हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व विचारक

हेमेन्द्र क्षीरसागर

28 मई 1883 को मुंबई में अवतरित भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता स्वातंत्र्यवीर, विनायक दामोदर सावरकर को हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा, हिन्दुत्व को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता, वकील, नाटककार तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वातंत्रय समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था। उन्होंने परिवर्तित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास कर आंदोलन चलाये। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे। सावरकर एक कट्टर तर्कसंगत व्यक्ति थे जो सभी धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे।

प्रत्युत, मार्च 1928 कीर्ति में, शहीद भगत सिंह कहते है। ” स्वदेशी आंदोलन का असर इंग्लैंड तक भी पहुंचा और जाते ही वीर सावरकर ने ‘इंडियन हाउस’ नामक सभा खोल दी। मदनलाल भी उसके सदस्य बने। एक दिन रात को सावरकर और मदनलाल ढींगरा बहुत देर तक मशवरा करते रहे। अपनी जान तक दे देने की हिम्मत दिखाने की परीक्षा में मदनलाल को जमीन पर हाथ रखने के लिए कहकर सावरकर ने हाथ पर सुआ गाड़ दिया, लेकिन पंजाबी वीर ने आह तक नही भरी। सुआ निकाल लिया गया। दोनों की आँखें में आँसू भर आये। दोनों एक-दूसरे के गले लग गए। आहा, वह समय कैसा सुंदर था। वह अश्रु कितने अमूल्य और अलभ्य थे! वह मिलाप कितना सुंदर कितना महिमामय था! हम दुनियादार क्या जानें, मौत के विचार तक से डरनेवाले हम कायर लोग क्या जानें की देश की खातिर कौम के लिए प्राण दे देनेवाले वे लोग कितने उंचे, कितने पवित्र और कितने पूजनीय होते है!

स्तुत्य, विनायक दामोदर सावरकर दुनिया के अकेले ऐसे इंसान थे जिन्हें 2 बार आजीवन कारावास की सजा मिली, जिसे सावरकर ने पूरा किया और उसके बाद राष्ट्र जीवन में सक्रिय हुए। सावरकर ने स्नातक किया किया था स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण उनकी उपाधि अंग्रेज सरकार ने वापस ले ली। वीर सावरकर ने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से साफ मना कर दिया जिसके कारण उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया। वीर सावरकर को पहला राजनीतिज्ञ माना जाता है जिन्होंने विदेशी कपड़ो की होली जलाई थी। वे विश्व के पहले ऐसे लेखक थे जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता को 2 देशों ने प्रकाशन के पहले ही रोक दिया और हमेशा के लिए प्रतिबंध का फैसला सुना दिया।

वे पहले क्रान्तिकारी थे जिन्होंने सजा समाप्त करने के बाद देश में फैली अस्पृश्यता समेंत कई कुरीतियों को दूर किया। वीर सावरकर जब अंडमान निकोबार के जेल में बन्द थे तो वह दीवारों पर कविताएं लिखा करते थे। 10 हजार से ज्यादा पक्तियों को तो उन्होंने जेल से छूटने के बाद दोबारा लिखा। सावरकर ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रध्वज के बीच धर्म चक्र लगाने का सुधाव दिया था जिसे राष्ट्रपति ने स्वीकार किया। सावरकर पहले भारतीय बन्दी थे जिन्हें फ्रांस में बन्दी बनाया गया, इस कारण इनका मामला हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पहुंच गया। महात्मा गांधी के हत्या में सावरकर के सहयोगी होने का आरोप लगा जो सिद्ध नहीं हो सका। एक सच्चाई यह भी है कि महात्मा गांधी और सावरकर-बंधुओं का परिचय बहुत पुराना था। सावरकर-बंधुओं के व्यक्तित्व के कई पहलुओं से प्रभावित होने वालों और उन्हें ‘वीर’ कहने और मानने वालों में गांधी भी थे। रत्नागिरि में सावरकर के घर पर हमेशा भगवा झंडा फहराया जाता था, उनके घर का पता इसी से पहचाना जा सकता था।

अतएव 26 फरवरी को सदा के लिए अमर हो गए वीर क्रांतिकारी सावरकर हमेशा अखंड भारत का पक्षधर रहे। जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने क्रूरतम श्रेणी की कालापानी की सजा सुनाई थी। कालापानी की भयंकरता का अनुमान इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि इसका नाम सुनते ही आदमी सिहर उठता है। कालापानी की विभीषि‍का, यातना एवं त्रासदी किसी नरक से कम नहीं थी। अंडमान-निकोबार स्थित इस सेल्युलर जेल का इस्तेमाल ब्रिटिश काल में राजनीतिक कैदियों को रखने के लिए किया जाता था। आज यह एक राष्ट्रीय स्मारक के तौर पर अमर शहीदों को याद दिलाता है। इसी उम्मीदी मे की कब कहलाएंगा मां भारती का सच्चा सपूत विनायक दामोदर सावरकर भारत रत्न।

error: Content is protected !!