कहा: उसका एक एक पल सेवा, प्रेम और समर्पण में बीतता है।
— मन इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है : परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी
कहा: मन हमें सत्य से हटा कर असत्य में फंसाता है।
दिनोद धाम जयवीर सिंह फौगाट,
23 जून, – सन्त किसी के आश्रित नहीं होते बल्कि सम्पूर्ण जगत सन्त पर आश्रित रहता है। सन्त तो जो चाहे कर सकते हैं। वे सेवा भी भक्ति के पिपासु से ही लेते हैं। जिसके हृदय में कपट है वो उनके वचन को नहीं परख सकता। सत्य को जानने के लिए हृदय को भी सच्चा बनाना पड़ेगा। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। हुजूर महाराज जी ने कहा कि पूरा संसार ही माया के फेर में उलझा हुआ है। माया नाम ही मृगतृष्णा का है। मृगतृष्णा का अंत सन्तो की शरणाई से ही हो सकता है। परमात्मा वो हीरा है जिसके बाहर माया ने अनेको ताले लगा रखे हैं। इन तालों की चाबी केवल सतगुरु के पास है और चाबी केवल गुरुमुख को ही मिलती है। अब सवाल यह कि गुरुमुख की पहचान कैसे हो। गुरुमुख वो है जो अपने मन की बजाए गुरु के वचन पर आश्रित हो।गुरुमुख गुरु के वचन पर संशय नहीं करता। उसका एक एक पल सेवा, प्रेम और समर्पण में बीतता है।
गुरु महाराज ने फरमाया कि गुणों का प्रवाह एक या दो दिन का नहीं होता बल्कि यह तो जीवन भर की परीक्षा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एक दिन के त्याग बलिदान के कारण महात्मा नहीं बने बल्कि जीवन भर के आदर्शों से महात्मा बनें। कितने उधाहरण भरे पड़े हैं संसार में। भक्त प्रह्लाद, मीरा बाई, रविदास, सैन भगत एक दिन के परोपकार या परमार्थ से भक्त नहीं बने बल्कि जीवन भर के लिए उन्होंने इस मार्ग को चुना। हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि जीवन के लक्ष्य को पहचानो। जब अच्छा करने से ही अच्छा होना है तो किसी का बुरा क्यों सोचे। अपने लिए नही औरों के लिए जीना सीखो। अपने स्वार्थ के लिए हम इंसान तो क्या प्रकृति को ही अपना दुश्मन बना बैठे। हम कितने कृतघ्न है जो सब कुछ देने वाले परमात्मा को भी भुला बैठे हैं। ये मन इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है क्योंकि ये हमें सत्य से हटा कर असत्य में फंसाता है। सुलझाने वाले रास्ते से हटा कर सारी उलझाने वाली बातों में फंसाता है। मनुष्य का चौला मिला है तो इसके कर्तव्यों को भी निभावो। अपना बर्ताव सुधारो। खुद को ठीक कर लो सब ठीक हो जाएगा।