-कुलपति बोले शोध समाज, देश व विश्व समुदाय के हित में आवश्यक
-हकेंवि में ‘शोध प्रविधि‘ पर ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यशाला का हुआ शुभारम्भ

अशोक कुमार कौशिक

नारनौल। शोध का उद्देश्य सदैव सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के मंत्र को केंद्र में रखकर निर्धारित होना चाहिए। समाज, देश व विश्व समुदाय के समक्ष मौजूद समस्याओं व चुनौतियों का समाधान करने की जिम्मेदारी आज विशेषज्ञ वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों व शोधार्थियों के कंधों पर है इसलिए शोध कार्य का निर्धारण करते समय वर्तमान की जरूरतों व भविष्य पर नजर रखना जरूरी होता है। शोध के लिए परिश्रम, शोध की मौलिकता सुनिश्चित करना और नये आइडिया पर काम करने का जज्बा आवश्यक है। यह विचार प्रतिष्ठित समाज सेवी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-प्रचार प्रमुख श्री सुनील अम्बेकर ने शुक्रवार को हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेंवि), महेंद्रगढ़; भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधन परिषद् (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली; स्टूडेंट फॉर होलेस्टिक डेवलपमेंट ऑफ ह्यूमेनिटी (शोध), के सहयोग से ‘शोध प्रविधि‘ पर केंद्रित साप्ताहिक कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए। 

श्री सुनील अम्बेकर ने इस अवसर पर कहा कि मौजूदा समय चुनौतियों भरा है और कोविड की महामारी ने हमें नये सिरे से शोध कार्य हेतु प्रेरित किया है। अब समय आ गया है कि हम आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ें और ऐसे विषयों को लेकर शोध करें जो कि मौजूदा परिस्थितियों के बीच राहत का मार्ग प्रशस्त करने में मददगार हों। उन्होंने मौजूदा हालातों को देखते हुए विशेष रूप से आर्थिक मॉडल को लेकर फिर से नये सिरे से शोध करने पर जोर दिया और कहा कि हमें आज की चुनौतियों को देखते हुए इस दिशा में ऐसी खोज करनी होगी जो कि अर्थव्यवस्था के हित में हो और समाज और देश के लिए उपयोगी हो।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने मुख्य अतिथि श्री सुनील अम्बेकर व अन्य गणमान्य अतिथियों का आभार व्यक्त किया और कहा कि आज शोध कार्य आधारभूत विषयों को ध्यान में रखकर, लक्ष्य निर्धारित कर, समयबद्ध रूप से करने की आवश्यकता है। इस प्रयास में युवा शोधार्थियों के लिए जरूरी है कि वह शोध विषय या समस्या का निर्धारण करें और उसके बाद उससे सम्बंधित साहित्य का अध्ययन करें तत्पश्चात प्रस्ताव व प्रोग्राम को स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित करते हुए समय सीमा तय करे। कुलपति ने कहा कि इसके पश्चात उचित विश्वविद्यालय का चुनाव, रिसर्च से संबंधित तकनीक, प्रयोगशाला का निर्धारण और बाद में उपयुक्त मार्गदर्शक का चयन करना चाहिए।

प्रो. कुहाड़ ने मौजूदा समय में कोविड महामारी के चलते उपलब्ध सम्भावनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि हम तकनीक व आर्टिफिसियल इंटेलिजेंसी की मदद से तमाम चुनौतियों के बीच अपना शोध कार्य जारी रखें और समाज व देशहित में कार्य करें। कुलपति ने आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को सिद्ध करने हेतु लगातार प्रयास करने के लिए प्रेरित किया और कहा कि भारत की युवा पीढ़ी इस लक्ष्य को पाने में सक्षम है और मुझे यकीन है कि जल्द ही हम दिशा में उल्लेखनीय बदलाव देखेंगे। वो दिन दूर नहीं जब भारत आत्मनिर्भर होगा।

इससे पूर्व आईसीएसएसआर के सदस्य सचिव प्रो. वी.के. मल्होत्रा ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि वह रिसर्च के क्षेत्र में मौलिक विषयों को ध्यान में रखते हुए कार्य करें और ऐसे शोध में जुटें जो कि वर्तमान की परेशानियों व भविष्य की चुनौतियों से निपटने में मददगार हो। प्रो. मल्होत्रा ने इस अवसर पर शोध के क्षेत्र में विश्व स्तर पर जारी प्रयासों का भी जिक्र किया और भारत में उपलब्ध सम्भावनाओं पर भी प्रकाश डाला।

इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डी.पी.एस. वर्मा सहित ‘शोध‘ के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. आलोक पांडे व आईसीएसएसआर के उप निदेशक डॉ. अभिषेक टंडन भी उपस्थित रहे। कार्यशाला के संयोजक डॉ. आनन्द शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए बताया कि इस कार्यशाला में देश के विभिन्न विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थानों के 3700 से अधिक प्रतिभागी शामिल होने जा रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि कार्यशाला शोधार्थियों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगी। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, शिक्षक, शोधार्थी व विद्यार्थी ऑनलाइन माध्यम से उपस्थित रहे।

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