कुछ भी करे सत्ता पक्ष, नहीं बोल रही कांग्रेस, यह कैसा प्रजातंत्र?

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

हमारे देश में लोकतंत्र है, जनता अपना प्रतिनिधि चुनती हैं, कोई पार्टी अधिक सीट लेती है तो कोई कम लेकिन वायदा सभी का जनता की सेवा का ही होता है। सत्ता पक्ष के ऊपर जिम्मेदारी होती है जनता की उचित प्रकार से सेवा करे और जनता की खुशहाली के लिए काम करे। और विपक्ष का काम होता है कि कहीं सरकार गलती करे तो उसे टोके। यदि टोकने से नहीं माने तो जनता को साथ लेकर सरकार पर दबाव बनाए। यही पक्ष-विपक्ष की राजनीति है और यही लोकतंत्र का सौंदर्य।

वर्तमान में हरियाणा में भाजपा की सरकार है और विपक्ष में बड़ी पार्टी के रूप में कांग्रेस है। लेकिन कांग्रेस की कार्यशैली देखें तो वह तो जाने अपने बारे में क्या सोचते हैं लेकिन जनता यह अवश्य सोचती है कि कांग्रेस विपक्ष की भूमिका निभाने में पूर्णतया: असफल नजर आ रही है और शायद यही कारण है कि सत्तारूढ़ दल स्वच्छंद हो चला है।

अब गुरुग्राम की बात करें तो गुरुग्राम में कहीं कोई कांग्रेस का नेता-कार्यकर्ता नजर ही नहीं आता। गत लोकसभा चुनाव में गुरुग्राम की जनता ने कांग्रेस को लगभग 45 हजार वोट दिए थे। लेकिन कांग्रेस की उदासीनता के चलते विधानसभा में बैठकर आधे ही रह गए, जबकि उस समय तो चुनाव नजदीक होने के कारण कहीं-कहीं कांग्रेसी नजर आ जाते थे परंतु चुनाव होने के पश्चात तो कांग्रेसी कहीं दिखाई ही नहीं देते। जनता क्या सोचे?

गुरुग्राम में समस्याओं का अंबार है, जनता परेशान है, नए फ्लाइओवरों में गड्ढ़े हो जाते हैं, निगम में बिना काम करे पेमेंट हो जाती है, जेल में गैंगस्टर पनप रहे हैं, पुलिस की भूमिका संदिग्ध है, अवैध निर्माण हो रहे हैं, अवैध कॉलोनियां दबादब विकसित हो रही हैं, सडक़ों का निर्माण नहीं हो रहा, बिजली आंख-मिचौनी खेल रही है, सडक़ें टूटी-फूटी हैं, जनता स्वास्थ्य सेवाओं को तरस रही है, ग्रीन बैल्ट पर कब्जे हैं, सीवर जाम पड़े हैं, जबकि बरसात का मौसम चल रहा है और सीवर सफाई के टैंडर बरसात शुरू होने के बाद दिए जाते हैं, भ्रष्टाचार चरम पर है। अर्थात स्वच्छंद होकर राज कर रहे हैं यहां भाजपाई और अधिकारी।

आम तौर पर कहा जाता है कि विधायक की जिम्मेदारी सबसे अधिक होती है, अपने क्षेत्र का ध्यान रखने की और उसे याद दिलाने की जिम्मेदारी होती है विपक्ष के हारे विधायक के उम्मीदवार की। परंतु यहां तो हुड्डा सरकार में मंत्री रहे और अब विधायक के उम्मीदवार रहे सुखबीर कटारिया तो कहीं दिखाई ही नहीं देते। जब वे ही नहीं दिखाई देते तो और कोई क्यों दिखाई देगा।

इसी प्रकार गुरुग्राम संसदीय क्षेत्र से सांसद का चुनाव लड़े कैप्टन अजय सिंह यादव ने तो हारने के बाद कभी गुरुग्राम का रूख ही नहीं किया। ऐसी स्थितियों में जनता इन सभी परेशानियों के झेलने के लिए मजबूर है।

गुरुग्राम पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता रहा है और वर्तमान में भी कांग्रेस की कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ही संभाल रखी है और यहां के सुखबीर कटारिया भूपेंद्र हुड्डा के विशेष कृपा पात्र है। अब क्या माना जाए कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुरुग्राम से बदला ले रहे हैं कि गुरुग्राम की जनता ने उनके उम्मीदवार को हरा दिया। अत: अपने लोगों से बोल दिया कि आप जनता को उसके हाल पर छोड़ दो, क्योंकि उन्होंने हमें वोट नहीं दिया था।

ऐसी चर्चाएं चल रही हैं, वास्तविकता क्या है यह तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा जानें या यहां के कांग्रेस जन। किंतु चर्चा तो यह भी चल रही है कि सुखबीर कटारिया के पारिवारिक संबंध भाजपा से हो गए हैं। अत: वह पारिवारिक संबंध निभाएं या चुनाव के इतने समय पूर्व राजनीति करें। अत: वह अपने संबंध निभा रहे हैं। सरकार के विरूद्ध जनता के लिए संघर्ष कर क्यों अपने पारिवारिक संबंध बिगाड़ें। जब समय आएगा, तब देखेंगे। लेकिन जब समय आएगा, तो देखना होगा कि जनता इस समय को याद रखेगी या नहीं।

गुरुग्राम हरियाणा का महत्वपूर्ण जिला है। हुड्डा साहब जब यहां कांग्रेस हो गई तो क्या आप रोहतक और सोनीपत बचा पाओगे? क्योंकि रोहतक और सोनीपत की कुछ जड़ें कहीं न कहीं गुरुग्राम से भी मिली हैं और वर्तमान में कोरोना महामारी काल चल रहा है। जनता हर तरह की परेशानियों से जूझ रही है। ऐसे में उसे कोई ऐसा दिखना चाहिए, जो लगे कि वह उसका अपना है। वैसे वर्तमान में प्रियंका गांधी ने भी गुरुग्राम में निवास बना लिया है और जैसा कि उनका विगत समय उत्तर प्रदेश का देखा जाए तो वह चुप बैठने वाली नहीं हैं। तो क्या यह समझा जाए कि आप इंतजार कर रहे हैं कि प्रियंका गांधी आपको कहें कि आपने गुरुग्राम की क्या गत बना दी और कहां है यहां का संगठन।

यह तो हुई मुख्य विपक्षी दल की बात लेकिन विधायक का चुनाव तो अन्य दल के लोग भी लड़ रहे थे और निर्दलीय भी लड़ रहे थे। आप पार्टी वाले अपने आपको सबसे अधिक संघर्षशील बताते हैं और कहते हैं कि संघर्ष ही हमारी शक्ति है तभी हम मोदी को हराकर दिल्ली में राज कर रहे हैं लेकिन कहां है इनकी संघर्ष भावना गुरुग्राम में? इसी प्रकार कुछ निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में थे। बड़े-बड़े दावे करते थे कि हम जीते या हमारे, हम युवा हैं, अनुभवी हैं, गुरुग्राम की सभी समस्याओं से वाकिफ हैं लेकिन वे भी अब कहां हैं?

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