भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज सारी दुनिया में नववर्ष मनाया जा रहा है किंतु इस बार हरियाणा में नववर्ष का वह उल्लास नहीं देखा गया, जो गत वर्षों में देखा जाता था। इसके पीछे कारण हो सकते हैं कोरोना और किसान आंदोलन। किसान संगठनों ने तो इसे काला दिवस की संज्ञा दी। और किसान आंदोलन को हर वर्ग का साथ भी मिल रहा है। लगता है कि यह भाजपा सरकार के लिए संकट का कारण बन सकता है।

अभी हाल में निकाय चुनाव संपन्न हुए हैं, जिनमें पंचकूला और रेवाड़ी में भाजपा को विजय मिली है। इसके पीछे रेवाड़ी के लोगों का कहना है कि रेवाड़ी की राजनीति रामपुरा हाउस से चलती है और रेवाड़ी के चुनाव प्रभारी पूर्व शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा इस बात को बखूबी समझते थे, समझते हैं और इसीलिए उन्होंने इस चुनाव में राव इंद्रजीत से कदम से कदम मिलाकर कार्य किया, जिस कारण रेवाड़ी में विजयश्री मिली। हालांकि रामबिलास के साथ रहने वाले लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री के दौरे के बाद स्थिति लडख़ड़ा गई थी लेकिन राव इंद्रजीत का जलवा और रामबिलास की रणनीति ने मिलकर उसे संभाल लिया।

अब बात करें पंचकूला की तो पंचकूला निगम के प्रभारी कैप्टन अभिमन्यु थे लेकिन वह कहीं फ्रंट पर दिखाई नहीं दिए। वहां ज्ञानचंद गुप्ता और मुख्यमंत्री रणनीति बनाते रहे और मुख्यमंत्री का पंजाबी कार्ड खेलकर रंजीता मेहता को दल-बदल कराना शायद इस चुनाव का टर्निंग प्वाइंट रहा। वैसे दूसरी ओर कांग्रेस का प्रभार देख रही कुमारी शैलजा खुद भी कमजोर दिखाई दी। अन्य स्थानों पर विनोद शर्मा, गोपाल कांडा आदि ने अपनी शक्ति दिखाई। सोनीपत दीपेंद्र हुड्डा का गढ़ रहा।

इन बातों को देखकर राजनैतिक चर्चाकारों का कहना है कि परिणाम बताते हैं कि न जनता का भाजपा पर विश्वास और न ही कांग्रेस पर। इन चुनावों से ऐसा लगा कि व्यक्तिगत प्रभाव ही काम आए हैं। मुख्यमंत्री अंबाला-सोनीपत भी गए थे लेकिन वहां की हालत अपने आप मुख्यमंत्री का प्रभाव बताने के लिए काफी है।

मजेदारी की बात यह है कि निकाय चुनावों के बाद भाजपा के किसी बड़े नेता के ब्यान आए नहीं। हां, कल मुख्यमंत्री ने अवश्य कहा कि निकाय चुनावों में विपक्ष को जवाब मिल गया। जैसे कि रीत है कि चुनाव की जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष की होती है लेकिन इन चुनावों में प्रदेश अध्यक्ष की ओर से अभी तक कोई ब्यान नहीं आया है। हालांकि मुख्यमंत्री निवास पर संगठन और विधायकों की बैठक भी हुई थी और उसकी अध्यक्षता भी मुख्यमंत्री ने ही की थी। तो बड़ा प्रश्न है कि प्रदेश अध्यक्ष क्या अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन उचित प्रकार से कर रहे हैं?

रामबिलास शर्मा और कैप्टन अभिमन्यु दोनों ही पूर्व मंत्री हैं और इन दोनों ने अपने-अपने चुनाव जिता भी दिए। जबकि भाजपा में ही चर्चा चली थी कि ये मुख्यमंत्री से वरिष्ठ हैं अत: मुख्यमंत्री ने इन्हें निकाय चुनावों की जिम्मेदारी किसी रणनीति के तहत ही दी थी। इसी प्रकार प्रदेश अध्यक्ष के कार्यों में भी मुख्यमंत्री का दखल है।

गत दिनों रॉकी मित्तल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ बोलकर आरंभ तो कर दिया है। अब देखना यह है कि 2021 में भाजपा के वरिष्ठ नेता भी क्या ऐसा बोलेंगे और यही हरियाणा सरकार के संकट का कारण हो सकता है।

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