंत्रियों, कार्यकर्ताओं और मीडिया की मदद से भी इसे जनता को समझा नहीं पा रही, जबकि यह कहा जाता है कि भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी है।

जैसा कि ऐसे आंदोलनों में होता है कि दोनों पक्षों को कुछ न कुछ झुकना पड़ता है और संवाद से समाधान निकलता है लेकिन यहां सात दौर की बातचीत हो चुकी लेकिन अभी समाधान का कहीं किनारा भी नहीं दिख रहा। आठ तारीख को अब फिर वार्ता होनी है। सभी की निगाहें इस वार्ता पर टिकी हैं कि देखें क्या हल निकलता है।

सुप्रीम कोर्ट में भी अनेक याचिकाएं लगी हुई हैं और उनकी सुनवाई सोमवार को होनी है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह कहा गया कि आंदोलन किसान का अधिकार है लेकिन उसमें रास्ते नहीं रुकने चाहिएं। तो इसे किसान और सरकार दोनों ही अपने पक्ष में बता रहे हैं। दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा गया कि हम चाहते हैं कि इस समस्या का समाधान बातचीत से ही निकल जाए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इन कानूनों को स्थगित किया जा सकता है।

यह सर्वविदित है कि सरकार की ओर से आमतौर से नीति अपनाई जाती है कि फूट डालो और राज करो। हालांकि यह बात अंग्रेजों के लिए कही जाती थी परंतु कोई भी सरकार हो जब कठिनाई में पड़ती है तो यह राह अपना ही लेती है। इसी को देखते हुए सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार यही सोच रही है। उसी कड़ी में आज पंजाब के किसानों से बात की। अब सारे देश का किसान एक बैनर के नीचे काम कर रहा है। इसे बांटने के लिए आठ तारीख की मीटिंग में यह प्रस्ताव आ सकता है कि केंद्र ने तो ये कानून लागू कर दिए लेकिन हम इसमें ऐसी धारा डाल देंगे, जिनसे राज्यों को ये अधिकार मिल जाएं कि वे इसे लागू करें या न करें।

इससे होगा यह कि जो किसान अब मिलकर केंद्र सरकार पर दबाव बना रहे हैं, वे अलग-अलग अपनी सरकारों पर दबाव बनाकर कानून निरस्त करने की मांग करेंगे और कई राज्यों में तो किसान संगठन इतने संगठित हैं नहीं कि वे अपनी सरकार पर दबाव बना सकें। क्योंकि इस आंदोलन में मुख्य भूमिका में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान ही दिखाई दे रहे हैं।

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