कहा: गुरु से बाजी लगाओ तो तन मन धन की बाजी लगाओ

दिनोद धाम जयवीर सिंह फौगाट,

30 जून – सारी चीज बेशक भूल जाओ परन्तु परमात्मा के नाम को कभी ना भूलो क्योंकि दुनियादारी की सारी चीजें उलझाने वाली हैं लेकिन प्रभु का नाम इन सारी उलझनों को सुलझाने वाला है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने कहा कि जिस प्रकार लकड़ी में आग है लेकिन बिना बार बार रगड़े लकड़ी से अग्नि नहीं फूटती वैसे ही हमारे अंतर में ही परमात्मा का नाम है लेकिन बिना बार बार अभ्यास किये वो भी प्रगट नहीं होता। जैसे बिना दूध को मथे मखन्न नहीं निकलता वैसे ही बिना मंथन के परमात्मा के दर्शन भी नहीं होते।

गुरु महाराज जी ने फरमाया कि नाम का सुमिरन भक्ति की पहली पीढ़ी है। चिंतन मनन और सुमिरन तीन अवस्थाएं हैं। जाप को अजपा में तब्दील करने के लिए तीनो अवस्थाओं से निकलना पड़ता है। हद से अनहद में प्रवेश आपकी लग्न पर आश्रित होता है। हमारी रूह की खुराक तो इनसे भी आगे है। रूह का ठिकाना तो जाप अजपा हद और अनहद से परे हैं। रूह को रास्ता सतगुरु दिखाता है। सतगुरु को खोजो। उस खोज के लिए उठाया गया एक एक कदम यज्ञ के समान है। एक एक पल कीमती है इसको निष्फल मत करो। हुजूर ने कहा कि जिस दिन और जिस पल आपको सत्संग मिलता है, सन्त सतगुरु का दर्शन होता है केवल वहीं घड़ी काम की है बाकी तो दुनियादारी के काम हैं। अपने मन पर शैतानी शक्तियों का कब्जा मत होने दो। यदि एक बार आप पर काल हावी हो गया तो समझो आप उसके जाल में उलझ गए। काल आपको परमात्मा से गाफिल करेगा। विषय वासनाओ की खुराक देगा। इसी खुराक में फंस कर आप उस चीज से हर पल दूर होते चले जाओगे जिसको पाने के लिए आप इस यौनि में आये थे।

हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि सच्चाई के मार्ग पर चलने वालों का तो सब कुछ ही सत्संग से बनता है। सत्संग ना केवल आपका जीवन बनाता है बल्कि आप से जुड़े हुए दूसरे जीवो का भी जीवन सुधारता है। जिस प्रकार डॉक्टर का लड़का डॉक्टरी, किसान का बेटा किसानी, बढई की सन्तान बढ़ईगिरी स्वतः सीख जाता है वैसे ही अच्छे सत्संगी की सन्तान भी स्वतः सत्संग वचनों को सीख जाती है। अगर आपके सत्संग का असर आपकी सन्तान पर नहीं आया तो समझो आप सत्संगी होने का केवल ढोंग ही कर रहे हो। गुरु महाराज जी ने कहा कि जो गुरु से द्रोह करता है, घात करता है उनसे काल स्वंय ही उत्पात करता है और जो गुरु को मनुष्य रूप समझता है वह इंसान समझो आत्मघात कर रहा है। गुरु तो आपकी मलिनता को धोती है। गुरु से बाजी लगाओ तो तन मन धन की बाजी लगाओ। जैसी आपकी भावना होगी वैसा ही फल आपको गुरु दे देगा। ये केवल गुरु समझता है कि किस जीव से क्या काम लेना है। जिस जीव का अपने गुरु पर विश्वास है उसे भजन करने की भी आवश्यकता नहीं है।

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