-सब केवल खोखली बात करते है, एम्स पर उठ रहे है सवाल
 -वाकई तरुण सिसौदिया ने आत्महत्या की है क्या ? 

अशोक कुमार कौशिक

सोमवार को दैनिक भास्कर के पत्रकार तरुण सिसौदिया ने एम्स की चौथी मंज़िल से कूदकर आत्महत्या कर ली, तरुण कोरोना पॉजिटिव थे, लगभग एक महिना उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था।

तरुण ‘स्वास्थ समाचारों’ का बीट देखते थे, कोरोना के दिनों अस्पताल जाना आना पड़ता था। उनका 2 साल का बेटा है और 2 महीने की बेटी।

-कुछ ओर खुदकुशियां अभी इंतज़ार में है ?

एक नहीं कई सारे मीडिया हाउसों में यह छंटनी चल रही है, कई पत्रकार तरूण सिसोदिया बनने की राह पर होंगे…

नौकरी जाने या विपरीत हालात बनने के बाद किसी पत्रकार की ख़ुदकुशी की यह पहली घटना नहीं है। लेकिन भारतीय पत्रकार विचित्र प्राणी में तब्दील हो चुका है। उसकी इस नियति के लिए वह खुद ज़िम्मेदार है। 

मिशनरी पत्रकारिता के दौर से निकलकर जब यह फ़ख़्र से प्रोफ़ेशनल पत्रकारिता कहलाने लगी तो सबसे पहले हिन्दी का पत्रकार बौरा (Crazy)  गया। पूँजीवादी मालिक सरेआम उसी के क़लम के दम पर सत्ता से और दीगर ताक़तों से समझौते और ब्लैकमेलिंग करते रहे और वह उनका टूल बनकर इस्तेमाल होता रहा। अगर इन कथित प्रोफ़ेशनल पत्रकारों ने वक्त के उस मोड़ पर हिम्मत दिखाई होती तो हालात इतने बदतर नहीं होते। आप इसलिए बदले कि आप प्रोफ़ेशनल पत्रकार कहलाना चाहते थे। 

लॉकडाउन शुरू होते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब यह कहा कि कोई भी कंपनी मालिक अपने कर्मचारियों को न निकाले तो यह मीडिया हाउसों और बाकी पूँजीपतियों को साफ़ इशारा था कि आपको सौ ख़ून माफ़ है। आप शुरूआत तो करो। ठीक एक हफ़्ते बाद तमाम मीडिया हाउसों ने छँटनी शुरू कर दी। 

मोदी या उसके किसी मंत्री ने उफ़ तक नहीं किया। मोदी के साथ सेल्फी खिंचवाने वाले पत्रकार मीडिया हाउसों की इस साज़िश में साथ खड़े नज़र आए। कोई भी राजनीतिक दल न पत्रकारों के साथ है और न होगा। क्योंकि पूँजीपति ने उसे प्रचार देने की चाबी अपने पास रखी हुई है। 

वर्षों से करोड़ों का मुनाफ़ा कमाने वाले मीडिया हाउसों की हालत यह हो गई कि उनको लॉकडाउन के चार महीने के सारे कथित घाटे की भरपाई इसी दौरान वसूलने का जुनून सवार हो गया। लेकिन विज्ञापन फिर से पटरी पर आ चुके हैं, पर मीडिया हाउसों में छँटनी फिर भी बंद नहीं हुई।

भारतीय पत्रकारिता के इतिहास का यह सबसे काला दौर है। मीडिया ही नहीं देश के तमाम रोज़गार के क्षेत्रों से काली कमाई करने वाले पूँजीपति देश को लूट रहे हैं। एक तरफ तो सरकार से आर्थिक हालात सुधारने के नाम पर लोन लिए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ काली कमाई को सफ़ेद बनाया जा रहा है। 

पत्रकार मीडिया के  इन पूँजीपतियों से नहीं लड़ सकते, क्योंकि वे एक नहीं हैं। उनके संगठन दुकानों में तब्दील हो गए हैं। ये संगठन भी विचारधारा के मुताबिक़ अपना धंधा चलाते हैं।
पत्रकार साथियों, आप लोग तिल तिल कर मरने के लिए अभिशप्त हैं। ये हालात आपने पैदा किए हैं और आप ही इसके ज़िम्मेदार हैं। लेकिन खुदकुशी उसका हल नहीं है। हिम्मत के साथ इन पूँजीपतियों से टकराने का हौसला पैदा करिए। सोचकर देखिए अभी भी आप बहुत कुछ कर सकते हैं। इसका समाधान आपके पास है। 

पत्रकार साथियों, आप लोगों के अलावा भी विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत बेरोज़गार हुए लोगों ने पूरे परिवार के साथ जान दी है। लेकिन सत्तापक्ष नेगेटिव ख़बरों के नाम पर मीडिया हाउसों में उन ख़बरों की हत्या करा देता है।

साथी तरूण सिसोदिया की मौत इसलिए चर्चा में आ गई क्योंकि सोशल मीडिया पर लोगों ने हमदर्दी में बहुत कुछ लिखा है। लेकिन अप्रैल से लेकर अब तक दसियों पत्रकार मौत को गले लगा चुके हैं। उनका तो ज़िक्र तक नहीं हुआ। इसलिए सभी पत्रकार साथी जहाँ जो जिस स्थिति में है वो जाति, धर्म, क्षेत्रवाद भूलकर पूँजीपतियों से मोर्चा ले। 

-“कोरोना योद्धा था , क्या उसकी हत्या की गई है?

तरूण की मौत में कुछ और तथ्य सामने आ रहे हैं। पता चला है कि कोरोना पॉसिटिव होने और एम्स में दाखिल होने के बाद भी वह वहां से रिपोर्ट कर रहा था। उसने एम्स में चल रही कुछ संदिग्ध गतिविधियों को सामने लाने की कोशिश की। एक वीडियो बनाया। इसके बाद उसे बिना आवश्यकता के आईसीयू में भेज दिया गया, ताकि वह अपने पास मोबाइल न रख सके। उससे पहले ही उसने व्हाट्स अप चैट में अपने मर्डर की आशंका व्यक्त की थी। 

-सवाल कई उठ रहे हैं, 

मधुरेन्दर कुमार और मनोहर कौशिक जैसे कई साथियों की जुटाई जानकारी इस मौत पर कई सवाल खड़े कर रही है। हकीकत ये है जिन हालातों में इस कोविड योद्धा की मौत हुई है उसे सामान्य आत्महत्या माना ही नहीं  जा सकता।

मिली जानकारी के मुताबिक रिपोर्टिंग के दौरान कोविड पॉजिटिव होने के बाद तरुण तकरीबन 15 दिन पहले  इलाज के लिये एम्स ट्रामा सेंटर में एडमिट हुए। उनके इलाज में कोताही बरती जा रही थी..उन्होंने आवाज उठाई , मामला स्वास्थ्य मंत्रालय पहुचा और फिर वहां से ट्रॉमा सेंटर को रिपोर्ट गयी। आरोप है कि ट्रामा सेंटर प्रशासन ने उनके फ़ोन को जब्त करने के बाद उन्हें आईसीयू में शिफ्ट करना उचित समझा ताकि उससे उनका फोन अलग किया जा सके और वो आगे कोई शिकायत न करे और अंदर की अव्यस्था की कहानी बाहर न जा सके।  कुछ दिनों पहले ही तरुण अचानक अपने वार्ड से गायब थे, उनका फ़ोन भी बंद था, इस बाबत अफरा तफरी मची, बिना बताए उन्हें कही और शिफ्ट करने का सवाल उठा तो घण्टो बीत जाने के बाद एम्स प्रशासन ने बताया कि उन्हें  आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया है। साथी मधुरेन्द्र ने तरुण की मौत को लेकर  ट्विटर पर  कई  वाजिब सवाल उठाए है मसलन 

उन्हें  ट्रामा सेंटर ने आईसीयू में शिफ्ट किया जबकि उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत नही थी? क्या ऐसा करने के पीछे सिर्फ मकसद फोन छीनना था ताकि अंदर की अव्यवस्था बाहर न आये? फैमिली से उनको कम्प्लीट कट ऑफ क्यों किया गया जबकि संपर्क में रहने से उसे मानसिक रूप से राहत मिलती?आईसीयू के सिक्योरिटी कवर से कोविड मरीज बाहर कैसे निकला? छत पर सिक्युरिटी बीच कर चला गया और सब सोये रहे?

एम्स अपने बयान में कह रहा है कि उसके पीछे सुरक्षा कर्मी दौड़े , क्या एम्स, आईसीयू से लेकर बाहर तक का सीसीटीवी  फुटेज शेयर करेगा?इसी बीच तरुण का एक वाट्सएप्प चैट भी वायरल हो रहा है जिसमे वो डॉक्टरों के काम के तरीके पर सवाल उठाते हुए ये अंदेशा भी जता रहे है कि उनका  मर्डर हो सकता है !

जाहिर है तरुण की मौत को एक हादसा करार दे रहे एम्स की कहानी पर यूँ यक़ीन नहीं किया जा सकता। तरुण ने पिछले दिनों जो रिपोर्टिंग की है उसमें वो आत्महत्या के खिलाफ लिखते हुए कोरोना से ना डरने की बात कह रहे है। ज़रूरी है उनकी मौत की स्वतंत्र न्यायिक जांच हो ताकि सच सामने आ सके । आखिर हमको ये जानने का हक है  हमारे साथी के साथ क्या हुआ, क्यों हुआ, उसकी जिम्मेदारी तय होना ज़रूरी है ।