उमेश जोशी

लंबे इंतजार के बाद हरियाणा बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष नई चुनौतियों के साथ मिला है। पिछले साल अक्तूबर में विधानसभा चुनाव में पार्टी के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को बदल कर नया चेहरा देने की चर्चा होने लगी थी। नया चेहरा देने में सात महीने से अधिक समय लग गया। लोग सोच रहे थे कि ज्यादा समय इसलिए लग रहा है कि शायद कोई ऐसा चेहरा खोजा जा रहा है जो कोई करिश्मा कर दिखाएगा और पार्टी का खोया मान सम्मान वापस ले आएगा। सत्तारूढ़ पार्टी के लिए ऐसा अध्यक्ष खोजना कौन-सी बड़ी बात है, कहीं से भी ला सकते हैं, ऐसा कार्यकर्ताओं को भरोसा था।। लेकिन, आम लोगों को कम से कम पार्टी के भीतर ऐसा कोई करिश्माई चेहरा नहीं दिख रहा था। मीडिया ने भी चारों ओर नजर फैलाई, लेकिन उसे भी कोई तारनहार चेहरा नजर नहीं आया। सारे दिग्गज तो चुनाव हार गए थे। फिर भला अध्यक्ष के लिए कौन-सा चेहरा हो सकता है।  

    आखिरकार बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने 19  जुलाई को सावन शिवरात्रि के दिन अध्यक्ष पद के लिए ओम प्रकाश धनकड़ के नाम की घोषणा कर दी। राजनीतिक हलकों में यह चौंकाने वाली खबर थी क्योंकि यह अप्रत्याशित नाम था।  हालांकि ओम प्रकाश धनकड़ पार्टी के किसान मोर्चा के दो बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। लेकिन, किसान मोर्चा और राजनीतिक पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में बड़ा अंतर होता है। राजनीतिक पार्टी का संगठनात्मक ढांचा ऐसा बनाया जाता है जो पार्टी को सत्ता के तक्ष्य तक पहुंचा दे जबकि किसान मोर्चा से ऐसी अपेक्षा नहीं की जाती है।            

   ओम प्रकाश धनकड़ को अध्यक्ष बनाना पार्टी की मजबूरी थी।  प्रदेश में जातीय संतुलन बनाने के लिए पार्टी को जाट चेहरा चाहिए था। सुभाष बराला को भी इसीलिए अध्यक्ष बनाया गया था की वे जाट समुदाय से  हैं। हरियाणा में 29 फ़ीसदी जाट हैं और कोई भी पार्टी जाटों को  नाराज कर सत्ता हासिल नहीं कर सकती। जाट समुदाय के लोग गैर जाट को मुख्यमंत्री बनाए जाने से पहले ही नाराज़ है। प्रदेश अध्यक्ष के महत्त्वपूर्ण पद पर जाट चेहरा उतार कर कुछ हद तक जाटों की नाराज़गी दूर करने का प्रयास इस बार भी किया गया है। इस लिहाज से पार्टी के पास चयन के लिए सीमित दायरा था यानी जाटों में से ही अध्यक्ष का चयन करना था। पार्टी की इस मजबूरी को देखते हुए कैप्टन अभिमन्यु ने भी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अपना नाम उछाल दिया था ।  2014 में विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह भावी मुख्यमंत्री के लिए मीडिया से अपना नाम उछलवा लिया था, ठीक वैसे ही  प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी  खुद को दौड़ में शामिल कर लिया था। हालांकि पार्टी में उनके नाम पर कभी विचार ही नहीं हुआ। गृह मंत्री अमित शाह ने कैप्टन अभिमन्यु को पिछले एक साल से मिलने का वक़्त तक नहीं दिया उसे भला प्रदेश अध्यक्ष का पद कैसे दिया जा सकता था।

     नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनकड़ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी नाता होने का पुरस्कार मिला है, ठीक वैसे ही जैसे मनोहर लाल खट्टर को पुरस्कार स्वरुप मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली है। वैसे भी मुख्यमंत्री को चौके-छक्के वाली बैटिंग करने के लिए कमज़ोर बॉलर की ज़रूरत थी। अब यह बॉलर वैसी ही बॉल डालेगा जैसी बैट्समैन चाहेगा। दोनों की जुगलबंदी अच्छी रहेगी ।

     मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 21 जुलाई को अपने आवास पर पार्टी  विधायकों  की  बैठक बुलाई थी। ज़ाहिर है उसमें ओम प्रकाश धनकड़ को भी आमंत्रित किया गया था ताकि वे नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष के नाते विधायकों के मुलाक़ात कर सकें।  वहां धनकड़ ने पार्टी संगठन को मजबूत कर पार्टी को जीत दिलाने का जोशीला भाषण भी  दिया था।  पार्टी विधायक तो ना जाने क्या सोच रहे थे लेकिन बादली के कार्यकर्ता ज़रूर हंस रहे होंगे कि जो शख्स मंत्री रहते हुए खुद चुनाव नहीं जीत पाया वो प्रदेश में पार्टी को कैसे जिता पाएंगे। उनकी हार का दागदार पहलु यह है कि नरेश शर्मा नाम के बाहरी व्यक्ति ने उन्हें उनके गढ़ में आकर धराशायी  कर दिया। विधायक का चुनाव हारा हुआ प्रदेश अध्यक्ष जीते हुए विधायकों को उस बैठक में ठीक वैसे ही ज्ञान दे रहे थे जैसे परीक्षा में फेल कोई  बच्चा उत्तीर्ण बच्चों को उज्ज्वल भविष्य बनाने के गुर सिखाए।

      बरोदा विधानसभा उपचुनाव में नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष की संगठनात्मक क्षमताओं का पता चल जाएगा।  बीजेपी बरोदा उपचुनाव को जींद उपचुनाव की तरह मान रही है इसलिए जीत के बड़े बड़े दावे कर रही है।  इसी बीजेपी ने आम चुनाव में 75 प्लस सीटें जीतने का दावा किया था और 40 पर अटक गई थी । मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष यह गीता ज्ञान अपने अंदर उतार लें कि दावों से चुनाव नहीं जीता जाता है। दावों के साथ राजनीतिक दांव जरूरी हैं। थोड़ी-सी भी राजनीतिक समझ वाला व्यक्ति यह बात जानता है कि हरियाणा बीजेपी राजनीतिक दांव ठीक से नहीं खेल पाई इसलिए सत्ता का केक मजबूरन जेजेपी के साथ शेयर करना पड़ा। 

   ओम प्रकाश धनकड़ को अब अपनी टीम बनानी है। टीम में किसको रखें और किसको छोड़ें, इस  प्रश्न का हल आसान नहीं है।  बीजेपी के 10 सांसद अपने कारिंदों को फिट करवाने के लिए अध्यक्ष पर दबाव बनाएंगे।  सांसदों को भी तो अपनी राजनीति करनी है इसलिए अपने समर्पित समर्थकों को संगठन में जगह दिलवाने के लिए वे  पूरा ज़ोर लगाएंगे। क्या धनखड़ वो ज़ोर झेल पाएंगे। यदि नहीं झेल पाएंगे तो उनकी नाराज़गी झेलनी पड़ेगी जिसका असर संगठन पर पड़ना लाज़िमी है और संगठन की खामी या नाकामी धनकड़ के खाते में ही जाएगी।