यह एक हमारे क्षेत्र की प्रसिद्ध जनश्रुति है कि मुफ्त या धन उधार लेकर दान आदि शुभकर्म नहीं करने चाहिए क्यों कि इस से दरिद्रता बढ़ती है। हमारे बुजुर्ग भी हमें यही आदेश देते हैं कि समस्त शुभकर्म स्वयं की सामर्थ्य के अनुसार करें। हम अक्सर पौराणिक कथाओं का श्रवण और पाठन करते हैं उन सब कथाओं में यही वर्णन किया गया है कि यदि आप के धन का अतिरेक है तो आप अपने अपने क्षेत्र में कुआं, बागबगीचे, बावड़ी , धर्मशालाओं का निर्माण करें, गरीबों की भोजन करवाएं व निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था , गरीबों की कन्याओं के विवाह करवाएं और किसी भी याचक को अपने द्वार से निराश न जाने दें। इस संदर्भ में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि इनको मुफ्त में तीर्थयात्रा करवाएं संभवत इस लिए नहीं लिखा कि जितने दिन यह घर से दूर रहेंगे, उतने दिन मेहनत पुरुषार्थ और काम नहीं करेंगे जब यात्रा से वापस आएंगे तो यह लोग आगे परिवार को कैसे चलाएंगे।

आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश”

अपने हरियाणा प्रदेश की महिमा का ऐसा भी पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि हरिभूमि में किया गया दान नित्य प्रति तेरह गुणा बढ़ता है और किए गए पाप कर्मों की भी यही गति होती है। इन सब में मुख्य चिन्तन का विषय तो यह आजकल इतनी महंगाई है और भुखमरी है, बेरोजगारी और व्यापारिक मंदी है तो सरकार को निम्न आय वर्ग को मुफ्त राशन, चिकित्सा और शिक्षा प्रदान करनी चाहिए, कर प्रणाली को सरल किया जाए ताकि व्यापार की स्थिति सुधरे और रोजगार के साधनों में वृद्धि हो, निशुल्क राशन और चिकित्सा सेवा क्षेत्र को और आगे बढ़ाया जाए परन्तु लगता है कि वर्तमान सरकारों के इन समस्याओं का निदान ही नहीं है तभी तो यह लोग जनता से जुड़े रहने के लिए अर्नगल माध्यम अपना रहे हैं। हमारे पौराणिक कथानकों के ईश्वर के द्वार मंदिर देवालय और शिवालय के पैदल चल कर जाने से प्रत्येक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का पुण्य फल बताया गया।

तीर्थयात्रा वही सफल होती है, जो शुद्ध हृदय से की जाए। तीर्थ यात्रा में श्रद्धालु को भूख और कष्ट सहन करने पर बल दिया है क्योंकि इन्हीं तत्वों में श्रद्धालु भक्त के हृदय में दृढ़ता और संकल्प प्रबल होते हैं। इन्हीं तत्वों के अभाव में ही तो तीर्थ स्थल अब पर्यटन स्थल बनते जा रहे हैं। सेठ लोग धर्मशालाओं में जा कर नहीं ठहरते ताकि दान न देना पड़े, आश्रम के महाराज की बंगार न झेलनी पड़े, वह होटलों में रुक कर राजस भोज खाते हैं, सेठ लोग धर्मस्थलों का सात्विक भोजन जो सामूहिक स्तर पर जाति पाति ऊंच नीच अमीर ग़रीब का भेद मिटाता है, उस पंक्ति में भूमि पर बैठ कर भोजन खाने से अपने रुतबे और अहंकार को छोटा नहीं करना चाहते।

तीर्थों पर जा कर ही शुभ कर्म किए जाएं इनकी महिमा का बखान है। संभवतः यह एक राजनैतिक पुराण का कथानक है, सब से पहले वोटर्स को प्रभावित करने के लिए यह कार्य मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार ने आज से लगभग 15 /16 वर्ष पहले शुरू किया गया था। लेकिन हमारा हरियाणा तो एक समृद्ध प्रदेश है, हरियाली है, खुशहाली है, शिक्षा है और उद्योग हैं यहां तो आवश्यकता है रोजगार की चिकित्सा की और कर प्रणाली में सुधार की है न कि वोट लेने के लिए मुफ्त की तीर्थ यात्रा की। यदि इस तरह की यात्रा का फल शुभ होता तो इस यात्रा के आयोजक अयोध्या में अवश्य जीतते लेकिन यह तो बद्रीनाथ में भी नहीं बच सके। भगवान हमारे अन्दर और बाहर के विचार जानते हैं क्यों कि वह तो घट घट में समाए हुए हैं।

दो साल शोर मचता रहा … हम उनको लायेंगे जो राम को लायेंगे और राम कहते है … मैं जिस को चाहूंगा उसको ही लाऊंगा। जो झूठ बोलेगा उसको घर से भगाऊंगा।

हम तो ब्राह्मण है झूठ फरेब और छल का साथ नहीं दे सकते। आप सरकार में रहते हुए जब प्रदेश के जनमानस को सबल बनाएं जिससे कि वह रोजगार कर के बच्चों को ऊंची शिक्षा दिलवा कर जीवन में सहजता का अनुभव कर सके। इस प्रकार की निष्फल यात्राओं से गरीबों की आर्थिक समस्याओं का निदान सम्भव ही नहीं है। बेचारे गरीब तीर्थयात्रा के चार दिन के बाद जब घर लौटेंगे तो फिर वही आटा दाल रोटी के लिए पुनः संघर्ष करने लगेगे, क्यों कि सरकार मुफ्त तीर्थ यात्रा के संपन्न होने के बाद इन यात्रियों को ट्रेन से उतरते वक्त को पैसों का लिफाफा थोड़े न दे रही है कि आप चार दिन घर से बाहर रहे हो यह लो पैसे राशन खरीद लेना। इस यात्रा का फल यही गरीबी का कुचक्र ही रह जाएगा कि जो चार दिन बाहर लगाए थे, यदि मैं राम का नाम लेते हुए पुरुषार्थ करता तो मेरे बालक भूखे न रहते। इस तरह से मुफ्त यात्रा करने वाले और करवाने वाले दोनों ही झूठे हैं।

गुरु शिष्य अंध बघिर कर लेखा।
एक न सुनहीं एक नहीं देखा।।

जनता भी बिना कर्तव्य पालन किए, मेहनत और पुरुषार्थ किए मुफ्त में सब कुछ चाहती है और सरकार भी इनसे दो कदम आगे बिना कुछ दिए इनसे वोट लेना चाहती है, इसी मुफ्तखोरी की आदत को राजनेता भुना रहे हैं। देखो हरियाणा में अयोध्या होने की पूर्ण संभावना है, इस प्रकार के कृत्यों का क्या फल होगा वह तो श्रीराम ही जानते है क्यों कि भगवान

घट घट के भीतर की जानत।
भले बुरे की प्रीत पहचाहनत।।

ब्राह्मणों के रक्तबीज में ही राजनीति होती है, इनको समझाने की नहीं अपितु इनसे समझने की जरूरत है। सरकारें जनता से उपार्जित करों का जनता के कष्ट हरने के कार्यों में व्यय कर धन का सदुपयोग करें, पैसे को व्यर्थ न बहाएं। जनता को तो कल भी कल की फिक्र थी और आज भी कल की ही फिक्र है।

error: Content is protected !!