–कमलेश भारतीय किसान आंदोलन को बेशक केद्र सरकार और भाजपा नेता नजरअंदाज कर रहे हो पर क्या इसे महसूस भी नहीं कर रहे? क्या कहें और आंख बंद कर लोगे तो क्या बिल्ली उसे छोड़ जायेगी ? यह बिल्ली और कबूतर से बहुत ऊपर और आगे की बात है । हरियाणा में पहले अम्बाला में प्रचार करने गये मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के काफिले का विरोध काले झंडों से किया गया और रोकने पर डंडे कार पर भी बरसाये गये । यहां तक बस नहीं हुई । सरकार ने आदर्श आचार संहिता की परवाह न करते हुए एस पी कालिया को ट्रांस्फर कर दिया । जब भीड़ उग्र हो जाये तो उसे रोक पाना किसके बस में होता है ? इधर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के भी उचाना पहुंचने से पहले हेलीपैड पर काले झंडे दिये गये । वे संभवतः सड़क मार्ग से पहुंच जायें । पर जो संदेश किसानों को देना था , वह तो मिल गया । इसीलिए दुष्यंत ने कहा कि मैं किसानों और सरकार की बीच वार्ता की मध्यस्थता करने को तैयार हूं । यह नेक काम तो कर ही लो दुष्यंत । सरकार और किसानों के बीच डेडलाॅक है । किसान कानून रद्द करवाने पर अड़े हैं तो सरकार संशोधन की रट लगाये है । बातचीत कैसे हो ? जब दोनों पक्ष अपनी अपनी बात पर डटे हों । मध्यस्थता जरूरी है । राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जब राष्ट्रपति से मिलने जा रहे थे तब उन्हें हिरासत में ले लिया गया । चाहे किसानों का प्रदर्शन हो या कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल का राष्ट्रपति से मिलने जाना हो , ये लोकतांत्रिक अधिकार हैं । इन पर अंकुश न लगाइए साहब। ये स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है । इसे बनाये रखिए । भविष्य में आपके भी काम आयेगी । अतीत में काम आती रहीं है । कुछ अच्छी चीजें या परंपरायें बचा लीजिए । यह देश जैसा मिला था , वैसा रहने दीजिए । डिजिटल या न्यू इंडिया से लोग आजीज आ चुके । न अच्छे दिनों का इंतजार रहा । वे कह रहे हैं कि हमें पुराने दिन ही लौटा दीजिए । हम पुराने दिनों में इससे ज्यादा खुश थे । पुरानी अनाज मंडियां और भाईचारे को बना रहने दीजिए साहब । छोड़िए जिद्द । मान जाइए । किसानों से दिल खोल कर बात कीजिए और देश को खुशहाल बनने की ओर कदम बढ़ाइए । शुभस्य शीघ्रभ् । Post navigation शिक्षक और छात्र का रिश्ता सीखाने और पढ़ाने वाला : विक्रमजीत सिंह मोदी सरकार किसानों को ‘‘थका दो और भगा दो’’ की नीति पर काम कर रही – मिलेगा मुंहतोड़ जवाब! सुरजेवाला