भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने खुद को मजबूत करने के चलते कांग्रेस को रसातल में तो नही पहुंचा दिया

ऋषिप्रकाश कौशिक

कभी कांग्रेस का कोर वोटर रहे ब्राह्मणों के साथ पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग तो भूपेंद्र हुड्डा ने पहले ही एक वर्ग विशेष को बढ़ावा देने के पार्टी से दूर कर दिया था अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जाट नेताओं की टिकटों पर कैंची चलावाकर उनको भी कांग्रेस से हटाने का प्रयास किया गया। कांग्रेस के विरोधी नेताओं ने हुड्डा पर सीधा आरोप लगाकर उनको कांग्रेस के खात्में की सुपारी लेने का आरोप लगा दिया है। कांग्रेस के नेताओं के साथ कांग्रेस के समर्थक भी इस बात से आहत है कि हाईकमान आखिर हुड्डा के किस प्रेसर में काम कर रहा है।

कांग्रेस से जुड़े लोगों का कहना है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस के लिए नही भाजपा के लिए काम कर रहा है। उन्होंनें लोकसभा चुनाव से पहले इनेलो को गठबंधन में शामिल न करवाने के लिए जिस प्रकार का काम किया वो किसी से छुपा नही है। उन्होंनें कहा यदि आज कांग्रेस का गठबंधन आप पार्टी की अपेक्षा इनेलो से होता और कांग्रेस की सभी सीटें सभी की सहमति से बटती तो कांग्रेस आज प्रदेश में दस की दस सीटें जितने का काम करती लेकिन हुड्डा की हठधर्मिता ने कांग्रेस की सारी सीटों पर संकट मंडराने का काम कर दिया है। बता दे कि लोकसभा चुनाव में सिरसा सीट ही ऐसी है जिसमें कुमारी सैलजा का टिकट दिया गया है और उसके पीछे का भी यही रणनीति रही है कि श्रुति की टिकट कटवाकर उसको पार्टी छोडऩे का मजबूर कर दे और सैलजा को भी गुटबाजी के चलते चुनाव हरवा कर अपना रास्ता साफ कर लिया जाये। प्रदेश में लोकसभा चुनाव के बाद ही विधान सभा के चुनावों का आगाज हो जायेगा और अबकी बार एसआरके गुट भी अपनी मुख्यमंत्री की दावेंदारी पेश करने वाला है लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा किसी भी कीमत पर यह दावेदारी नही छोडऩा चाह रहे और इसी दावेदारी को लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने लोकसभा की टिकटों में ही इस चक्रव्यूह की रचना की है।

प्रदेश की नौ सीटों पर जिसमें गठबंधन की सीट कुरूक्षेत्र भी शामिल है वहां पर नामाकंन के समय भूपेंद्र सिंह की उपस्थिती और सिरसा सीट पर सैलजा के नामांकन के समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नदारद रहना साफ बता रहा है कि सैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा भले ही एक पार्टी में हो लेकिन दोनों ही एक दूसरे का पत्ता साफ करने का काम करने वाले है। वहीं आज भिवानी महेंद्र गढ़ सीट पर राव दान सिंह के नामाकंन में जिस प्रकार किरण चौधरी ने दूरी बनाने का काम किया तो यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि राव दान सिंह को चुनाव में किरण चौधरी से कोई मदद की कोई आशा नही है और न ही वे किरण चौधरी को भाव देकर अपने आका भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नाराज करने का कोई काम करना चाहते। इन सबके बीच बांगर वाले चौधरी भले ही पुराने उदाहरण देकर अपने बेटे बृजेंद्र सिंह को कांग्रेस से मुख्यमंत्री बनाने की बात कहकर अपने कार्यकर्ताओं को जोडक़र रखने का प्रयास कर रहे हो लेकिन हुड्डा की चाल में फंस कर वो भी हरियाणा की राजनीति से बाहर होते दिखाई दे रहे है।

खास बात यह होने वाली है कि अब कांग्रेस में अपना भविष्य तलाश कर रहे एसआरके गुट के नेताओं के साथ बांगर वाले चौधरी क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा के इन मंसूबों का सफल होने देंगें। कांग्रेस में किरण चौधरी से जुड़े एक बड़े नेता ने रोहतक लोकसभा में दीपेंद्र को हराने के लिए अपने समर्थकों से संपर्क साधने का काम शुरू कर दिया है। यह तो भविष्य ही तय करेगा कि हुड्डा ने अपनी मनमानी चला कर कांग्रेस की सुपारी ली है या एसआरके गुट के हासिये पर पहुंचा कर एक रोहतकी सौ कौतकी वाली कहावत को चरितार्थ करने का काम किया है।

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