22 अक्टूबर 2020 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने प्रसिद्घ क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां की 121वीं जयंती पर अपने कार्यालय में उनके चित्र पर पुष्पाजंली अर्पित करके अपनी भावभीनी श्रद्घाजंली अर्पित की। कपिल यादव, अमन यादव, अजय कुमार, प्रदीप यादव व कुमारी वर्षा ने भी इन क्रांतिकारियों को पुष्पाजंली अर्पित की। विद्रोही ने इस  अवसर पर कहा कि क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां का भारत की आजादी आंदोलन में विशेष योगदान रहा है और वे उन क्रांतिकारियों में शामिल थे, जिन्होंने देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करने की शुरूआत की थी। क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को शांहजाहपुर उत्तरप्रदेश में हुआ था। अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल व शहीद अशफाक उल्ला खां की जोड़ी भारत के आजादी के आंदोलन के क्रांतिकारी इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है और इन दोनो की अटूट दोस्ती व देश की आजादी के लिए मिलकर लडऩे का जज्बा आज भी देश की युवा शक्ति को सामाजिक सदभाव बनाये रखते हुए देश के लिए काम करने की प्ररेणा देता है।

विद्रोही ने कहा कि कट्टïर आर्य समाजी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल व अशफाक उल्ला खां की दोस्ती उस समय के माहौल में हिन्दू-मुस्लिम एकता की ऐसी मिसाल थी जो आज भी प्रेरणा का स्त्रोत है। इन दोनो क्रांतिकारी शहीदों ने पूरे देश को उस समय संदेश दिया था कि अलग-अलग धार्मिक आस्था होने पर भी ना केवल व्यक्तिगत गहरी दोस्ती बन सकती है अपितु देश में सामाजिक सदभाव की सोच को अपनाकर ही अंग्रेजों को भारत से खदेडक़र हिन्दुस्तान को आजाद करके एक नया समाज बनाया जा सकता है। क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल व अशफाक उल्ला खां द्वारा लगभग 100 वर्ष पूर्व दिया गया सामाजिक सदभाव के संदेश को अपनाकर ही हम सही अर्थो में देश में सामाजिक सदभाव स्थापित करके भारत को महाशक्ति बनाने के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है।

विद्रोही ने कहा कि काकोरी कांड के हीरो क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल व अशफाक उल्ला खां का यह संदेश कि सामाजिक सदभाव से ही कोई क्रांति हो सकती है, आज भी ना केवल प्रेरणा का स्त्रोत है अपितु साम्प्रदायिकता के द्वारा नफरत फैलाकर सत्ता पर कब्जा करने की चाह रखने वालों के लिए भी एक चेतावनी है कि भारत के सैकड़ों साल के सामाजिक सदभाव को तोडक़र सत्ता पर साम्प्रदायिकता के आधार पर कब्जा करने का उनका सपना पूरा नही होने वाला है। 19 दिसम्बर 1927 को काकोरी कांड के कारण इन दोनो क्रांतिकारियों को फैजाबाद व गोरखपुर की जेलों में एक ही दिन अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा दिया। इन दोनो शहीद क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए युवावस्था में ही अपने को बलिदान कर दिया। विद्रोही ने कहा कि देश में सामाजिक सदभाव बनाये रखने के लिए काम करने का संकल्प ही अमर शहीद क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल व अशफाक उल्ला खां को सच्ची श्रद्घाजंली है।

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