डिजिटल कॉन्कलेव का आयोजन करने वाला हरियाणा देश का पहला राज्य

चंडीगढ़, 28 अगस्त- हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवर पाल ने कहा है कि डिजिटल कॉन्कलेव का आयोजन करने वाला हरियाणा देश का पहला राज्य है। राष्टÑीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के नए भारत की नींव तैयार करने वाली है, इसलिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ-साथ शिक्षाविदों व विद्यार्थियों के अभिभावकों को आगे आकर इस नीति के क्रियान्यवन को एक महायज्ञ समझकर आहूति डालनी होगी। कंवर पाल ने कहा है कि कोविड-19 के दौरान आॅनलाइन कक्षाएं लगाकर हरियाणा ने देश में बेहतरीन प्रदर्शन किया। हिमाचल व गुजरात के बाद हरियाणा देश में अव्वल स्थान पर रहा है।

 उन्होंने कहा कि हरियाणा ने देश में सबसे पहले इस नीति के क्रियान्वयन की पहल की है। राष्टÑीय शिक्षा नीति के आने से पहले ही प्रदेश में 1000 प्ले स्कूल खोलने की योजना तैयार की जा चुकी थी। इसके अलावा, 98 संस्कृति मॉडल स्कूल भी खोले जा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने नई राष्टÑीय शिक्षा नीति लागू करने के लिए हरियाणा के रा’यपाल श्री सत्यदेव नारायाण आर्य, जो प्रदेश के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं , द्वारा की गई उस पहल का भी स्वागत किया है, जिसमें हरियाणा राजभवन चंडीगढ़ में शिक्षाविदों की चार दिवसीय डिजिटल कॉन्कलेव का आयोजन करवाया। इसमें 250 से अधिक विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, प्रचार्यों, मुख्याध्यापकों व अन्य शिक्षाविदों ने अपने सुझाव दिए, जिन्हें नई राष्टÑीय शिक्षा नीति लागू करने में समायोजित किया जाएगा।

कंवर पाल ने कहा कि राष्टÑपति श्री रामनाथ कोविंद भी शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के प्रति  गंभीर हैं और संभवत: हरियाणा की डिजिटल कॉन्कलेव की पहल को देखते हुए ही उन्होंने 7 सितम्बर, 2020 को सभी प्रदेशों के राज्यपाल, जो अपने-अपने प्रदेश के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं, इसी तरह का कॉन्कलेव नई दिल्ली में बुलाया है। इसमें राष्टÑीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की रूपरेखा की समीक्षा की जाएगी।

कंवर पाल ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा का इन्फ्रास्ट्रक्चर पहले से सुदृढ़ है। हरियाणा देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां 15 किलोमीटर की परिधि में कोई न कोई  महाविद्यालय खोला गया है। उन्होंने कहा कि भारतवर्ष में प्राचीनकाल से ही शिक्षा दान एक महादान के रूप में प्रचलित है और यहां गुरु-शिष्य परम्परा युगों से चलती आ रही है।

शिष्य अपनी शिक्षा पूरी करने उपरांत गुरु को दक्षिणा देकर अपने भविष्य का लक्ष्य निर्धारित करके जो आशीर्वाद लेकर जाता है, उसी को शिक्षा का महादान कहा गया है और यह प्रथा विश्व के किसी अन्य देश में आज तक देखने को नहीं मिली।

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