भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज का दिन हरियाणा के लिए खास रहा। आज तीन महत्वपूर्ण घटनाएं हरियाणा में रहीं। प्रथम तो किसानों का बंद, दूसरा जननायक ताऊ देवीलाल की जयंती और तीसरा पं. दीनदयाल उपाध्याय का जन्मदिन और तीनों की सारा दिन खूब चर्चा भी रही, सोशल मीडिया पर भी छाये रहे। यद्यपि किसानों का बंद किसानों के अनुसार उनके अस्तित्व की लड़ाई है, जबकि ताऊ देवीलाल जननायक के रूप में जाने जाते हैं परंतु उनका जन्मदिन जजपा ही मना रही थी और इसी प्रकार पं. दीनदयाल उपाध्याय भी समाज के नेता माने जाते हैं लेकिन उनका जन्मदिन मनाने भाजपा ही लगी रही। अत: कह सकते हैं कि तीन ढपली-तीन राग।

सर्वप्रथम बात करते हैं किसान आंदोलन की। तो यह कहने में झिझक नहीं है कि माननीय प्रधानमंत्री, हरियाणा के मुख्यमंत्री और हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष अपनी मंत्रियों की फौज और लाखों भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रयासों से भी किसानों को अपनी बात पर विश्वास नहीं करा पाए। संक्षिप्त में कह सकते हैं कि सरकार ने किसानों से अपना विश्वास खो दिया। आशा से अधिक स्थान-स्थान पर किसानों ने सडक़ें रोकीं। चाहे रोहतक हो, हिसार हो, सिरसा हो, कुरूक्षेत्र हो, पंचकूला हो, और तो और दक्षिणी हरियाणा जहां यह माना जाता था कि यहां किसान आंदोलन नहीं करेंगे, वहां भी आंदोलन हुए और यह सरकार के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि किसानों के साथ इस समय राजनैतिक दल ही नहीं, व्यापारी और कर्मचारी भी दिखाई देते हैं। और दूसरी ओर किसान अपने आंदोलन में किसी भी राजनैतिक दल का झंडा नहीं लगाने दे रहे। उनका कहना है कि कोई साथ आए न आए, संघर्ष हम अपने बूते करेंगे।

अब बात करें जननायक ताऊ देवीलाल की। तो उनका जन्मदिन मनाने में जजपा और इनेलो ही लगे नजर आए। अब हम कहने को तो दो पार्टी कह सकते हैं लेकिन देखा जाए तो केवल ताऊ देवीलाल का परिवार ही उनकी जयंती मना रहा था।

चर्चाकारों का कहना है कि यूं तो सगा ही ताऊ देवीलाल की जयंती इनेलो धूमधाम से मनाती रही है और उनके सिद्धांतों पर चलने की बात कहती रही है। परंतु इस बार स्थितियां कुछ भिन्न थीं। दोनों दल इनेलो और जजपा इस जयंती को इस बार अपने कार्यकर्ताओं में जोश जगाने, उन्हें एकत्र करने और जनाधार बढ़ाने के लिए मना रहे थे। इसमें दोनों को खूब सफलता भी प्राप्त हुई परंतु आशा अनुरूप नहीं। कई स्थानों पर जजपा के कार्यक्रम फीके रहे और इसी प्रकार कहीं इनेलो के कार्यक्रम।

इन कार्यक्रमों से दोनों ही अपने आपको ताऊ देवीलाल का वारिस सिद्ध करने में लगे हैं और अभय चौटाला तो खुलकर कह ही रहे हैं कि ताऊ देवीलाल ने ताउम्र किसानों और गरीब तबके के लिए कार्य किया। और अब जो सत्ता में बैठकर अपने आपको उनका वारिस कह रहे हैं, वे किसानों के दुश्मन के साथ हाथ मिलाए बैठे हैं। यदि वे सच्चे वारिस हैं तो किसानों के समर्थन में इस्तीफा दें।
पं. दीनदयाल उपाध्याय के बारे में कह सकते हैं कि ताऊ देवीलाल की तरह वह समाज के नहीं अपितु संघ और भाजपा के नेता अधिक कहलाए गए। यूं सोचा जाए तो जो नेता अपने आपको स्थापित करता है, वह किसी एक वर्ग से स्थापित नहीं हो पाता, उसे हर वर्ग का समर्थन मिलता है तभी वह स्थापित होता है। अत: हम कह सकते हैं कि वह भी देश के नेता थे। यह दिगर बात है कि इस वर्ष जो जोश हरियाणा के भाजपाइयों में जयंती मनाने का दिखाई दिया, वह इससे पूर्व कभी दिखाई नहीं दिया था।

इसका कारण क्या है, इस पर चर्चाकारों का कहना है कि हरियाणा सरकार इस समय सुखद स्थिति में नहीं है। आंतरिक फूट के संदेश मिल रहे हैं। ऐसे में कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखने के लिए कोई न कोई कार्यक्रम भाजपा मनाती ही रहती है, जिससे कार्यकर्ता सक्रिय रहें और वर्तमान में कुछ स्थितियां ऐसी हैं कि मुख्यमंत्री को चेयरमैन बनाने हैं और मंत्रीमंडल का विस्तार भी करना है। प्रदेश अध्यक्ष को प्रदेश और जिला कार्यकारिणी का गठन करना है। अत: भाजपा के कुछ महत्वकांक्षी इस समय यह जयंती मनाकर अपने नंबर बनाने प्रयास में भी लगे रहे हैं।

इस समय हरियाणा में भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार है और गठबंधन की सरकार में माना जाता है कि सामंजस्य पूरा होना चाहिए। यदि कोई भाजपा का बड़ा नेता है, उसका सम्मान जजपा वालों को भी करना चाहिए। उसी प्रकार कोई जननायक है तो उसका सम्मान भाजपा को भी करना चाहिए। परंतु आज ऐसा दिखाई नहीं पड़ा कि कहीं भाजपा के नेताओं ने ताऊ देवीलाल को श्रद्धांजलि दी हो या जजपा के नेताओं के पं. दीनदयाल उपाध्याय को श्रद्धांजलि दी हो।

इसमें हम सरकार के प्रमुख मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के नाम भी ले सकते हैं। जब मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री ही एक-दूसरे के नेताओं को जन्मदिन पर श्रद्धांजलि नहीं दे सकते तो अनुमान लगाया जा सकता है कि दोनों दलों में कितना सामंजस्य है और जब शीर्ष नेता ही एक-दूसरे के नेताओं को श्रद्धांजलि नहीं दे रहे तो कार्यकर्ताओं के बारे में ऐसा सोचना क्या होगा, अनुमान लगाइए।

आज इन स्थितियों से अगर कोई निर्णय निकालने का प्रयास किया जाए तो समझ आता है कि दोनों दलों का स्वार्थ का गठबंधन है और दोनों दल दिलों से दिखाने के लिए भी एक-दूसरे के महापुरूषों का सम्मान नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में गठबंधन के स्थायित्व पर प्रश्न उठना स्वभाविक है।

किसान आंदोलन पर भाजपा की स्थिति स्पष्ट नजर नहीं आ रही। किसान का कहना है कि भाजपा नेता यथार्थ में घुसकर हमारी स्थितियों को समझना ही नहीं चाहते। यदि हम गलत होते तो इतने राजनैतिक दल, व्यापारी, कर्मचारी हमारे को उचित कैसे ठहराते। अर्थात हम अपने अधिकारों के लिए सच्चा संघर्ष कर रहे हैं, जबकि भाजपा नेता इस समय केवल और केवल केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री की बोली ही बोल रहे हैं। और बोलें भी क्यों न, हरियाणा में भाजपा के मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष प्रधानमंत्री के आशीर्वाद से ही बने हैं, न कि हरियाणा की जनता के आशीर्वाद से। अत: वह पहले जिसने उन्हें पद दिया है, उसकी बात मानेंगे या किसी अन्य की। तात्पर्य यह है कि भाजपा सरकार और उसके मंत्री केवल और केवल प्रधानमंत्री के विधेयकों की तारीफ और समर्थन कर सकते हैं, उनका विरोध वह कर नहीं सकते। अत: जनता को संघर्ष तो करना ही पड़ेगा।

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