गुड़गांव सिविल जज श्रीमती सुमित्रा कादियान की माननीय अदालत की कलम ने लिखा एक दूरगामी फैसला अगस्त 2020 में गुड़गांव निवासी अधिवक्ता मुकेश कुल्थिया का अधिवक्ता का लाइसेंस बार काउंसिल पंजाब एंड हरियाणा के चेयरमैन श्री करनजीत सिंह ने निलंबित करने के आदेश जारी कर दिए थे ।इन आदेशों को मुकेश कुल्थिया ने गुड़गांव कोर्ट में चुनौती दी थी और कानूनी दस्तावेजों के साथ दलील दी थी कि उनका अधिवक्ता का लाइसेंस निलंबित करने के आदेश गैरकानूनी है । बार काउंसिल ने अधिवक्ता अधिनियम सेक्शन 48 का हवाला देते हुए गुड़गांव कोर्ट में अपनी दलील दी कि बार काउंसिल एवं उनके सदस्यों के खिलाफ कोई पीड़ित अधिवक्ता किसी सिविल कोर्ट में नहीं जा सकता एवं कोई कानूनी कार्रवाई बार काउंसिल एवं उसके सदस्यों के खिलाफ नहीं की जा सकती । मुकेश कुल्थिया ने अधिवक्ता कानून, माननीय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों का हवाला देते हुए गुड़गांव कोर्ट में दलील दी कि किसी गैर कानूनी कार्य के लिए किसी भी धारा में किसी भी तरह की सुरक्षा बार कॉउन्सिल ये बार कॉउन्सिल के किसी भी अधिकारी को प्रदान नहीं की गई है एवं मौलिक अधिकारों के हनन होने की स्थिति में एक पीड़ित सिविल कोर्ट की शरण में जा सकता है एवं सिविल कोर्ट के पास वो शक्तियां हैं कि सिविल कोर्ट उस पीड़ित को न्याय दे सकता है एवं बार कॉउन्सिल के गलत आदेशों को निरस्त कर सकता है । गुड़गांव सिविल कोर्ट की सिविल जज सीनियर डिविजन श्रीमती सुमित्रा कादियान ने इन दलीलों पर संज्ञान लेते हुए 18 दिसंबर 2020 को जारी किए गए अपने दूरगामी आदेशों में स्पष्ट किया कि किसी भी गैर कानूनी कार्य के लिए बार काउंसिल या उनके सदस्यों को अधिवक्ता अधिनियम के तहत किसी प्रकार की सुरक्षा नहीं दी गई है । श्रीमती सुमित्रा कादियान की माननीय अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मुकेश कुल्थिया का अधिवक्ता लाइसेंस अधिवक्ता अधिनियम के प्रावधानों को ताक पर रख कर निलंबित किया गया है, जाँच प्रक्रिया पूरी किये बिना किसी अधिवक्ता का लाइसेंस निलंबित करने का कोई अधिकार बार कॉउन्सिल एवं बार कॉउन्सिल चेयरमैन के पास नहीं है । माननीय अदालत ने स्पष्ट किया कि निलंबित अधिवक्ता मुकेश कुल्थिया की दलील के अनुसार मुकेश कुल्थिया के मौलिक अधिकारों का हनन किया गया है एवं ऐसी स्थिति में एक पीड़ित सिविल कोर्ट की शरण में जा सकता है एवं कानून में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए सिविल कोर्ट उस दावे की सुनवाई करने का अधिकार रखता है । गुड़गांव के माननीय अदालत के इस फैसले से देश के तमाम बार काउंसिल का ये दावा कि ‘बार कॉउन्सिल के खिलाफ कोई पीड़ित किसी कोर्ट में नहीं जा सकता’ समाप्त हो गया ।इस प्रकार दशकों से चली आ रही बार काउंसिल की तानाशाही समाप्त हुई । गुड़गांव की माननीय अदालत द्वारा दिए गए इस फैसले से देश के तमाम अधिवक्ताओं को बहुत बड़ी राहत मिली है । इस फैसले से पहले देश के तमाम अधिवक्ता बार काउंसिल के किसी भी जायज-नाजायज आदेशों के खिलाफ अपनी अर्जी बार काउंसिल में ही लगा सकते थे किसी कोर्ट में नहीं ,अब देश के हर सिविल कोर्ट की शक्ति सामने आई है । अब देश का कोई भी अधिवक्ता बार काउंसिल के किसी नाजायज फैसले के खिलाफ अपने डिस्ट्रिक्ट के सिविल कोर्ट की शरण में भी जा सकता हैं । गुड़गांव सिविल जज श्रीमती सुमित्रा कादियान अपने इस साहसिक, दूरगामी एवं ऐतिहासिक फैसले के लिए बधाई की पात्र बन चुकी हैं । गुड़गांव के अलावा देश भर से कई अधिवक्ता गण गुड़गांव सिविल जज श्रीमती सुमित्रा कादियान को हार्दिक बधाइयां दे रहे हैं । Post navigation कड़कड़ाती ठंड और बूंदाबांदी के बावजूद किसान धरने पर डटे रहे दिल्ली के लिए कूच को आंदोलनकारी किसान उतावले