अहीर प्रत्याशी तीन बार तथा तीन बार ही गुर्जर प्रत्याशी बने विजेता

मित्तल के बाद कांग्रेस के अकाल को तोड़ा चौधरी फुसाराम ने, निर्दलीयों ने भी मारी यहां से बाजी, गलत चयन से लगातार पराजित हो रही है कांग्रेस 

जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पार्टियां देती है टिकटें 

क्या अगली लड़ाई अहीर बनाम सैनी रहेगी?

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए अब लगभग 3 महीने से कम समय बचा है। राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों के अलावा चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों ने लंगोट कसली है। अभी किसी भी राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है लेकिन इन दलों से संबंध रखने वाले अनेक उम्मीदवारों ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने के मंसूबे भी पाल रखे हैं। महेंद्रगढ़ जिले की नारनौल विधानसभा सीट पर राष्ट्रीय क्षेत्रीय दलों के अलावा निर्दलीयों के रुप में चुनाव लड़ने वालों की बाढ़ सी आई हुई हैं।

राजनीतिक दलों की टिकट के चाहने वालों की स्थिति पर गौर करें तो हालत “एक अनार सौ बीमार” वाले बने हुए हैं। राष्ट्रीय दलों भाजपा कांग्रेस की टिकट को लेकर कोहराम सा मचा हुआ है। इस बार राजनीतिक दलों ने सर्वे के आधार पर जिताऊ उम्मीदवार को टिकट देने की घोषणा क्या कि टिकट के चाहनेवालो ने पूरे विधानसभा क्षेत्र में अपना अभियान तेज कर चुनाव का तगड़ा माहौल बना दिया है। दीवार, खंबे, पेड़ पोस्टर व हॉर्डिंगो से अटे-पड़े हैं। हर दावेदार अपने प्रचार के माध्यम से अपनी टिकट पक्की मानकर चल रहा है।

दक्षिणी हरियाणा की नारनौल सीट अतीत में ब्राह्मण बनियों के पास रहने वाली सीट रही है। तीन बार इस सीट पर गुर्जर प्रत्याशियों का कब्जा रहा। पर 2014 के बाद अहीरों का कब्जा है। अब यहां लड़ाई अहीर और सैनी बिरादरी के बीच में रहेगी यह यह नगर परिषद के चुनाव के बाद प्रसारित किया जाने लगा है। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के ओम प्रकाश ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी इनेलो के कमलेश सैनी को चार हजार से अधिक वोट के अंतर से मात दी थी। भाजपा ने अब अहीर बाहुल्य इस सीट से एक बार फिर 2019 में ओम प्रकाश यादव को ही उम्मीदवार बनाया और जीत दर्ज की। तब कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी। कांग्रेस के 2019 में तीसरे स्थान पर रहे नरेंद्र सिंह नारनौल छोड़कर अटेली चले गए हैं । लेकिन जनता का मानना है कि नारनौल सीट के लिए वही सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। राव नरेंद्र की राजनीतिक पारी उनके पिता के देहांत के बाद अटेली से शुरू हुई थी। बार-बार सीट बदलना उनके खिलाफ जा सकता है। अटेली में उनकी स्थिति बेहतर नहीं है उनको वापस नारनौल लौटना पड़ सकता है।

1987 में पहली बार खिला था कमल

सन् 1987 के बाद 2014 में महज दूसरा ही मौका था, जब नारनौल सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की। यह दूसरा ही अवसर था जब नारनौल में कमल खिला था। ओम प्रकाश से पहले कैलाश चंद्र शर्मा ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में 1987 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी। बीच में एक चुनाव उन्होंने नारनौल विधानसभा को छोड़कर अटेली विधानसभा से भी चुनाव लड़ा जहां से उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। 1987 के विजेता पंडित कैलाश चंद शर्मा ने भाजपा से बगावत कर जब 2014 का चुनाव निर्दलीय लड़ा तो वह हार गए। उनके साथ नारनौल लोक निर्माण विश्रामगृह में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के समक्ष दुर्व्यवहार वह जिसे वह सहन नहीं कर पाए । अपमान से पीड़ित हो कुछ समय बाद परलोक सिधार गए।

क्या है चुनावी अतीत?

नारनौल सीट से आजादी के बाद 1951 और 1954 के चुनाव में कांग्रेस के रामशरण चंद्र मित्तल विधायक चुने गए थे। 1957 में जनसंघ के पंडित देवकीनंदन वैद्य ने रामशरण चंन्द्र मित्तल को पराजित कर उनका विजय रथ रोक दिया था। 1962 में कांग्रेस से मित्तल फिर निर्वाचित हुए। 1967 में जनसंघ के बनवारी लाल छक्कड़ विधायक चुने गए थे। 1968 में रामशरण चंद्र मित्तल विधायक चुने गए। 1972 में रामचरण चंद्र मित्तल कांग्रेस से विजयी रहे। उन्होंने मनोहर लाल विशाल हरियाणा पार्टी को शिकस्त दी।

1977 में अयोध्या प्रसाद ने नारनौल में समाजवाद का परचम लहराया। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के अतर सिंह को परास्त किया। इस मुकाबले में चौधरी फुसाराम निर्दलीय तीसरे नंबर पर थे और राव निहाल सिंह कांग्रेस से चौथे नंबर पर रहे। 1982 में कांग्रेस की टिकट पर चौधरी फूसाराम विधायक निर्वाचित हुए। 1987 में भाजपा के पंडित कैलाश चंद शर्मा नसीबपुर ने नारनौल सीट से पहली बार कमल को खिलाया। उन्होंने कांग्रेस के फुसाराम को पराजित किया।1991 में कांग्रेस के फुसाराम विजयी रहे। उन्होंने जनता पार्टी के उदमी राम, हविपा के होशियार सिंह तथा भाजपा के कैलाश चंद शर्मा को शिकस्त दी। यहां हविपा के होशियार सिंह तीसरे तथा भाजपा के उम्मीदवार कैलाश चंद शर्मा चौथे स्थान पर रहे।

1996 में निर्दलीय ने चखा जीत का स्वाद

सन् 1996 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार कैलाश चंद्र शर्मा अमरपुरा ने जीत का स्वाद चखा। उन्होंने भाजपा के कैलाश चंद्र को हराया। समता पार्टी के राव होशियार सिंह तीसरे नंबर पर तथा कांग्रेस के चौधरी फुसाराम चौथे नंबर पर रहे। 2000 की चुनावी जंग भी निर्दलीय बनाम निर्दलीय रही। इसमें तीन निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में थे । मूलाराम ने निकटतम प्रतिद्वंदी पण्डित राधेश्याम शर्मा को पराजित किया। स्थल बोहर के महंत बाबा चांदनाथ निर्दलीय तीसरे स्थान पर रहे वही कांग्रेस प्रत्याशी रेणु पोसवाल पांचवें स्थान पर रही।

2005 में भी निर्दलीय राधेश्याम शर्मा ने सीट बरकरार रखी। उन्होंने कांग्रेस के चंद्र प्रकाश एडवोकेट को पराजित किया। इस चुनाव में एसपी के उम्मीदवार राव बहादुर तीसरे स्थान पर, आजाद उम्मीदवार कैलाश चंद चौथे स्थान पर तथा इनेलो के प्रत्याशी एडवोकेट तेज प्रकाश यादव पांचवें स्थान पर रहे। 2009 के चुनाव में हरियाणा जनहित कांग्रेस के राव नरेंद्र सिंह विजयी रहे थे। उन्होंने इनेलो के भानाराम सैनी को परास्त किया।

2014 में कांग्रेस से दल बदल कर भाजपा में राव इंद्रजीत सिंह के साथ आने वाले ओम प्रकाश यादव को टिकट दी और वह विजयी रहे। उन्होंने जेजेपी की कमलेश सैनी को शिकस्त दी। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार राव नरेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे। 

2019 में भी उन्हें ओम प्रकाश यादव को दोबारा भाजपा की टिकट पर यहां जीत मिली। उन्होंने भाजपा की कमलेश सैनी को परास्त किया। इस चुनाव में कांग्रेस के राव नरेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे। इस चुनाव में तथा इसके बाद हुई नगर परिषद चुनाव में लड़ाई अहीर बनाम सैनी हो गई।

नारनौल सीट पर ब्राह्मण, बनिया, गुर्जर व अहीर के कब्जे में रही सीट

इस सीट पर 1957 में वैद्य देवकीनंदन शर्मा 1967 में बनवारी लाल छक्कड़ 1977 में अयोध्या प्रसाद शर्मा, 1987 में भाजपा पंडित कैलाश चंद शर्मा नसीबपुर, 1996 में पंडित कैलाश चंद अमरपुरा, 2005 में पंडित राधेश्याम शर्मा जीते। इस प्रकार छह बार इस सीट पर ब्राह्मणों का कब्जा रहा। 1962 में रामशरण चंद्र मित्तल, 1968 में रामचरण चंद मित्तल तथा 1972 में रामचरण मित्तल तीन बार की सीट से विजयी रहे। इस तरह तीन बार वैश्य समुदाय का इस सीट पर कब्जा रहा।1982 में चौधरी फुसाराम, 1991 में फिर से चौधरी फुसाराम तथा 2000 में उनके बेटे चौधरी मूलाराम ने इस सीट पर जीत दर्ज की। तीन बार गुर्जर बिरादरी के पिता पुत्र यहां से जीते। 

नए परिसीमन के बाद 2009 में हजकां से राव नरेंद्र सिंह अहीर प्रत्याशी के रूप में पहली बार यहां से जीते। 2014 तथा 2019 के चुनाव में ओम प्रकाश यादव अहीर प्रत्याशी के रूप में यहां से जीते।

1972 के बाद कांग्रेस की लगातार स्थिति खराब रही। 10 साल बाद 1982 में चौधरी फुसाराम ने कांग्रेस से जीत दर्ज कर इस अकाल को तोड़ा। 1991 में फिर चौधरी फुसाराम ने कांग्रेस से जीत दर्ज की। इसके बाद से नारनौल विधानसभा सीट कांग्रेस के हाथों से खिसक गई और उसकी स्थिति बद से बदतर होती चली गई। अब कांग्रेस को यहां जीत के बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। अगर प्रत्याशी चयन सही ढंग से नहीं हुआ तो फिर से कांग्रेस के हाथों से तोते उड़ सकते हैं।

नारनौल विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो कुल मतदाताओं की संख्या 1,54,769 हैं। जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 81,652 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 73,116 हैं। जातिगत जनगणना नहीं हुई है इसलिए जातिगत आंकड़े नहीं है केवल अनुमानित आंकड़े पेश किए जाते रहे हैं। इस समय अहीरों के मत सबसे ज्यादा है। दूसरे नंबर पर सैनियों के मत बताए जा रहे हैं।

भाजपा से वर्तमान विधायक ओम प्रकाश यादव, भाजपा संसदीय बोर्ड की सदस्य सुधा यादव, जिला अध्यक्ष दयाराम यादव, बुरे समय में विधानसभा चुनाव लड़ चुके पृथ्वी सिंह एडवोकेट, हाल ही में जजपा से भाजपा में शामिल हुई नगर परिषद चेयरमैन कमलेश सैनी, पूर्व नगर परिषद चेयरमैन भारती सैनी, जेपी सैनी, बाबूलाल यादव, वासुदेव यादव, कृष्ण अवतार, मनदीप यादव, सत्यव्रत शास्त्री, संदीप राव एडवोकेट नीरपुर, राकेश शर्मा पूर्व जिला अध्यक्ष, शिवकुमार शर्मा पूर्व जिला अध्यक्ष व पूर्व चेयरमैन गोविंद भारद्वाज सहित अनेक लोग लाइन में है। भाजपा में टिकट के तीन तरह के दावेदार एक दावेदार गुरुग्राम के सांसद व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के समर्थक,  दूसरे भाजपा कैडर से जुड़े तथा तीसरे वह जो दूसरे दलों से आए हैं।

कांग्रेस से पूर्व मंत्री राव नरेंद्र सिंह ( अटेली से भी दावेदार), पूर्व सत्र न्यायाधीश राकेश यादव, पूर्व अधिशासी अभियंता राव सुखविंदर सिंह, ग्रामीण महिला कांग्रेस की जिला अध्यक्ष डॉ राज सुरेश यादव, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अजय शर्मा, सुधीर शर्मा, दिनेश शर्मा उर्फ पालाराम, पूर्व विधायक रघु यादव के पुत्र सृजन यादव, जजपा से आए तेज प्रकाश यादव एडवोकेट, चांद सिंह यादव एडवोकेट, कृष्ण सैनी एडवोकेट, प्रदीप यादव बसीरपुर, सुरेंद्र सिंह, संजीव गुप्ता, सरपंच अतेंद्र यादव, राजेश मांदी, प्रदीप यादव एडवोकेट, संजय पटीकरा व सुरेश यादव सहित अनेक लोग दावेदारी जता रहे हैं। 

अशोक कुमार मांदी व अजय यादव भाईड़ा का अभी निश्चित नहीं है कि वह किस पार्टी से चुनाव लड़ना चाहते हैं। उन्होंने अभी पत्ते नहीं खोले है। शहर में होल्डिंग लगाकर जरुर उन्होंने अपने आपको दावेदार जता रखा है। आप पार्टी से इंजीनियर नरेंद्र राव, सुरेश सैनी, गिरीश खेड़ा तथा रविंद्र कुमार एडवोकेट पार्टी टिकट के दावेदार हैं। निर्दलीय के रूप में शहर के क्रांतिकारी उमाकांत छक्कड़ दम खम ठोकने के लिए तैयार बैठे हैं।

तीन गांवों से हैं सबसे ज्यादा दावेदार 

नारनौल शहर से सटे तीन गांव आजकल शहर में भाजपा कांग्रेस से टिकट के दावेदारों के रूप में चर्चा का विषय बने हुए हैं। इनमें गांव नीरपुर से पूर्व सत्र न्यायाधीश राकेश यादव व रावसुखविंदर सिंह कांग्रेस से तथा संदीप राव एडवोकेट भाजपा से टिकट की दावेदारी जता रहे हैं। पटीकरा गांव से बाबूलाल, सुरेश यादव पटीकरा भाजपा तथा संजय पटीकरा राव दसिंह के सहारे कांग्रेस टिकट के आकांक्षी हैं। नारनौल से सटा तीसरा गांव मांदी है, यहां से राजेश मांदी कांग्रेस, अशोक कुमार अभी पार्टी घोषित नहीं तथा पूर्व में मांदी गांव के मूल निवासी (वर्तमान में नारनौल शहर) पूर्व  चेयरमैन गोविंद भारद्वाज भाजपा टिकट की अभिलाषा रखते हैं। 

प्रचार सामग्री व जनसंपर्क के जरिए अपनी टिकट की दावेदारी पक्की मानकर चल रहे कांग्रेस बीजेपी टिकटार्थी अपनी अपनी जेब में अपने-अपने पार्टी की टिकट मानकर चल रहे हैं। वह अपने-अपने संपर्कों के जरिए टिकट पाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। पर यह तय है कि भाजपा कांग्रेस में दावेदारों का हुजूम सा उमड़ा हुआ है। यह लोग अपने आप को धनबल और जनबल के सहारे बड़ा से बड़ा समाज सेवी सिद्ध करने में पीछे नहीं है रहे हैं। जनता को विश्वास दिला रहे हैं की टिकट उनकी पक्की है।

error: Content is protected !!