धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़ l समझदार राजनीतिक लोग दो चीजों पर सदा गौर करके चलते हैं l एक यह कि माहौल बनाने से राजनीति होती है मतलब माहौल बनाना ही राजनीति है l दूसरा यह कि हर आदमी को पानी आने से पहले बांध बना लेना चाहिए l आज हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने हरियाणा लोकहित पार्टी के नेता सिरसा से विधायक गोपाल कांडा से भेट की l इस खबर से हरियाणा की राजनीति को जानने वालों के कान खड़े हो गए l यह स्वाभाविक भी था l क्योंकि जब हरियाणा विधानसभा के पिछले चुनाव के नतीजे आए थे तो निर्दलीय विधायकों के साथ गोपाल कांडा ने सरकार को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर दी थी ,परंतु भाजपा हाईकमान के कई नेताओं ने इस पर तीव्र प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए यह संदेश देने का काम किया था कि हमें गोपाल कांडा के समर्थन की कोई जरूरत नहीं है l

शायद यह लोग पहले से दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री बनाने और जेजेपी के गठबंधन से सरकार बनाने का फैसला ले चुके थे l अब 10 सितंबर के बाद से जो हालात तेजी से बदल रहे हैं उससे शायद मुख्यमंत्री अच्छी तरह से वाकिफ हैं lशायद उन्हें यह आशंका भी है कि किसानों के मतलब जनता के बढ़ते दबाव के कारण कहीं जेजेपी सरकार से समर्थन वापस लेने की रणनीति न बना ले lयदि ऐसा हुआ तो फिर विकल्प को मजबूत करना जरूरी हो सकता है l मुख्यमंत्री किसी विशेष योजना पर काम कर रहे हो कि गोपाल कांडा से सिर्फ भेंट की खबर मात्र से जेजेपी पर दबाव बढ़ जाएगा और वे हर हाल में सरकार के साथ बने रहने को मजबूर हो जाएंगे l

यह कटु सत्य है कि भारतवर्ष में सरकारों के खिलाफ जनमत तैयार करने का काम किसान करते है लंबे आंदोलन भी किसान ही कर सकते है जब वह मुखर होकर विरोध करता है तो उसे रोक पाना बड़ा कठिन हो जाता है और यह दबाव जनप्रतिनिधियों को कुछ सोचने समझने पर मजबूर कर देता है जिन्हें जनता चुनकर भेजती है l व्यवहार में यह देखा गया है कि जनप्रतिनिधि जनता की इच्छा के खिलाफ चलने की हिम्मत कभी नहीं कर पाते l आप हरसिमरन बादल का उदाहरण उठा कर देख सकते हैं l वह त्यागपत्र दे चुकी है त्यागपत्र मंजूर भी हो गया है l सवाल पूछो तो चिल्ला चिल्ला कर कहती है कि हमने किसानों के बीच में जाकर उन्हें यह समझाने की खूब कोशिश की कि इससे एमएसपी पर कोई असर नहीं पड़ेगा मतलब जनता को किसानों को यह समझाया कि यह कानून गलत नहीं है lपरंतु कानून के समर्थन में होने के बावजूद उन्होंने जो त्यागपत्र दिया वह किसानों का दबाव ही था l उन्हें एहसास हो गया था कि हम कोई तर्क दें किसान मानने वाले नहीं हैं lयदि ऐसा ही हरियाणा में हुआ और जे जे पी सरकार के खिलाफ जा खड़ी हुई तो सरकार को बचाने का मनोहर लाल का एक तीर अभी बाकी है और वह है 9 निर्दलीय विधायक को में से आठ और एक गोपाल कांडा आदि को साथ लेकर सरकार बचाना l

आप समझ सकते हैं कि हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के 40 विधायक हैं और नौ विधायक निर्दलीय रूप में बनकर आए हैं l इनमें से एक ने सरकार से अपना समर्थन वापिस ले रखा है l ऐसे में 8 निर्दलीय विधायक भी सरकार के साथ रहे तो भी सरकार बनी रहेगी चलती रहेगी l इन 8 विधायकों में अधिकांश वह है जो थे तो भाजपा में और टिकट भी भाजपा से मांग रहे थे परंतु मिली नहीं और वह निर्दलीय चुनाव में उतरे जीत कर फिर सरकार के पक्ष में आ खड़े हुए l यदि इन निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर सरकार बनाई जाती है तो एक दिक्कत जरूर आएगी वह यह है कि लगभग सारे निर्दलीय मंत्री बनने की कोशिश करेंगे l

इस समय मनोहर लाल सरकार ने 10 विधायकों वाली पार्टी या एक पक्ष के तो मात्र दो विधायक मंत्री बना रखे हैं और काम चल रहा है. Lदूसरी तरफ यदि निर्दलीयों को मंत्री बनाना पड़ा तो दो से काम नहीं चल पाएगा ,इनमें से एक मंत्री तो पहले ही है बाकी रहे सात इनमें से 3 को चेयरमैन बना रखा है l अब चेयरमैन भी मंत्री बनना चाहेंगे और विधायक भी l ऐसे में कई सीमाएं भी है l सरकार को या तो अपने कुछ मंत्री ड्राप करने पड़ेंगे या विधायकों को किसी और तरीके से मनाना पड़ेगा, l है यह टेड्डा काम l

कमाल की बात तो यह है कि लगभग एक दर्जन महत्वपूर्ण विभाग लेकर सरकार पर दबाव बनाकर चल रहे जेजेपी के नेता सरकार में रहकर परफॉर्म नहीं कर पाए हैं और अब किसान आंदोलन तथा बरोदा उपचुनाव के संदर्भ में मनोहर लाल पर दबाव बनाने की कोशिश में त्यागपत्र देने या समर्थन वापिस लेने की रणनीति को क्रियान्वित करने लग गए तो फिर मनोहर लाल को गोपाल कांडा के पास इसलिए जाना पड़ेगा कि वह कोई अपना फार्मूला अप्लाई कर निर्दलीय विधायकों से सार्थक तालमेल बनाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं, साथ ही सिरसा जिले से संबंधित होने के कारण चौधरी देवीलाल परिवार के सभी नेताओं के लिए सिर दर्द भी हो सकते हैं

lजाहिर है वे सरकार के साथ आए तो मंत्री जरूर बनेंगे l हो सकता है कल मुख्यमंत्री यह कह दे कि यह मुलाकात केवल सद्भाव के दृष्टिगत संयोग से हुई परंतु विचारशील लोग यह जरूर सोचेंगे कि कल बिना शर्त समर्थन देने वाले जिस गोपाल कांडा को भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने नकार दिया था आज उसी पार्टी के नेता मुख्यमंत्री मनोहर लाल उनसे भेंट करके आए हैं तो इसका एक बड़ा मतलब जरूर है l राजनीति में न स्थाई दोस्ती होती न स्थाई दुश्मनी lहम यह भी कह सकते हैं की सूत कसूत का नाम राजनीति है l यह भी की जब संकट का दौर हो तो वही करना चाहिए जो उपयुक्त हो l

मनोहर लाल यह भी समझ रहे होंगे कि अभी तो किसान ही विरोध प्रदर्शन करने सड़कों पर आया है आगे आगे लोग आम जनता को यह समझाने में भी सफल हो सकते हैं कि यह कानून लागू हुआ तो आवश्यक वस्तु अधिनियम का कोई मतलब नहीं रह जाएगा कालाबाजारी को कोई भी रोक नहीं पाएगा नुकसान किसान को भी होगा भूमि तीन मजदूर को भी गरीब को भी कमजोर को भी l फायदा होगा तो मुट्ठी भर पूंजीपतियों का होगा जो अपने साधनों के दम पर सारा अनाज खरीद कर उसे गोदामों में जमा कर मनचाहे दाम पर बेचेगा और आम आदमी के लिए अनाज खरीदना भी कठिन हो जाएगा l इसलिए मनोहर लाल को अपनी सारी राजनीतिक परिसंपत्ति बचाकर तो रखनी पड़ ही रही है सरकार अल्पमत में आई तो उसे बचाने की चिंता भी करनी पड़ रही है l

उन्हें पता है कि वे प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी की कृपा दृष्टि से मुख्यमंत्री बने हैं परंतु उन्हें यह भी पता है कि उन्हें समर्थन देकर सरकार चला रहे विधायक जनता की कृपा दृष्टि से चुनकर आए हैं और यदि जनता का मूड सरकार के खिलाफ हुआ तो फिर वे वही करेंगे जो जनता चाहेगी उसी तरह जैसे हरसिमरन बादल को करना पड़ाl इसलिए हरियाणा के हालात भी बहुत बढ़िया नहीं है आने वाले समय में यदि आंदोलन समाप्त नहीं हुआ तो नई दिक्कतें आनी शुरू हो जाएगी l आप समझ सकते हैं कि अब आम किसान इस बात पर भी विचार करने लगा है कि नरेंद्र मोदी और उनके समर्थक जो यह बात शुरू से कहते आ रहे हैं कि अध्यादेश बिल क़ानून वापिस नहीं होगा तो इसमें यह कहना बेमानी नहीं होगा कि दाल में कुछ काला जरूर है l

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