समाधान शिविरों की हालत यह है कि लोगों को एक ही काम के लिए बार-बार चक्कर काटने पड़ रहे है : विद्रोही

सरकार का यह दावा हवा-हवाई जुमला निकला कि पीपीपी के आधार पर घर बैठे बुजुर्गो की पैंशन उनके बैंक खातों में जमा हो जायेगी : विद्रोही

बुढापा पैंशन बनवाने वाले पात्र बुजुर्गो को सूचना लेने के लिए न केवल बार-बार चक्कर काटने पड़ते है बल्कि अपमानित भी होना पडता है :  विद्रोही

13 जुलाई 2024 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने आरोप लगाया सरकार का यह दावा हवा-हवाई जुमला निकला कि पीपीपी के आधार पर घर बैठे बुजुर्गो की पैंशन उनके बैंक खातों में जमा हो जायेगी और नागरिकों को अन्य सरकारी सुविधाएं भी पीपीपी के आधार पर सुगगता से मिल जाती है। विद्रोही ने कहा कि पीपीपी के आधार पर सरकार कागजों में बुजुर्गो को पैंशन के लिए तो पात्र तो बना देती है, लेकिन उसे जमीन पर उतारने के लिए बुजुर्गो को सरकारी कार्यालयों में जितने धक्के खाने पडते है, यह पैंशन बनवाने वाला पात्र व्यक्ति ही जानता है। भाजपा सरकार जुमला उछालती है कि जिस भी बुजुर्ग की पैंशन बननी होती है, उसको समाज कल्याण विभाग से फोन आता है या एसएमएस के माध्यम से जानकारी उपलब्ध करवाकर उससे कनसेंट ली जाती है। सरकार का यह दावा हवा-हवाई व हकीकत से कोसो से दूर है। बुजुर्ग पैंशन के लिए पात्र लोगों की जो लिस्ट जिला क्रीड कार्यालय व जिला समाज कल्याण अधिकारी के पास भेेजी जाती है, उसकी सूचना इन दोनो विभागों में कोई भी पात्र बुजुर्ग व्यक्ति को सूचना नही देते। 

विद्रोही ने कहा कि पात्र व्यक्ति स्वयं जाकर इसका पता करने को मजबूर है कि उसका नाम लिस्ट में है या नही। इसके लिए भी कई चक्कर काटने पडते है क्योंकि कभी कर्मचारी नही मिलते तो कभी सिस्टम काम नही करता। बुजुर्गो की पैंशन बनाने व पीपीपी गलती सुधारने के लिए लगने वाले समाधान शिविरों में वास्तव में कोई समाधान होता है या नही, इसकी जानकारी लेने मैंने स्वयं शुक्रवार को जिला समाज कल्याण कार्यालय व जिला लघु सचिवालय रेवाडी में जाकर लोगों से व्यक्तिगत जानकारी ली। जिला समाज कल्याण अधिकारी के रूप में जो महिला अधिकारी है, वह इतनी घमंडी है कि न तो लोगों को इज्जत से बात करती है और न ही उनकी समस्याओं के समाधान में रूचि रखती है। इसके चलते बुढापा पैंशन बनवाने वाले पात्र बुजुर्गो को सूचना लेने के लिए न केवल बार-बार चक्कर काटने पड़ते है बल्कि अपमानित भी होना पडता है।  विद्रोही ने कहा कि लघु सचिवालय में लगने वाले समाधान शिविरों की हालत यह है कि लोगों ने बताया कि उन्हे एक ही काम के लिए बार-बार चक्कर काटने पड़ रहे है। कोई समाधान नही होता। क्या तो कर्मचारी सीट पर नही मिलते या फिर सिस्टम काम नही करता। वहीं जिला उपायुक्त समाधान शिविरों में मुठठीभर लोगों से मिलते है, लोग खडे रहते है और अधिकारी चलते बनते है। विद्रोही ने कहा कि शुक्रवार को लघु सचिवालय में समाधान शिविर में आने वाले महिला-पुरूष चक्कर काट रहे थे, पर उनकी कोई बात सुनने वाला नही था। समाधान शिविर केवल नौटंकी शिवर बन गए है। सवाल उठता है कि जब सरकार के निर्देशानुसार व दावों अनुसार पात्र लोगों की सुनवाई अधिकारी नही करते। उन्हे राहत मिलती नही और तय गाईडलाईन अनुसार उन्हे कोई सूचना नही मिलती है, फिर परिवार पहचान पत्र परेशान पत्र बनकर रह गया। पोर्टल सिस्टम आमजन के लिए जी का जंजाल बन चुका है।    

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