अक्षय फलदायिनी हैं भगवान ब्रह्मा के कमंडल से अवतरित स्वर और ज्ञान की देवी मां सरस्वती: कथावाचक पं. अमर चन्द भारद्वाज

गुरुग्राम: आचार्य पुरोहित संघ के अध्यक्ष एवं श्री माता शीतला देवी श्राइन बोर्ड के पूर्व सदस्य कथावाचक पं. अमरचंद भारद्वाज ने बताया कि बसंत पंचमी का सीधा संबंध माता सरस्वती से है। भगवान ब्रह्मा के कमंडल से अवतरित स्वर और ज्ञान की देवी मां सरस्वती अक्षय फलदायिनी हैं। बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर विद्यार्थियों को ज्ञान और विवेक की प्राप्ति के लिए मां सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। पं. अमरचंद भारद्वाज ने कहा कि पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, तो सृष्टि में कोई जीवन था, लेकिन वह जीवन शांत और बिना किसी आवाज के था। भगवान ब्रह्मा ने अपने कमंडल से जल के छींटें बिखेरी, जिससे देवी सरस्वती प्रकट हुईं ।
देवी सरस्वती ने वीणा बजाकर पूरे संसार में मधुर आवाज फैलाई और सृष्टि में जीवन का संचार हुआ। तभी से देवी सरस्वती को ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है और इस तिथि पर बसंत पंचमी मनाई जाने लगी। बसंत पंचमी के दिन विद्यार्थियों के लिए बेहद ही शुभ माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती से ज्ञान और विद्या की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके अलावा इस खास दिन पर छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान भी दिया जाता है, जिसे ‘विद्यारंभ’ कहते हैं । वसंत ऋतु के आगमन के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन से ठंड का मौसम खत्म होने लगता है और मौसम में बदलाव आता है।
खेतों में सरसों के पीले फूल खिलते हैं, जो वसंत पंचमी के पीले रंग को दर्शाते हैं। लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले रंग के पकवान जैसे – खिचड़ी और हलवा बनाते हैं। पूजा में सफेद फूल, पीले वस्त्र, सफेद तिल और संगीत अर्पित किया जाता है। मां सरस्वती के चरणों में वीणा और पुस्तक रखना शुभ माना जाता है। इस दिन लोग मां से ज्ञान और विद्या की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद लेते हैं। मां सरस्वती के सामने प्रत्येक व्यक्ति बैठकर इस मन्त्र के कम से कम 21 बार जाप करें ..
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
कथावाचक पं. अमर चन्द भारद्वाज ने बताया कि दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन कामदेव ने अपनी पत्नी रति के साथ भगवान शिव की तपस्या को भंग करने की कोशिश की थी। इसी कारण इसे प्रेम और सुंदरता के पर्व के रूप में भी मनाते हैं।