हिसार से निकली साइकिल यात्रा, मगर गुड़गांव की गलियों में बिखरी असलियत

श्रीमति पर्ल चौधरी

हरियाणा सरकार इन दिनों “ड्रग्स फ्री हरियाणा” अभियान को लेकर सुर्खियों में है। हाल ही में इस पहल का दूसरा चरण हिसार से साइकिल यात्रा के रूप में शुरू किया गया। सरकार का दावा है कि इस अभियान में प्रदेश के 22 जिलों से 7 लाख से अधिक प्रतिभागी जुड़ेंगे। लेकिन जब हम इस प्रचार के पीछे की सच्चाई पर नज़र डालते हैं, तो इस गंभीर सामाजिक विडंबना को देखकर एक पुरानी कहावत याद आती है – “ऊपर से शीशमहल, नीचे कीचड़।”

शराब और सिगरेट की दुकानें: हर नुक्कड़ पर फैला जाल

गुड़गांव जैसे शहर में यदि आप एक साधारण सा भ्रमण करें, तो देखेंगे कि हर नुक्कड़, हर मोड़ पर आपको चमचमाती लाइटों से सजी शराब और सिगरेट की दुकानें दिखाई देती हैं। ये दुकानें सिर्फ व्यापारिक केंद्र नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी को नशे की ओर धकेलने वाले मचान बन चुकी हैं।

गुड़गांव का प्रदूषित आकाश आज शराब की दुकानों से निकलती रोशनी से रोशन है, जो एक अजीब विडंबना है। ये दुकानें युवाओं को ठीक वैसे ही आकर्षित करती हैं जैसे जुगनू को आग, और फिर उन्हें अपने भीतर भस्म कर लेती हैं। नतीजा? अंधकारमय भविष्य।

विद्यालयों और मंदिरों के पास खुले ठेके – बच्चों का भविष्य खतरे में

आज गुड़गांव में कई ऐसे शराब के ठेके खुले हुए हैं जो बच्चों के स्कूल जाने के रास्ते में पड़ते हैं। कुछ तो विद्यालयों और मंदिरों से मात्र कुछ ही दूरी पर स्थित हैं। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि समाज की नैतिकता पर भी चोट है।

कभी जिस समय को ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता था—सुबह 4 बजे— सनातनी लोग स्नान करके मंदिरों में आरती करते थे – उस समय तक आज शराब की दुकानें खुली होती हैं। यह बदलाव न केवल चिंताजनक है, बल्कि हमारे सांस्कृतिक मूल्यों पर भी सवाल उठाता है। क्या ऐसा बनेगा “ड्रग्स फ्री हरियाणा” ??

दवा की दुकानों से ज्यादा दिखती अब दारू की दुकानें

हरियाणा की ग्रामीण भाषा में एक समय “दवा-दारू” एक साथ बोला जाता था, लेकिन आज अर्थ बदल गए हैं। पहले 24 घंटे खुलने वाली दवा की दुकानें थीं, जिन्हें खोजने में आजकल कई बार मुश्किल हो जाती है लेकिन सुबह तक खुलने वाले शराब के ठेके बिना खोजे आपके नजरों के सामने हाजिर हो जाते हैं।

सिगरेट की दुकानों की स्थिति और भी विस्मयकारी है—हर शहर में सबसे प्राइम लोकेशन पर ये दुकानें चल रही हैं। सवाल उठता है कि कौन-सा सरकारी विभाग इन्हें अनुमति देता है? कौन किराया वसूलता है? और कौन इनकी निगरानी करता है?

राज्य गीत में “दूध-दही का खाना”, असल में शराब ठेकों का ताना

हरियाणा सरकार ने हाल ही में राज्य गीत को विधानसभा में पारित किया—एक सराहनीय पहल। गीत की आठवीं पंक्ति में लिखा गया है:

“सादा जीवन, सादा बाणा,
दूध दही का खाणा।”

लेकिन आज सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। पहले जहाँ ‘मदर डेयरी’, वीटा जैसे दूध-दही, सब्जी की के बूथ आसानी से दिखते थे, आज वहाँ शराब के ठेके जल्दी दिख जाते हैं। यह परिवर्तन न केवल आर्थिक सोच को दर्शाता है, बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं पर भी सवाल खड़ा करता है।

नशा मुक्ति अभियान: प्रचार से ज़्यादा ज़िम्मेदारी ज़रूरी

सरकार अगर वास्तव में “ड्रग्स फ्री हरियाणा” बनाना चाहती है, तो उसे इस अभियान को केवल एक राजनीतिक प्रचार का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए। यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है, जिसे गंभीरता से निभाना होगा।

मेरे सुझाव:

  1. शराब और सिगरेट की दुकानों पर पूर्ण नियमन, विशेषकर स्कूल, मंदिर, अस्पताल और सार्वजनिक स्थलों के पास पूर्ण प्रतिबंध।
  2. शराब के ठेकों का अलग अलग आकर्षित करने वाले नामों की जगह, उनकी गिनती लिखी होनी चाहिए। जैसे : अंग्रेजी, देसी या विदेशी दारू का ठेका नंबर 11, 12, …, 191, 192 … 999
    इससे आमलोगों को ये भी पता चलेगा कि आखिर नशा किस तरह से हमारे समाज को गिरफ्त में ले चुका है कि उसे परोसने में सैंकड़ों दारू के ठेके दिनरात लगे हैं
  3. इसी तरह पान-बीड़ी-सिगरेट के खोमचों की भी नम्बरिंग होनी चाहिए

4.सभी मादक पदार्थों के प्रचार-प्रसार पर पूर्ण रोक, चाहे वो विज्ञापन हों, इवेंट स्पॉन्सरशिप हो या किसी भी तरह का दृश्य समर्थन।

  1. स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार बनाया जाए कि वे नियमित रूप से इन दुकानों की स्थिति, लोकेशन और अनुमति की जांच करें।
  2. युवाओं के लिए काउंसलिंग सेंटर, खेल गतिविधियाँ और रोज़गार के अवसर बढ़ाए जाएं, ताकि वे नशे की तरफ न जाएं।

“शराब – सिगरेट, पाउडर का करो वहिष्कार,
सेहत से बड़ा नहीं कोई धन, संपत्ति या उपहार!”

अंत में यही कहूंगी:

नशा सिर्फ शरीर को नहीं, समाज को भी खोखला करता है। “ड्रग्स फ्री हरियाणा” तभी संभव है जब नीयत साफ हो, नीतियाँ सख्त हों और नशे के व्यापार पर पूरी तरह से लगाम हो।

ओ नशे नै छोड़ दे भाई, यो जहर है काला,
जिंदगानी लुट जावे, ना बचे निवाला।

छोरे-छोरी पढ़-लिख के बनें अफसर आला,
नशे में फंस के हो जां सै बेमतवाला।

म्हारा हरियाणा, वीरों की धरती,
ना सहे नशे की कोई भी खनक भरती।

अबके जन-जन ने ठान ल्या ठिकाना,
नशा भगाना सै — बनाना सै सयाना!

बोलो मिलके सब मिलाणा,
जय जय हरियाणा! जय जय हरियाणा!

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