“स्मृतियों की चौखट पर: मनोज कुमार और सुमेधा शर्मा का भावनात्मक मिलन”

मनोज कुमार के साथ वैद्य जी की विरासत की खोज: सुमेधा शर्मा से वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक की एक मुलाक़ात

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र : कुरुक्षेत्र की शांत गलियों में स्थित एक सादगीभरा घर, जहां कभी वैद्य पण्डित कृष्ण दत्त शर्मा की अनुभवी उँगलियों से जड़ी-बूटियों की सौंधी महक उठती थी – उसी आँगन में एक भावनात्मक मुलाक़ात हुई। वर्षों पुरानी स्मृतियाँ जैसे दीवारों पर टँगी हों, और हर कोना कुछ कहने को बेताब हो।

मनोज कुमार, जिन्होंने वैद्य जी के सान्निध्य को निकट से जिया, उस घर की देहरी पर रुके तो समय जैसे ठहर गया। वर्षों पुरानी एक तस्वीर की मानिंद, भावनाएँ एक-एक कर सामने आने लगीं। सादे कमरे में रखी दो कुर्सियाँ, एक मेज़ और बीच में बैठी सुमेधा शर्मा – वैद्य जी की दोहती – जिनकी आँखों में आज भी अपने नाना की गरिमा, सरलता और सेवा की चमक दिखती है।

सुमेधा शर्मा ने जब वह फ़्रेम आगे बढ़ाया जिसमें कुछ पुरानी तस्वीरें और समाचार पत्रों की कतरनें सजी थीं, तब वह क्षण किसी साधारण दस्तावेज़ का नहीं, बल्कि भावनाओं के एक धरोहर का हो गया।

तस्वीरों में वैद्य जी परिवार के साथ खड़े हैं – उनका स्नेहिल मुस्कान, पीछे सजी हुईं घर की पुरानी परदें, और दाईं ओर खड़ा एक बालक – वही मनोज कुमार, जिनके लिए यह मुलाक़ात एक पुनर्स्मरण बन चुकी थी।

“हर मौसम में वैद्य जी के पास लोगों की भीड़ लगी रहती थी,” सुमेधा ने मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन वे कभी थकते नहीं थे। हर मरीज़ के लिए उनके पास समय, ध्यान और अपनापन था।”

मनोज कुमार ने याद किया कि कैसे उन्होंने वैद्य जी को रोगियों के नब्ज़ पर हाथ रखते हुए देखा – बिना किसी आधुनिक मशीन के, सिर्फ अनुभव और आत्मविश्वास से इलाज करते हुए।

“उनकी हथेलियों में जादू था,” उन्होंने कहा। “और शायद उनकी सबसे बड़ी औषधि थी — उनकी ममता।”

इस बातचीत में केवल बीते समय की गूंज नहीं थी, उसमें भविष्य की ओर संकेत भी था — उस विरासत को संजोने का, उसे आगे ले जाने का।

सुमेधा की आँखों में अपने नाना के प्रति श्रद्धा,और मनोज कुमार की स्मृतियों में उनके साथ बिताए गए सरल लेकिन गहरे क्षण – दोनों ने मिलकर उस दिन को एक आत्मिक पर्व में बदल दिया।

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