गुरुग्राम। शहर में बिना प्रशासनिक अनुमति के चल रहे क्लिनिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे मरीजों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। समाजसेवी इंजीनियर गुरिंदरजीत सिंह ने इस मुद्दे को उठाते हुए प्रशासन से ठोस कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि बिना रजिस्ट्रेशन के क्लिनिक कैसे संचालित हो सकते हैं, और ऐसे क्लिनिकों की सही संख्या का आंकलन स्वास्थ्य विभाग के पास क्यों नहीं है?

झोलाछाप डॉक्टरों का बढ़ता खतरा

गुरिंदरजीत सिंह ने बताया कि बिना लाइसेंस और बिना किसी प्रमाणित डिग्री के कई लोग डॉक्टर का दर्जा प्राप्त कर मरीजों का इलाज कर रहे हैं। झोलाछाप डॉक्टरों की बढ़ती संख्या न केवल मरीजों के स्वास्थ्य के लिए खतरा है, बल्कि यह स्वास्थ्य प्रशासन की गंभीर लापरवाही को भी उजागर करता है। कई ऐसे क्लिनिक हैं, जो बिना किसी मेडिकल प्रमाण पत्र के संचालित किए जा रहे हैं, और भोले-भाले मरीजों को गुमराह कर धन ऐंठ रहे हैं।

चिकित्सा जांच के नाम पर ठगी

इन क्लिनिकों में मरीजों को लुभाने के लिए कई तरह की जांच कराई जाती है, जिससे उन्हें लगे कि उनका इलाज सही तरीके से किया जा रहा है। लेकिन वास्तव में, ये जांच केवल मरीजों को आर्थिक रूप से लूटने का एक जरिया होती हैं। कई मामलों में, जब मरीज की हालत गंभीर हो जाती है, तो झोलाछाप डॉक्टर उन्हें बड़े निजी अस्पतालों में रेफर कर देते हैं, जहां से उन्हें मोटा कमीशन मिलता है।

स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी

गांवों और बाजारों में बड़ी संख्या में झोलाछाप डॉक्टर क्लिनिक चला रहे हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती। जब कभी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी निरीक्षण करने जाते भी हैं, तो पहले ही सूचना लीक हो जाने के कारण ये अवैध क्लिनिक बंद कर दिए जाते हैं। इसके अलावा, शहर में कई अवैध मेडिकल स्टोर भी संचालित हो रहे हैं, जहां प्रतिबंधित दवाइयां भी बेची जा रही हैं।

बिना NOC के चल रहे क्लिनिक और अस्पताल

गुरिंदरजीत सिंह ने बताया कि कई क्लिनिक और अस्पताल बिना किसी प्रशासनिक अनुमति या NOC के चल रहे हैं। इनमें से कई ने स्थान परिवर्तन कर लिया, लेकिन इसकी जानकारी प्रशासन को नहीं दी गई। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वे किसी गैरकानूनी गतिविधि में लिप्त हैं? इन क्लिनिकों में बिना पर्ची के दवाइयां दी जा रही हैं, जिससे मरीजों की सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

कार्रवाई की जरूरत

अगर बिना रजिस्ट्रेशन वाले क्लिनिकों पर जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो इनकी संख्या में और बढ़ोतरी होगी, जिससे मरीजों की सुरक्षा को और खतरा होगा। प्रशासन को चाहिए कि वह अवैध रूप से संचालित क्लिनिकों और अस्पतालों पर छापेमारी कर, उन्हें तुरंत सील करे।

जरूरी सवाल जो सरकार और प्रशासन को पूछे जाने चाहिए:

  • बिना NOC या बिना NOC नवीनीकरण वाले अस्पतालों/क्लिनिकों पर कब कार्रवाई होगी?
  • एक लाइसेंस पर अगर एक से अधिक ब्रांच संचालित हो रही हैं, तो इसकी जांच कौन करेगा?
  • रिहायशी इलाकों में चल रहे अस्पतालों/नर्सिंग होम/क्लिनिकों का मेडिकल वेस्ट कैसे नष्ट किया जाता है?
  • प्रतिबंधित दवाइयों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
  • कितने क्लिनिकों के पास फार्मेसी संचालित करने की वैध अनुमति है?

निष्कर्ष

सभी अस्पतालों, क्लिनिकों और नर्सिंग होम की जिम्मेदारी जिला स्तर पर CMO (मुख्य चिकित्सा अधिकारी) की होती है। CMO की कार्यप्रणाली की जिम्मेदारी उपायुक्त की होती है, और इस पूरे तंत्र की निगरानी स्वास्थ्य मंत्री और सरकार के हाथ में होती है। अब सवाल यह है कि बिना NOC और बिना अग्निशमन विभाग की अनुमति के चल रहे क्लिनिकों और अस्पतालों को रोकने की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा?

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