-कमलेश भारतीय

राजस्थान प्रकरण एक रोमांचक धारावाहिक की तरह खिंचता चला जा रहा है और रोज़ इसका नया एपीसोड सामने आता है । कल दो बातें खासतौर पर हुईं -ऑडियो टेप जारी होना और गुरुग्राम के निकट ग्रैंड भारत रिसोर्ट तक राजस्थान पुलिस का विधायकों को खोजते हुए पहुंचना । क्या ये विधायक कहे जा सकते हैं ? क्या विधायक इस दिन के लिए बनते हैं या राजनीति में इसलिए आते हैं ? जनसेवा कहां गयी ? राष्ट्र सेवा की कसमे कहां गयी ?

ऑडियो टेप जारी कर कांग्रेस के प्रवक्ता ने केंद्रीय मंत्री शेखावत को गिरफ्तार करने की मांग की क्योकि वे अपने पद के प्रभाव से जांच को प्रभावित कर सकते हैं । दो कांग्रेसी विधायकों को भी निलम्बित कर दिया गया । इस तरह यह एपीसोड भी काफी सनसनीखेज रहा । लोकतंत्र हर दिन हारता जा रहा है और एक नये तरह का तंत्र सामने आ रहा है । हरिशंकर परसाई ने एक बहुत बढ़िया व्यंग्य बरसों पहले लिख दिया था जो आज सच्चाई बन कर आ गया है । वे लिखते हैं कि विधानसभा के बाहर विधायकों का आज का भाव लगा देना चाहिए । इससे बिकने वाले को भी और खरीदने वाले को भी सुभीता रहेगा ।

बताइए आज राजस्थान या इससे पहले मध्य प्रदेश और उससे भी पहले कितने ही राज्यों में ऐसा मोल भाव नहीं हुआ ? अब भी जो ऑडियो टेप जारी हुआ है उसमें पैसे देने की बात यानी मोलभाव की बात ही सामने आ रही है । यानी लोकतंत्र बिकाऊ है और जनता का इसमें क्या कसूर नहीं ? जब चुनाव में नेता निकलते हैं तो खर्च कैसे करोड़ों रुपये तक होता हो और निर्वाचन आयोग की निर्धारित सीमा से ज्यादा कैसे होता है ? इसी जनता के लिए न ? फिर कमाना किसके बल पर है ? इसी जनता को मूंड कर ? जनता क्यों नहीं समझती ? चुनाव बिना धनबल और बाहुबल के संभव ही नहीं रह गये । फिर यह पैसा कहीं से तो आएगा । नेता भी अब पार्टी के प्रति समर्पित नहीं रहे । जहां सत्ता सुख और बड़े पद का सफर मिला वहीं चल दिए ।

गुरुग्राम के निकट रिसोर्ट में जब राजस्थान पुलिस पहुंची तो हरियाणा पुलिस रोकने को तैयार मिली । क्यों ? एक तरफ हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कहते हैं कि होटल में कोई भी आ सकता है और दूसरी तरफ हरियाणा पुलिस का क्या काम ? जब तक एक डेढ़ घंटे बाद अंदर जाने दिया तब तक विधायक वहां से उड़न छू हो चुके थे । यह क्या कोई अंडरवर्ल्ड के लोग हैं ? क्या किसी गैंग के बाॅस के इशारे पर नाचते जा रहे हैं ? यदि आप विधायक हैं तो जनता के न सही अपने भाग्य विधाता तो बन जाइए ।

दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अपने पाले के विधायकों को अभी तक बाडेबंदी की तरह संभाले हुए हैं । वहां कोरोना से कौन लड़ रहा है ? किसान की चिंता किसे है ? युवाओं की या बेरोजगारी की फिक्र किसे है ? वहां तो मुगलवंश की तरह गद्दी की लड़ाई जारी है और फिर कोई भाई नहीं , कोई अपना नहीं । दोस्त नहीं , दुश्मन नहीं । सब मार काट । एक दूसरे को नीचा गिराना । गहलोत जरा भी गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहते कि सचिन की वापसी हो सके कांग्रेस में । वे दिन-प्रतिदिन आक्रामक होते जा रहे हैं । यह बड़प्पन नहीं । यह तो लड़कपन ही कहा जायेगा । राजकाज में बस गिराने का खेल है , किसी को उठाने का नहीं । यही भूल लालकृष्ण आडवाणी ने की थी और उसका खमियाजा भुगत रहे हैं । आज वे पार्टी से ही कोरोना से बहुत पहले आइसोलेट किए जा चुके हैं । क्या सच राजनीति इतनी बेरहम गेम है ? अभी यह बात भी आ रही है कि सचिन की कांग्रेस में एंट्री के समय गहलोत ही मुख्यमंत्री थे और एग्जिट के समय भी गहलोत ही मुख्यमंत्री हैं । यह स्क्रिप्ट क्या भाग्य विधाता लिख रहा है ? यह कैसी स्क्रिप्ट है ?

इस स्क्रिप्ट के बीच राजनीति के मूल्य , विचारधारा , समर्पण और जनसेवा जैसे मुद्दे कहां खो गये ? कोई इन पर विचार करने को तैयार नहीं । सबको सत्ता की पड़ी है । यह फैसला जनता ही करेगी कि उसे कैसे विधायक चाहिएं ? टिकाऊ या जन सेवक?

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