कहा: भक्ति दिखावे की नहीं है; जैसे फूल खिलने से खुशबू स्वतः फैलने लगती है, वैसे ही भक्त की करनी स्वतः प्रगट होती है। — ये दुनिया एक सराय है, यहां सारे मुसाफिर श्वासा रूपी दौलत लेकर आये हैं : कंवर साहेब
कहा: घरों में प्यार प्रेम का माहौल बनाओ, माँ बाप की इज्जत बनाये रखो; इंसानी नियमो के मुताबिक जीवन जीओ
चरखी दादरी/कैथल जयवीर सिंह फौगाट,

07 अप्रैल, सत्संग की पहली सीढ़ी सेवा है तो दूसरी प्रेम है। पहली दो सीढियां चढ़ने वाला ही सतगुरु के हुक्म और मौज को समझ पाता है। जिस प्रेमी को सत्संग से प्रेम होता है वो सत्संग लाभ के लिए सारी दुख तकलीफों को भूल जाता है। सत्संग का पूर्ण लाभ और आनन्द भी प्रत्यक्ष दर्शन से ही होता है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने कैथल के राधास्वामी आश्रम में साध संगत को फरमाए। हुजूर साहब ने फरमाया कि जो जीव अपने चौले (इंसानी जीवन) की सार्थकता को समझ जाता है वही सत्संग की रमज को समझ पाता है। सत्संग को समझने के लिए हमें अपना सामाजिक जीवन सुधारना होगा। आज हमारा सामाजिक दर्शन ही बिगड़ा हुआ है। ना बच्चे माँ बाप की परवाह करते हैं ना माँ बाप बच्चों की नैतिक परवरिश करते हैं। आज युवा नशे की जकड़ में हैं। काम क्रोध का बोलबाला है। ऐसे में भक्ति में हमारा मन कैसे लगेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि पहले हम मानसिक शांति को बनाये ताकि हमारा जगत और अगत सही बने। गुरु महाराज जी ने कहा कि नाम ने तो खण्ड ब्रह्मण्ड को तार दिया फिर हम क्यों नहीं तिरेंगे। कारण केवल एक है कि हमने नाम की ना महता को समझा ना ही इसके मर्म को जाना। नाम संतोष शांति परोपकार का बीज बोता है।

अगर नाम लेकर भी आपकी भटकन नहीं मिटी तो समझो कि आप स्वयं के साथ ठगी कर रहे हैं। सन्त सतगुरु से नाम लेकर भी यदि आपके भरम नहीं मिटे तो मान लेना कि आपकी शरणागति में ही दोष है। हुजूर साहब ने कहा कि महापुरूषो की बानी तो जीव के लिए हर लिहाज से कल्याणकारी है। अगर नाम लेकर नाम की कमाई ही नहीं करोगे तो लाभ कैसे पाओगे। दुनियादारी और सन्तमत एक दूसरे के विपरीत है। दुनियादारी में तो जितने आपके ओहदे बढ़ेंगे उतना ही आपका कद बढ़ेगा लेकिन सन्तो की शरणाई में जितना आप नीचे रहोगे उतना आपका कद बढ़ेगा। लेकिन इस बात को कोई बिरला भागी ही समझ पाता है। परमात्मा का नाम केवल वह जपेगा जिसमें दीनता और प्रेम है। भक्ति दिखावे की नहीं है। जैसे फूल खिलने से खुशबू स्वतः फैलने लगती है वैसे ही भक्त की करनी स्वतः प्रगट होती है। गुरु महाराज जी ने फरमाया कि आपका लेना देना आपके संग चलता है इसलिए मन वचन और कर्म से सही रहो। अपने हृदय को दूषित मत होने दो। वाणी से मीठा बोलो और शरीर से सेवा करो। हुजूर साहब ने कहा कि अगर इतना भी नहीं कर सकते तो कम से कम बुराई से ही बच लो।
ये दुनिया एक सराय है, यहां सारे मुसाफिर श्वासा रूपी दौलत लेकर आये हैं : कंवर साहेब
गुरु महाराज जी ने प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक राजा ने अपने मंत्री से चार सवाल पूछे। पहला कि तीन जन्म का सुखी कौन दूसरा तीन जन्म का दुखी कौन। तीसरा सवाल की वो कौन जिसका अब का जीवन सुखी लेकिन अगत दुखी। चौथा यह कि जिसका अब का जीवन दुखी लेकिन अगत सुखी। मंत्री ने सबसे पहले एक दानी सेठ को बुलाया और कहा कि महाराज इसने पूर्व जन्म में दान पुण्य करके उस जन्म को भी सुखी बनाया और इस जन्म को भी और आज भी यह दान पुण्य करके अपने अगत को भी सुखी बना रहा है। उसके बाद मंत्री ने एक कसाई को बुलाया और कहा कि ये पिछले जन्म के बदकर्मो के कारण उस जन्म में दुखी रहा और अब भी दुखी है और अगत को भी दुखी बना रहा है। तीसरे प्रश्न के जवाब में मंत्री ने वैश्या को बुलाया कि इस जन्म में तो इसके आगे हीरे जवाहरात की लाइन लगी है लेकिन इसके कर्मो के कारण इसका अगत दुखी होगा। अंततः चौथे प्रश्न के उत्तर में मंत्री ने एक भगत को बुलाया और कहा कि महाराज बेशक चारो पहर भक्ति और परोपकार के कारण इसने इस जन्म में सुख ना देखे हो लेकिन इसका अगत बहुत सुखी रहेगा। हुजूर कंवर साहेब जी ने कहा कि सकल जग दुखिया है। सुखी वो है जिसने मन को खाली कर लिया है। उन्होंने अभ्यास पर बल देते हुए कहा कि जैसे दुनियादारी की कला में आप अभ्यास करते करते पारंगत हो गए उसी प्रकार आप भक्ति का अभ्यास किया करो ताकि आपके हृदय में ज्ञान का प्रकाश हो।
गुरु महाराज जी ने कहा कि ये दुनिया एक सराय की भांति है। इस सराय में सारे मुसाफिर श्वासा रूपी दौलत लेकर आये हैं। कोई इस दौलत को व्यर्थ में लुटा कर रोता पिटता जाता है तो कोई इस दौलत की सही कमाई कर हंसता खेलता इस संसार से जाता है। हुजूर साहबे ने कहा कि सामाजिक ताना बाना ठीक करो। घरों में प्यार प्रेम का माहौल बनाओ, माँ बाप की इज्जत बनाये रखो। इंसानी नियमो के मुताबिक जीवन जीओ।