हिसार और हांसी में सम्मान समारोह से हो चुकी शुरुआत-अब झज्जर, भिवानी व चरखीदादरी के बाद दूसरे जिलों में भी जाएंगे

हांसी में भी बागी तेवर बोले प्रदेश में कानून व्यवस्था चरमराई यही हाल रहा तो विधानसभा चुनाव में नुकसान होगा

दो चाहत टूटी, तीसरी को लेकर कसमकस 

क्या बीजेपी को ‘राम-राम’ कह देंगे ‘राव राजा’?, कांग्रेस छोड़ते समय भी ऐसे ही ‘तल्ख़’ थी बयानबाजी

अशोक कुमार कौशिक 

क्या हरियाणा के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह बीजेपी से नाराज हैं? यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि राव इंद्रजीत सिंह ने हिसार में एक कार्यक्रम में कहा है कि हरियाणा के लोग इस बात से निराश हैं कि उन्हें (राव इंद्रजीत सिंह को) इस बार भी मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया गया। राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि वह भारत के इतिहास में अकेले ऐसे नेता हैं जो पांच बार राज्य मंत्री की कुर्सी संभाल चुका है।

अहीरवाल में अपना खासा प्रभाव रखने वाले केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह अब पूरे प्रदेश के दौरे करने की तैयारी में हैं। शनिवार को हिसार और हांसी से इंसाफ मंच के माध्यम से उनके इस अभियान की शुुरुआत भी हो चुकी है। हालांकि, इन कार्यक्रमों को सम्मान समारोह का नाम दिया गया है, लेकिन कार्यक्रमों में राव के समर्थक खुलकर मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोकने को लेकर नारे लगा रहे हैं। कहीं पर यादव सभा कार्यक्रम कर रही है तो कहीं पर इंसाफ मंच के बैनर भी दिख रहे हैं। इधर, राव के समर्थक खुलकर इस बात को लेकर नारे लगा रहे हैं कि वह पूरे प्रदेश का दौरा करें और मुख्यमंत्री के पद पर ‘दावा’ ठोकें। राव इंद्रजीत सिंह खुद भी सीएम बनने की ‘इच्छा’ जता चुके हैं। उधर, भाजपा राव के कार्यक्रमों पर टकटकी लगाए हुए है।

दरअसल, राव का अहीरवाल के साथ-साथ दक्षिण हरियाणा की कई विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। लोकसभा चुनाव में राव को सबसे अधिक भितरघात का सामना करना पड़ा था और उन्होंने यह कह भी दिया था कि भाजपा के भरोसे वह हार गए थे, ये तो उनके खुद के समर्थकों ने उन्हें जिताया है। इसी बहाने अब राव के अलग-अलग हलकों में सम्मान समारोह हो रहे हैं। वह कार्यकर्ताओं का धन्यवाद कर रहे हैं और भितरघात वालों को सबक सिखाने की तैयारी में हैं। इसके साथ एक बड़ा सवाल यह भी खड़ा हो रहा है क्या ‘राव राजा” भाजपा को ‘राम-राम’ तो नहीं कह देंगे। कांग्रेस छोड़ने से पूर्व उनकी ऐसी ‘तल्ख़’ बयानबाजी थी।

सूत्रों की मानें तो एक तो राव चाहते हैं कि अहीरवाल में उनके समर्थकों को टिकट मिले, दूसरा जिन भाजपा नेताओं ने भितरघात किया है, उनको टिकट न मिल सके। पिछले दस साल से राव अहीरवाल में अपनी बेटी को छोड़कर अन्य समर्थकों को टिकट दिलाने में कामयाब भी रहे हैं। अब राव के गुरुग्राम, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी के साथ-साथ भिवानी, हिसार और झज्जर में कार्यक्रम प्रस्तावित हैं। इनके बाद इंसाफ मंच या फिर उनके समर्थकों द्वारा उत्तरी हरियाणा में भी कार्यक्रमों के प्रस्ताव हैं। सूत्र बताते हैं यदि भाजपा ने उनकी बात नहीं मानी तो वह अपने समर्थकों को निर्दलीय के रूप में मैदान में उतार सकते हैं।

इस बार आजाद लड़ सकती हैं आरती राव 

दरअसल, राव इंद्रजीत सिंह पिछले दस साल में दोनों बार अपनी बेटी आरती राव को विधानसभा का टिकट नहीं दिला पाए हैं। इस बार उनको उम्मीद है कि भाजपा टिकट देगी। आरती राव कोसली, अटेली, बादशाहपुर तीनों में से किसी एक विधानसभा सीट पर टिकट चाह रही रही हैं। हालांकि, अभी तक भाजपा की ओर से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। ऐसे में सूत्रों का दावा है कि आरती राव इस बार चुनाव जरूर लड़ेंगी। अगर भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वह आजाद उम्मीदवार के तौर पर भी ताल ठोक सकती हैं। इससे पहले आरती राव सार्वजनिक मंच पर यह ऐलान कर चुकी हैं कि वह चुनाव जरूर लड़ेंगी।

हांसी में फिर बागी सुर

राव इंद्रजीत सिंह ने हांसी की अनाज मंडी धर्मशाला में कहा कि हरियाणा में कानून व्यवस्था चरमराई हुई है। वह इस मामले में गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर कानून व्यवस्था को ठीक करवाने का काम करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो विधानसभा चुनाव में नुकसान होना लाजमी है।

राव इंद्रजीत हांसी में अनाज मंडी धर्मशाला में मंडी एसोसिएशन की ओर से आयोजित सम्मान समारोह में लोगों को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान मंच पर कैबिनेट मंत्री बनवारी लाल व सांसद धर्मबीर सिंह मौजूद रहे। मंच को संबोधित करते हुए व्यापारी नेता रामअवतार तायल ने भाजपा की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि मंत्री जी, आप सीएम से बात कर कानून व्यवस्था ठीक करें अन्यथा भाजपा का सूपड़ा साफ होना निश्चित है।

प्रदेश में कानून व्यवस्था फेल हो चुकी है। आए दिन व्यापारियों से खुलेआम फिरौती मांगी जा रही है और गोलियां चलाई जा रही हैं। सरकार उसे रोकने में नाकाम साबित हो रही है। तायल ने कहा कि जिस दौरान हरियाणा के सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा थे और आप केंद्रीय मंत्री थे उस समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने गुंडागर्दी का खात्मा करने का काम किया था।

पार्टी की हवा में तो ऐरा गैरा नत्थू खैरा भी बन जाता है विधायक : राव इंद्रजीत

हांसी के ही केसी फार्म में भी राव इंद्रजीत का सम्मान समारोह आयोजित किया गया। यहां उन्होंने कहा कि पार्टी की हवा में तो ऐरा गैरा नत्थू खैरा भी विधायक बन जाता है। जो विधायक अपनी ताकत को निजी स्वार्थ के लिए प्रयोग करते हैं, उन्हें चुनाव में ठोकर लगनी चाहिए। यदि प्रदेश में तीसरी बार भाजपा की सरकार बनानी है तो अच्छे लोगों को टिकट मिलनी चाहिए।

सीएम की कुर्सी पर है टकटकी

हरियाणा की राजनीति में बीते कई सालों से यह चर्चा आम है कि राव इंद्रजीत सिंह की नजर सीएम की कुर्सी पर है। बीते साल एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में राव ने कहा था, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि हमारे क्षेत्र (दक्षिण हरियाणा) में लोगों ने मुख्यमंत्री बनाए और बिगाड़े हैं। 2014 में अगर हमारे लोग एकजुट नहीं हुए होते तो बीजेपी सत्ता में ही नहीं आती। हमारे समर्थकों ने विरोध किया कि खट्टर के साथ खड़ा होना गलत है, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी और खट्टर को सीएम बना दिया। मेरी सीएम बनने की इच्छा थी और लोगों की भी यही भावना थी। लेकिन जब सरकार बनी तो लोगों को लगा कि उनके नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया लेकिन यह पार्टी का फैसला था और हमें इसका पालन करना था।’ इससे यह साफ होता है कि राव इंद्रजीत सिंह हरियाणा का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं।

गुटबाजी की बात स्वीकार की

राव इंद्रजीत सिंह ने इस बात को भी स्वीकार किया कि बीजेपी में गुटबाजी है। उन्होंने कहा कि वह 34 साल तक कांग्रेस में रहे हैं, वहां गुटबाजी थी और बीजेपी में भी गुटबाजी है। राव इंद्रजीत सिंह को लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी गुटबाजी का सामना करना पड़ा था। अहीरवाल क्षेत्र में भाजपा के कई बड़े नेता राव इंद्रजीत सिंह के चुनाव प्रचार से बिल्कुल दूर दिखाई दिए थे। राव ने चुनाव प्रचार के दौरान भी इस बात को स्वीकार किया था और कहा था कि लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी में परिवर्तन होगा और हरियाणा का नक्शा बदलेगा।

सांसद धर्मवीर ने भी मिलाएं सुर में सुर बोले ………. भ्रष्टाचारियों ने अमृत योजना को खराब किया 

सांसद धर्मबीर सिंह ने कहा कि अमृत योजना को भ्रष्टाचारियों ने खराब करने का काम किया है। आज वहीं लोग फायदे में हैं जो नेताओं की हाजिरी मारते हैं। ऐसे लोग अच्छे लोगों को पीछे धकेलने का काम करते हैं। संगठन को मजबूत कर अच्छे लोगों को आगे लाएं। सांसद धर्मबीर ने कहा कि 2029 में वो कोई भी चुनाव नहीं लड़ेगे। परंतु राजनीति नहीं छोड़ेगे। अच्छे लोगों को आगे लाने का काम करेंगे। सूत्र बताते हैं कि वह भी अपने पुत्र को राजनीति में स्थापित करने की चाहत रखते हैं।

राव इंद्रजीत सिंह से पहले भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से बीजेपी के लोकसभा सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह भी कह चुके हैं कि राव को कैबिनेट मंत्री बनाया जाना चाहिए था। हरियाणा में लोकसभा चुनाव के नतीजे भी बीजेपी के लिए खराब रहे हैं। 

हरियाणा की 90 में से 44 सीटों पर बीजेपी आगे रही है जबकि 46 सीटों पर इंडिया गठबंधन। इंडिया गठबंधन में कांग्रेस 42 और आप चार विधानसभा सीटों पर आगे रही है।

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 79 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी लेकिन विधानसभा चुनाव में वह 40 सीटें ही जीती थी। ऐसे में उसके लिए इस बार विधानसभा चुनाव में लड़ाई निश्चित रूप से मुश्किल है।

लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद उनके कथन बड़े मायने रखते है कि उनके चुनाव में बीजेपी कहीं भी नजर नहीं आई। इसके बाद 23 जून को रोहतक की बैठक में उनकी ‘गैर मौजूदगी’ भी चर्चा का विषय रही कि उनका ‘कमर दर्द’ ‘वास्तविक’ था या ‘राजनीतिक’। उस आयोजन में मंच के पीछे लगे बैनर पर राव इंद्रजीत की फोटो तक लगी हुई थी लेकिन किसी भी नेता ने उनका नाम लेना तो दूर यह बताने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई की राव इंद्रजीत सिंह किस कारण से इस आयोजन में नहीं पहुंच पाए।

राव इंद्रजीत सिंह की पीड़ा के कई कारण है। इस बार चुनाव बड़ी मुश्किल से जीत पाए। चुनाव प्रचार में भाजपा संगठन उनके साथ कहीं नजर नहीं आया। इसलिए परिणाम आते ही उन्होंने जीत का श्रेय अपने समर्थकों को दे दिया। विधानसभा चुनाव में दक्षिण हरियाणा से भाजपा को मजबूत करने की रणनीति के तहत हाई कमान राव को केंद्र में बाद ‘ओहदा’ देगी इसकी पूरी संभावना थी जो उस समय टूट गई जब राव को केंद्रीय राज्य मंत्री स्वतंत्र परिवार के रूप में तीसरी बार रखा गया। जबकि इस बार कैबिनेट में ऐसे नेताओं को लिया गया जिनकी उम्र ही राव इंद्रजीत सिंह की राजनीतिक यात्रा के बहुत कम थी। वो पिछले 50 सालों से राजनीति में है। जिसमें वह छह बार सांसद और तीन बार विधायक रह चुके हैं। 

हरियाणा में उनके प्रोफाइल का कोई बड़ा नेता नहीं है। इसके बावजूद भाजपा ने उनके तौर तरीकों को एक दायरे में लाकर यह जता दिया कि संगठन से बड़ा कोई नहीं है। उनकी नजर में राव की राजनीति 2013 में पार्टी ज्वाइन करने के बाद में 10 साल पुरानी है। भाजपा के लोगों का कहना है की राव इंद्रजीत सिंह में साहस नहीं है कि वह भाजपा को छोड़ दे केवल अपनी पुत्री के टिकट के लिए ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं। भाजपा ने राव इंद्रजीत सिंह को एक दायरे में ‘बांध’ दिया है, जिससे वह छटपटा रहे हैं और ‘रामपुरा हाउस’ की ‘धमक’ को फिर से ‘कायम’ करने में जुटे हैं। वह मोदी परिवार का ‘मुखौटा’ उतार फिर से रामपुरा हाउस की ‘तूती’ स्थापित करने के प्रयास में दिखते हैं।

‘राव राजा ‘ की राजनीति का धर्म संकट बेटी आरती राव का राजनीति में अभी तक स्थापित नहीं होना है। पिछले 10 साल भाजपा के भरोसे टिकट में गुजर गए। इस बार भी तस्वीर साफ नहीं है। इस बार वह भाजपा के भरोसे नहीं रहेंगे। इसलिए ऐलान भी कर चुके हैं की आरती हर हाल में चुनाव मैदान में उतरेगी चाहे पार्टी टिकट दे या ना दे। 

यहां यह सवाल खड़ा होता है कि यदि भाजपा राव के कहने से आरती को टिकट देती है तो पार्टी के भीतर भूचाल आ जाएगा। परिवारवाद के खिलाफत करने वाली भाजपा खुद अपने एजेंडे में घिर जाएगी। ऐसे में अनेक नेताओं की संताने भी दावेदारी में आ जाएंगे जिसे कंट्रोल कर पाना आसान नहीं होगा। 

राव की ‘पीड़ा’ का एक कहानी यह भी है कि उनके समर्थकों को ‘दरकिनार’ किया जा रहा है। नायब सिंह सैनी मंत्रिमंडल में उनके समर्थक ओम प्रकाश यादव जो मनोहर लाल मंत्रिमंडल में मंत्री थे को हटाकर उनके विरोधी डॉक्टर अभय सिंह यादव को मंत्री बनाया गया।

राव का ‘अतीत’ हमेशा पार्टी और सत्ता में रहकर ‘बगावत’ का रहा 

ऐसा नहीं है कि राव इंद्रजीत सिंह भाजपा में आने के बाद ही ऐसे हुए हैं। 2013 से पहले कांग्रेस में रहकर उनकी सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से नहीं बनी, वहां टकराव होता रहा। इससे पहले जाए तो मुख्यमंत्री रहे भजनलाल से भी राम-राम ठीक नहीं थी। अहीरवाल की जनता भी हैरान है कि आखिर यहां से लगातार जीतने और सत्ता में रहने के बावजूद राव की आखिर किसी पार्टी और नेता से क्यों नहीं बनी? यह उनका ‘अहम’ था कि केवल ‘राजवंश’ के अलावा कोई दूसरा अहीर नेता ‘उभर’ कर उनके ‘वर्चस्व’ को चुनौती ने दे दे। इसी वजह से यह क्षेत्र विकास में पिछड़ता चला गया। 

भाजपा में राव के खिलाफत सबसे ज्यादा 

देखा जाए तो मौजूदा स्थिति में हरियाणा में राव इंद्रजीत सिंह एकदम अलग-अलग पड़े हुए हैं। सीएम के बाद केंद्रीय मंत्री बने मनोहर लाल से उनकी बोलचाल में मिठास गायब रही। मौजूदा सीएम नायब सिंह सैनी से भी ज्यादा मधुर संबंध नहीं है। भाजपा की ताकत और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव व डा. सुधा यादव को अपना प्रतिद्वंद्वी मानकर पहले से ही दूरियां बनाकर चल रहे हैं। गोदबलाहा (नांगल चौधरी) से लेकर डूंडाहेड़ा तक ‘दमदार’ नजर आ रहे नेता भी उनके ‘धुर विरोधी’ हैं। जिनमें पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह, राज्य सिंचाई मंत्री डॉ अभय सिंह यादव, पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास, पूर्व चेयरमैन अरविंद यादव, पटौदी विधायक सत्य प्रकाश जरावता, पूर्व डिप्टी स्पीकर संतोष यादव, मुख्यमंत्री के पूर्व ओएसडी जवाहर यादव विशेष तौर पर शामिल है। अन्य संगठन के पदाधिकारीयों की संख्या अलग है।

चुनाव में अगर विरोधियों को टिकट मिली तो वो हर हालत में उन्हें हराने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह उनकी राजनीति का तौर तरीका रहा है कि वह अपने विरोधियों को खत्म करने के लिए तमाम मर्यादाओं को पार कर जाते हैं। यही उनकी सफल राजनीति का मजबूत आधार भी रहा है। यह अलग बात है कभी-कभी उनको इस तरह के मामले में सफलता नहीं मिलती। नांगल चौधरी विधानसभा चुनाव तथा नारनौल नगर परिषद चेयरपर्सन का चुनाव इसका उदाहरण है।

कुल मिलाकर राव इंद्रजीत सिंह के खिलाफ ऐसे तमाम सबूत इस बात की गवाही दे रहे हैं कि उनका भाजपा से मन ‘उछट’ चुका है जबकि एक भी ऐसा दावा या साक्ष्य सामने नजर नहीं आ रहा। मुख्यमंत्री की कुर्सी व केंद्रीय मंत्री न बनाए जाने का ‘मलाल’ की दो ‘चाहत’ टूटने के बाद बेटी को राजनीति में स्थापित करने को ‘कवायद’ हो रही है।

राव भाजपा में लंबे समय तक रहने का इरादा बना चुके। यही स्थिति कांग्रेस छोड़ने से पूर्व थी।

हरियाणा में लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए एक बड़े झटके की तरह हैं। बीजेपी को अगर हरियाणा में फिर से सरकार बनानी है तो उसे सभी बड़े नेताओं को एक मंच पर लाना होगा लेकिन राव इंद्रजीत सिंह और उनके समर्थकों का रुख दिखाता है कि वे राव को कैबिनेट मंत्री नहीं बनाए जाने की वजह से निराश हैं।

बीजेपी को हरियाणा में जाट बेल्ट वाली सीटों- रोहतक, सोनीपत, हिसार में हार मिली है। ऐसे में पार्टी को दक्षिणी हरियाणा के दिग्गज राजनेता राव इंद्रजीत सिंह को मनाना होगा और पूरी ताकत के साथ चुनाव में उतरना होगा वरना विधानसभा चुनाव में उसकी राह मुश्किल हो सकती है क्योंकि लोकसभा चुनाव के आंकड़े भी इसी ओर इशारा करते हैं।

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