वरिष्ठ नेता नारायण तेहलान की कलम से

साथ ही कुछ दिन पहले एक पोस्ट में मेरे द्वारा उठाए गए इस सवाल का जवाब भी मिल गया कि ” देखते हैं हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष पद पर कौन हो इसका फैसला भाजपा हाई कमान करता है या जननायक जनता पार्टी करती है”। अंतिम फैसला जजपा का मान्य रहा। इसके लिए जजपा सुप्रीमो दुष्यंत चौटाला को बधाई।

इसके साथ ही मेरी वह बात भी सही सिद्ध हो गई कि कैप्टन अभिमन्यु को फंसाने के जाल जो बिछाया गया है वह अति विकट है, महाभारत में वर्णित चक्रव्यूह से किसी भी तरह कम नहीं। इसमें शामिल महारथी भी एक तरह से उन्हीं के अवतार लगते हैं। अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंस गया, मारा गया लेकिन जीत उनकी भी नहीं हुई। ज़लालत की सब हदें पार, जनमत को खरी खरी दुत्कार।

मेरी, और बहुत से दूसरे साथियों की य। यह मान्यता भी एक बार फिर से सही सिद्ध हुई कि चौटाला परिवार राजनीति में किसी भी उभरते हुए दूसरे जाट को बर्दाश्त नहीं कर सकता, इसके लिए इन्हें चाहे जो करना पड़े। यह सिद्धांत चौधरी देवीलाल जी के समय से ही उनकी विचारधारा का अभिन्न अंग बन चुका है। या तो चौधरी बंसीलाल जी ने इनको सबक सिखाया था, एक कोने में बैठा दिया था, देवीलाल को इस हैसियत में ला दिया था कि बंसीलाल के मुख्यमंत्री रहते देवीलाल को खादी बोर्ड का चेयरमैन बनने के लिए मजबूर होना पड़ा था। दूसरे भजन लाल ने भी टिरड़ निकाल के रख दी थी , और भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तो तो खैर बार बार पटकी दी ही थी।

एक बात यह भी सिद्ध हो गई कि यहां की सियासत में मुद्दों के लिए कोई स्थान नहीं है। सब मुद्दे ओंधे मुंह गिरे हुए हैं। भाजपा और जजपा की गठबंधन सरकार बनने के बाद गांव देहात किसान मजदूर के लिए कौन सा मुद्दा डिप्टी सी एम ने उठाया? कितनी बार सीएम के किसान और खास तौर पर जाट-विरोधी रवैये पर टोकाटाकी करी? अभिमन्यु को भाजपा का अध्यक्ष बनने से रोकने के लिए दुष्यंत कितनी ही बार भाजपा नेताओं के दरवाजे पर गुलदस्ते भेंट करने गया, कभी एसवाईएल की बात करी? कभी टिड्डी दल से बर्बाद हुई किसानों की फसलों के मुआवजे की बात करी? कभी किसानों के कर्ज माफ कराने, सरकारी कर्मचारियों को पंजाब के समान वेतनमान दिलाने, पैंशन स्कीम की बहाली कराने के लिए लिए मुद्दे उठाए?

उठाएंगे भी नहीं क्योंकि ये अपने परिवार और परिवेश से बाहर किसी के भले की बात सोच ही नहीं सकते। दिग्विजय को बरोदा में साझा उम्मीदवार बनाने की बात करी। या तो बात बन गई वर्ना कढी बिगाड़ू की भूमिका अदा करने आएंगे जरूर क्योंकि यह देवीलाल की विचारधारा का हिस्सा है।

मैं भाजपा समर्थक तो हूँ ही नहीं लेकिन विरोध करने के लिए विरोध भी नहीं करता। मैंने बार बार सोशल मीडिया पर अभिमन्यु को भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने के हक में पोस्ट लिखी। कई मित्रों ने सवाल भी उठाए कि जब आपका भाजपा से कोई रिश्ता नहीं तो अध्यक्ष पद की चिंता क्यों? इनके सवाल जायज थे। कई बार मैं खुद भी सोचता था कि मैं भला बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना वाली भूमिका किस लिए निभा रहा हूं?

लेकिन इसके पीछे एक कारण था। यह बात लगभग निश्चित हो चुकी थी जजपा की सांठगांठ के बाद यह सरकार लंबी चलेगी, और मुख्यमंत्री मनोहर लाल ही रहेंगे। यह भी पक्का हो चला था कि मनोहर लाल की सोच में गांव देहात किसान मजदूर के हितों के लिए लेशमात्र भी जगह नहीं है। इनका जाट विरोधी रवैया तो शुरू से साफ़ है ही। यह भी पक्का हो चला था कि जजपा भाजपा के आगे, या कहें कि दुष्यंत मनोहर के आगे समर्पण कर चुका है। शर्त एक ही है कि उनके पारिवारिक हितों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। यह अब फिर सिद्ध भी हो गया। इसके लिए अपने प्रोटोकॉल की चिंता सब मुद्दों से ऊपर हो गई। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और विधानसभा के स्पीकर से ऊपर इनकी प्रोटोकॉल हो गई। घास डालने में मनोहर कोई कमी नहीं छोड़ रहे और चबाने में ये। लेकिन सवाल यह है कि इनका प्रोटोकॉल बढ जाने से प्रदेश और इसकी जनता की कौन सी समस्या हल हो गई? इनके अहंकार को तुष्टि मिल गई बस।

हम यह भी देख चुके थे कि पार्टी अध्यक्ष रहते सुभाष बराला ने कभी एक शब्द तक जनता के किसी मुद्दे पर नहीं बोला। यह बिल्कुल ऐसा ही अध्यक्ष सिद्ध हुआ जैसे चौटाला के अध्यक्ष हुआ करते। यही कारण है कि सुभाष मनोहर की पहली पसंद बन गया था। ऐसे में बराला से क्या उम्मीद करी जा सकती थी?

ओमप्रकाश धनखड़ को कृषिमंत्री के रूप में हम देख ही चुके थे। इस समय ज्यादा लिखना जलन में शुमार होगा। उम्मीद इनसे भी नहीं हो सकती थी।

यह भी लगभग तय था कि अध्यक्ष जाट ही बनेगा और वह इन्हीं तीन में से होगा।

ऐसे में सरकार और पार्टी के बीच चैक्स एंड बैलेंसिस बनाए रखने के लिए किसी मजबूत अध्यक्ष की जरूरत थी जो सरकार का पिछलग्गू न होकर सरकार को अपने पीछे चलाने की हैसियत योग्यता और क्षमता रखता हो। इन हालात में कैप्टन एकमात्र च्वायस बची थी। मतलब भाजपा से नहीं था, मतलब इस बात से था कि सरकार पर जनविरोधी नीतियों पर अंकुश कैसे लगे?

ओमप्रकाश धनखड़ के लिए मैं इतना ही कहूंगा कि अपनी पार्टी में चाहे वे कितने ही ऊंचे स्थान पर पहुंच जाएं लेकिन जनमत के हिसाब से उनकी हैसियत आज के दिन – 0 है। उनके सामने अपनी हैसियत सुधारने का एक अवसर जरूर है। लेकिन इसके लिए उन्हें वोकल होना पड़ेगा। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को यह एहसास कराना पड़ेगा कि कोई है जो उनकी कारगुजारियों पर गहरी नजर बनाए हुए है। वैसे मुझे लगता नहीं कि धनखड़ यह कूवत दिखा पाएंगे।

मेरे पास बातें बहुत हैं लेकिन आपके पास समय नहीं है। काश आप के पास समय होता।

एक दिन आपको यह मानने के लिए अवश्य मजबूर होना पड़ेगा कि अपने खुद अपनी कब्र के शौक ने हमें जीने लायक नहीं छोड़ा है।
जाट आरक्षण आंदोलन को लेकर कैप्टन को खूब बदनाम किया गया, खूब सजा दी गई, लेकिन मैं यह कभी नहीं मान सकता कि इसमें अभिमन्यु का लेशमात्र भी दोष है। एक दिन मानेंगे आप भी……..

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