डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश”……. पानीपत हमारा देश धर्म निरपेक्ष है, इस का अर्थ यह नहीं है कि हम धर्म को नहीं जानते या नहीं मानते। हम सभी किसी न किसी धर्म को मत को मानने वाले हैं, इस लिए देश में धर्म को कभी भी गौण या अछूत विषय नहीं मानना चाहिए। हम सनातन धर्मी हिन्दू हैं। हम चाहे किसी भी राजनैतिक विचारधारा को मानते हो लेकिन यह निश्चित है कि हम ईश्वर के सभी स्वरूपों की पूजा करते हैं। क्यों कि धर्म ही एक ऐसा तत्व है जो हम को मर्यादा सीमा में बांध कर रखता है। इन्हीं मर्यादाओं के कारण ही हमारी संस्कृति संस्कार और परंपराओं का पल्लवन हुआ है। चाहे धर्म के नाम पर कोई कितनी सहिष्णुता या असहिष्णु के भावों से ग्रस्त हो यह उसकी व्यक्तिगत मान्यता है लेकिन जब वह अपने बच्चों का रिश्ता करने दूसरे के घरों में जाता है वह केवल यही पता लगाता है कि वह परिवार और उसके सदस्य कितने संस्कारी हैं, सभ्य हैं, व्यवहार व्यापार आचरण धन धान्य सम्पदा और शिक्षा कैसी है, जिस बालक का विवाह होना है वह क्या करता है, उस बालक बालिका की सैलरी पैकेज कितना है, और कहीं खाने पीने की कोई बुरी आदत तो नहीं … आज दिन तक इस से अधिक कभी भी कुछ पूछा नहीं गया है, कल की भगवान जानें कि कोई धर्म चौधरी ऐसा कोई फतवा न जारी कर दे कि फलां राजनैतिक विचारधारा वाले परिवार में रिश्ता न करें, जैसा कि उत्तर प्रदेश में हो रहा है कि दुकानों पर अपना नाम लिखें श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के कृषक समाज के लिए कावड़ यात्रा कर गंगा जी से पवित्र गंगा जल लाकर अपने ग्राम के शिवालय में भगवान शिव का शिवाभिषेक करने का विधान श्री शिव पुराण में वर्णित है। आप कुछ विस्मित होंगे कि कावड़ केवल कृषक के लिए … जी! क्यों कि श्रावण मास में वसुंधरा पर इंद्रदेव कृपा कर वर्षा बरसाते हैं, फसलों के लिए कृषक को जल की किसी अन्यत्र व्यवस्था की आवश्यकता नहीं होती है, इस लिए श्रावण मास की कृष्ण त्रयोदशी के समापन के पश्चात चतुर्दशी तिथि जिस के स्वामी भगवान शिव हैं चतुर्दशी लगते ही कावड़ जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। राष्ट्र के कुछ विद्वान सनातनी भद्रजन इस पुण्य दिवस को भगवान शिव और शिवा दुर्गा गौरी पार्वती के शुभ विवाह का उपलक्ष्य भी मानते हैं। जिस में संसार के सभी प्रकृति के सात्विक राजसिक और तामसिक वृति के जीव बराती थे। आप कभी भोले के विवाह का प्रसंग सुनना उससे आप को ज्ञात हो जाएगा कि उस के अंधे काने लूले लंगड़े बिना सिर वाले मस्तक के मध्य केवल एक आंख वाले बिना धड़ वाले भंगेड़ी नशेड़ी न जाने कैसे यूं समझें कि सभी उत्पाती उस में सम्मिलित थे। एक बार किसी प्रसिद्ध सन्त की गाड़ी रास्ते में कहीं खराब हो गई तो पीछे से पुलिस वालों की गाड़ी आ रही थी, उस गाड़ी में थानेदार बैठे थे जो संत जी से परिचित थे, उन्होंने उनको अपने साथ गाड़ी में बिठा लिया और कहा कि आप का ड्राइवर आपकी गाड़ी को ठीक करवा के ले आएगा, मैकेनिक को फोन लगा रहा हूं, वह वहीं पहुंच जाएगा। खैर गाड़ी आगे बढ़ी तो महाराज थानेदार से हाल हवाल पूछते हैं कि कैसा चल रहा है , वह कहते है पिछले हफ्ते से तो शान्ति है। महाराज कहते हैं कि पहले स्थिति बढ़िया नहीं थी तो थानेदार कहता है कि आजकल सभी कावड़ लेने गए हुए हैं इस लिए नगर क्षेत्र में महाशिवरात्रि तक शांति है। कहने का अर्थ यह है कि भोले के विवाह में इस तामस प्रवृति के बाराती थे l। अच्छा लगा कि राष्ट्र में श्री राम मंदिर बनना चाहिए था और बन गया, झूठ प्रचार करने वालों को भगवान से अयोध्या से चलता भी कर दिया। यही है धर्म का प्रतिफल कि दूध का दूध पानी का पानी। आजकल उत्तरप्रदेश में कुछ गंभीर तरह की राजनैतिक उठापटक चल रही है कि कौन रहेगा या नहीं रहेगा। इसी उठापटक में उप चुनाव के अंतर्गत आने वाली दस सीटों के परिणामों को अपने पक्ष में करने के लिए सनातन धर्म के मौलवियों ने मुजफ्फरनगर में हिंदू मुस्लिम कार्ड चलाया की ध्रुवीकरण हो। मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि न जाने कौन से युग से यह यात्रा चल रही है। भारत में मुस्लिम और ईसाईयत का सदियों का शासन रहा, भारत भी 1947 में स्वतंत्र हो गया था 2023 तक देश में ऐसी कोई धार्मिक मान्यता की कोई समस्या नहीं थी कि आप समान किस से लें, आज यह पवित्रता और साधुता कहां से उत्पन्न हो गई। एक ज्वलंत दृष्टांत बता दूं कि नगर की प्रतिष्ठित और वृहद धार्मिक सभा में नौ वर्ष तक सचिव महासचिव पद पर सेवा करने का अवसर मिला। नगर में सभा धर्म प्रचार के लिए सत्संग आयोजित करती थी। विवाह उत्सव पर जब अभी श्री सुंदर कांड पाठ समाप्त नहीं होता था तो पंडाल के पीछे वाले हिस्से में मास मदिरा के स्टाल लगना शुरू हो जाते हैं। आप एक ओर भगवान से मंगल की प्रार्थना कर रहे हैं और दूसरी ओर क्या कर रहे हैं, और यह दूसरों को पवित्रता सिखा रहे हैं। ईश्वर सत्य जानते हैं, भगवान श्री राम ने अपने सिंहासन से धनुष को हिलाने से ज्ञात हो गया कि ईश्वर सत्य हैं और अब तो भगवान शिव जो प्रकृति के ही पुत्र पति और पिता है, आदि शक्ति इनके मस्तक में मध्य तृतीय नेत्र बन कर बैठी हैं। शिव शान्त भी और सरल भी लेकिन जिस दिन शान्ति अर्थात आदिशक्ति कल्याणी दुर्गा (शक्ति /राजसत्ता) का कोई अपमान करता है तो भगवान वीरभद्र का विक्राल रूप धारण कर अपने श्वसुर यक्ष का भी सिर उड़ा देते हैं जो “मैं मैं” कर रहा था। भगवान शिव का विवाह और भगवान शिव का परिवार विशुद्ध प्रजातंत्र है। भगवान शिव के दरबार में परस्पर विरोधी स्वभाव के जन रहते हैं । भगवान शिव ईशान कोण में हिम (बर्फ) से अधिक शीतल हैं तो आग्नेय कोण में आदि शक्ति दुर्गा हैं गणपति ईशान कोण के तो कार्तिकेय दक्षिण दिशा के स्वामी हैं।। शिव के वाहन नन्दी हैं तो गौरी के शेर, गणपति के चूहा हैं और कार्तिकेय के मोर। इन सब के स्वभाव विपरीत हैं लेकिन प्रजातंत्र की पराकाष्ठा तो देखें कि विपरीतता होने के बावजूद इन में परस्पर संघर्ष नहीं होता इस लिए ही अन्त में यह लिख कर चर्चा को विश्राम दूंगा शिव शंकर तेरी लीला निरालीविषमता पूर्ण सृष्टि सारीआम है मीठा गुलाब में खुश्बूकरेला क्यों करवा री भगवान जितने सरल हैं उतने कठोर भी … घड़ी के पेंडुलम जैसी स्थिति है , दोनों ओर बराबर इस लिए भगवान के स्वरूपों के साथ राजनैतिक खिलवाड़ बंद कर दें , यह तो स्वयं भस्मासुर को वरदान देकर विष्णु से मरवा देते हैं। महाशिव रात्रि पर्व शालीनता से मनाएं वह किसी के शिव हैं तो किसी के आदम बाबा। दुर्गा जी भी यही स्थिति है वह आलम की माता भी और जहां की पत्नी भी। शालीनता मधुरता प्रेम वात्सल्य माधुर्य साम्प्रदायिकता का महापर्व है महा शिवरात्रि।श्री निवेदनश्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रितडॉ महेन्द्र शर्मा “महेश” Post navigation उधार ठा कै घाल्या चूड़ा, रांड भी झूठी मांणस भी कूड़ा बहुत हो चुका … राजनैतिक चतुराई फिर से धरी की धरी रह जायेगी, देख लेना ……..