सुशील कुमार ‘नवीन’ 

बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हिंसा और अत्याचार की बढ़ती घटनाएं भारतवर्ष के लिए भी चिंतनीय है। इसका सामयिक प्रभाव आने वाले समय में देश की अस्मिता पर भी पड़ सकता है। इसी चिंतन के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इस मामले में सक्रिय हो गया है। फर्क बस इतना है कि इस बार पटकथा सामने न आकर पर्दे के पीछे लिखी जा रही है।

सामाजिक समरसता और सामूहिक एकता की समग्र भावना की इस राष्ट्रव्यापी मुहिम में संघ का उद्देश्य एकजुटता की भावना पैदा करना है। इस बार सामाजिक व धार्मिक संगठनों के साथ जनप्रतिनिधियों को भी साथ जोड़ा जा रहा है। ताकि अभियान केवल संघ का न होकर एकजुटता का दिखे। मध्यप्रदेश के बड़े शहरों भोपाल, इंदौर,उज्जैन,जबलपुर आदि में हुए प्रदर्शनों में लाखों की संख्या में शामिल लोगों ने मामले की गंभीरता दिखा दी है। उत्तरप्रदेश के वाराणसी, प्रयागराज,राजस्थान के कई बड़े शहरों ने भी अभियान में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई है। इसी क्रम में हरियाणा में भी सभी जिलों में विभिन्न संगठनों के साथ बड़ी बैठक कर कार्य योजना बनानी शुरू कर दी गई है।      

भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में अगस्त माह से जो हो रहा है, आज वो किसी से छिपा नहीं है। सत्ता परिवर्तन के बाद वहां हिन्दू और अन्य अल्पसंख्यक निशाने पर हैं। हाल ही में हिंदू धर्मगुरु चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी ने मामले को और हवा दे दी है। वैसे तो इस मामले में शुरुआत से ही हिंदू संगठनों ने आवाज उठानी शुरू कर दी थी। इसका प्रभाव भी कुछ दिखाई देने लगा था। पर जिस तरह से एक बार फिर हिंदुओं के साथ जो व्यवहार दिखा है। उससे अब नजर फेरना सहज नहीं है। 

आंकड़ों पर नजर डाले तो बांग्लादेश की जनसंख्या में 91 फीसदी मुसलमानों की भागीदारी हैं। हिंदू 8% से भी कम हैं। 1971 में यह प्रतिशतता 13.5 प्रतिशत थी। जो लगातार घटी ही है। 1991 में यह आंकड़ा 10 प्रतिशत तक पहुंच गया। जो अब 8 फीसदी से भी नीचे पहुंच चुका है। अगस्त माह में बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद हिंदुओं पर हमले बढ़ रहे हैं। हजारों की संख्या में हिंदुओं के मकानों, दुकानों और मंदिरों को निशाना बनाया गया है। जब बांग्लादेशी हिंदुओं ने आवाजें उठानी शुरू की है तो वे सीधे निशाने पर आने शुरू हो गए हां। हाल में ही हिंदू धर्मगुरु चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया जाना भी सहजता से पचने लायक नहीं है। 

 हिंदू धर्म विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म माना गया है। विश्व भर में हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या काफी प्रभावी है। 50 से अधिक देशों से हिन्दू धर्म को मानने वाले विश्वभर में फैले हुए हैं। हिंदू धर्म मानने वाला भारत प्रथम देश है। भारत के अलावा नेपाल और मॉरीशस ही तीन ऐसे देश हैं, जहां पर हिंदुओं को बहुसंख्यक माना जा सकता है।

 अतीत में जाएं तो बांग्लादेश में हिंदुओं की बड़ी संख्या वहां निवास करती थी। आंकड़ों की माने तो 1991 के बाद से हर जनगणना ने वर्तमान बांग्लादेश की आबादी में हिंदुओं की संख्या में गिरावट देखने को मिली है। 

चाणक्य नीति में एक प्रसिद्ध श्लोक है। जो इस घटनाक्रम के संदर्भ में बिल्कुल सटीक बैठता है। आचार्य चाणक्य कहते हैं – 

नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्। 

छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः॥

इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य को हद से ज्यादा भी सरल और सीधा नहीं होना चाहिए। जंगल के वृक्षों में सबसे पहले सीधे वृक्षों को काटा जाता है उसी प्रकार सीधे मनुष्य को चालाक और चतुर लोग पहले फायदा उठाते हैं। ठीक यही अब बांग्लादेश में हो रहा है। पूर्व समय में पूर्वी पाकिस्तान जो आज का बांग्लादेश है। इसके स्वतंत्र गठन में भारत ने जो भूमिका निभाई थी। उसे शायद बांग्लादेश की आवाम भूल गई है। भारत की मदद से अपने आपको विकसित राष्ट्र की ओर बढ़ने वाला बांग्लादेश आज भारत को ही आंखे दिखाने को है। कहने को बार-बार कहा जा रहा है कि बांग्लादेश में हिंदू या अन्य अल्पसंख्यकों के हितों के खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा। लेकिन जिस तरह से वर्तमान स्थिति बनी है वो साफ दिखा रही है कि सब कुछ सही नहीं है।     

ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस मामले में पहली बार सख्ती दिखा रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस वर्ष विजयादशमी के अवसर पर नागपुर में आयोजित संघ के स्थापना दिवस समारोह में भी इस मामले को उठाया था। अपने वार्षिक उद्बोधन में उन्होंने बंग्लादेश में हिन्दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हुई हिंसक घटनाओं पर चिंता जताते हुए साफ कहा था कि बंग्लादेश की घटनाओं में विश्व के हिंदू समुदाय के लिए यह संदेश छिपा हुआ है कि असंगठित रहना अत्याचारों को निमंत्रण देना है। संघ प्रमुख ने भारत सरकार और पूरी दुनिया के हिंदुओं से बंगलादेश के हिंदुओं की मदद करने की अपील की थी।    

विगत दिनों मथुरा में संपन्न संघ की राष्ट्रीय बैठक में भी पुनः इसी बात पर जोर दिया गया था। मथुरा बैठक के समापन के बाद सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र को बंग्लादेश में हिन्दुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। इसी क्रम में  शनिवार को बयान जारी कर बांग्लादेश सरकार से यह सुनिश्चित करने की अपील की है कि हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार तत्काल बंद हों। साथ ही चिन्मय कृष्ण दास की तत्काल रिहाई की भी मांग की। सामूहिक एकजुटता की भावना का यह प्रयास कितना सार्थक प्रभाव बनाएगा। यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है। चाणक्य नीति के ही एक अन्य श्लोक से यही उम्मीद है कि बांग्लादेश की आवाम और सरकार को सद्बुद्धि आए और वो इस घटनाक्रम पर रोक लगाने का काम करें। साथ ही भारत की केन्द्र सरकार भी इस मामले में सिर्फ कहने भर तक सीमित न रहे।

न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।

अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥

 सीधा सा भाव है कि किसी को नहीं पता कि कल क्या होगा, इसलिए जो भी काम करना है, उसे आज ही कर लेना चाहिए. यह बुद्धिमान इंसान की निशानी है।

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