एक मोर्चे पर केंद्र सरकार दूसरी और फ्रंट पर फार्मर.
सोमवार को अवार्ड वापसी और मंगलवार को भारत बंद.
बुधवार को वार्ता की टेबल पर होंगे फार्मर और सरकार

फतह सिंह उजाला

बहुत उम्मीद बनी हुई थी कि शनिवार को कोई ना कोई बात बन ही जाएगी । कोई भी आंदोलन हो , कैसा भी विवाद हो , उम्मीद का दामन सबसे मजबूत होता है। और यह उम्मीद का दामन अभी भी मजबूत ही बना हुआ है । केंद्र सरकार के तीन कृषि बिल के मुद्दे को लेकर आंदोलनरत देशभर के किसान भी समाधान ही चाहते हैं । सबसे बड़ा सवाल और पेंच यही है कि इस समाधान की चाभी , समाधान के कौन से ताले में फिट बैठ सकेगी ?

किसान आंदोलन के दसवें दिन से पहले 1 दिन के ब्रेक में केंद्र सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के वार्ता में शामिल होने वाले घटक संगठनों के बीच अपनी-अपनी रणनीति बनाने के साथ होमवर्क भी कर लिया गया था । अक्सर होता यह है कि जब भी कोई बड़ा आंदोलन , धरना प्रदर्शन किया जाए या फिर इसकी पहले से घोषणा की जाए तो तमाम खुफिया एजेंसियां भी सक्रिय हो जाती हैं कि किस पक्ष की क्या मांगे हो सकती हैं और संभावित रणनीति पर का भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है । एमएसपी की गारंटी के साथ-साथ अन्य अहम मांगों के मुद्दे पर किसान संगठनों के बीच पकने वाली खिचड़ी की महक किसी भी एजेंसियों के सक्रिय रहने वाले तंत्र तक नहीं पहुंच सकी।

शनिवार को सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बातचीत की टेबल पर बैठने से पहले देश के प्रधान सेवक पीएम मोदी के सामने उनके सबसे अधिक विश्वसनीय और रणनीतिकार मंत्रियों के बीच किसान आंदोलन को लेकर चिंतन मंथन और मंत्रणा भी हुई । यह बैठक शनिवार को दोपहर 2 बजे होनी तय की गई थी और 5 घंटे के बाद भी कोई समाधान नहीं निकल सका । इस बात का आभास अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा और किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठनों के द्वारा साफ-साफ पहले ही करवा करवा दिया गया था । जिसे समझने में कहीं ना कहीं चूक भी हुई है ? क्योंकि आंदोलनरत किसान संगठनों के द्वारा पहले ही ऐलान किया जा चुका था कि 8 दिसंबर मंगलवार को भारत बंद रखा जाएगा । जब यह घोषणा पहले ही कर दी गई थी तो इस बात की संभावना और आशंका से भी इनकार नहीं की सरकार से बातचीत के लिए टेबल पर पहुंचने वाले विभिन्न 41 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के द्वारा अपने तुरुप के पत्ते पूरी तरह से खोल कर भी दिखाई जा चुके थे और उन्होंने एहसास भी नहीं होने दिया ।

दूसरी तरफ देश भर से कड़ाके की सर्दी के बीच किसान आंदोलन के समर्थन के साथ-साथ दिल्ली सीमा पर लंगर डाले बैठे किसानों का हौसला अफजाई के लिए किसानों का प्रतिदिन हजारों की संख्या में आने का सिलसिला बना हुआ है । एक प्रकार से दिल्ली के चारों तरफ कंक्रीट के जंगल में ऐसे चेहरे दिखाई दे रहे हैं जो कि खेत खलिहान में ही काम करते हुए अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं । उन्हें केवल एक ही चिंता रहती है कि खेत में उपजाई गई फसल अथवा उपज का बिक्री के समय बिना किसी परेशानी के समय पर भुगतान मिलता रहे । शनिवार को भी शनि देव शांत ही दिखाई दिए । अब शनिवार की बैठक भी नतीजा के बिना बे-नतीजा ही समाप्त हुई । जानकारी के मुताबिक किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपनी रणनीति के तहत चुप्पी साध कर सरकार से अपनी मांगों के लिए सीधे और सरल शब्दों में हां अथवा  में हां या नहीं जवाब मांगा । जोकि किसी भी स्थिति में संभव नजर नहीं आता है ।

अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा और सरकार से वार्ता में शामिल 41 किसान संगठनों के द्वारा फैसला किया गया है कि 8 दिसंबर मंगलवार को पूरी तरह से भारत बंद रखा जाएगा । जिस प्रकार से किसान आंदोलन और किसानों को समर्थन मिल रहा है , उसे देखते हुए इस बात से इंकार नहीं की 8 दिसंबर मंगलवार को भारत बंद ऐतिहासिक बंद भी हो सकता है । ठीक वैसे ही जिस प्रकार से कोरोना काल के आरंभ में  पीएम मोदी के द्वारा जनता कर्फ्यू की घोषणा की गई थी और आम जनता से समर्थन मांगा गया था । लेकिन किसान आंदोलन के समर्थन में तो आम जनता स्वयं ही दौड़ती चली आ रही है । 8 दिसंबर से पहले 7 दिसंबर सोमवार को विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले सर्वश्रेष्ठ अवार्ड प्राप्त करने वाले अपने-अपने अवार्ड भी वापस करेंगे ।

बहरहाल शनिवार को सरकार और किसान संगठनों के बीच कोई सहमति नहीं बनने के बाद अब 72 घंटे का लंबा ब्रेक दोनों पक्षों को मिल गया है । इसके बाद 9 दिसंबर बुधवार को एक बार फिर से वार्ता की टेबल पर फ्रंट पर फार्मर और सामने सरकार के वार्ताकार मौजूद रहेंगे । सरकार किसानों की समस्याओं के अथवा शंकाओं के समाधान के लिए तैयार है , लेकिन आंदोलनरत किसान और किसान संगठन कृषि बिल को लेकर इसमें संशोधन नहीं समाप्त किए जाने की मांग पर डटे हुए हैं । अब देखना यही है कि 9 दिसंबर बुधवार को दोनों पक्ष अपनी क्या-क्या रणनीति के साथ वार्ता की टेबल पर आमने सामने होंगे और यही उम्मीद की जा सकती है कि बुधवार को चली आ रही इस रार में से कोई ना कोई राह जरूर निकलेगी । बाकी जो कुछ भी हो होना है या फिर होगा, वह भविष्य के गर्भ में ही छिपा हुआ है।

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