— जन्म तो संतो की संगत के लिए मिला है फिर दुर्जन के संग क्यों जाया करते हो : कंवर साहेब जी

— जन्मदिन की खुशी मत मनाओ : कंवर साहेब जी कहा: खुशी मनाओ तो गुरु की शरण में बिताए दिन की मनाओ, परोपकार और परमार्थ की खुशी मनाओ।

— 200 यूनिट रक्त का दान किया गया।

चरखी दादरी जयवीर सिंह फौगाट,

02 मार्च, दुनिया आवागमन का खेल है, आते हैं जाते हैं। हर रोज़ एक दिन कम करते जाते हैं और खुशी भी मनाते हैं। हैरानी की बात है कि दुनियादारी की और चीजो की बढ़ोतरी पर हमें खुशी मिलती है परंतु जीवन के एक एक दिन कम होने पर भी हम खुशी मना रहे हैं। सन्तो का जन्म और मरण एक जैसा ही है। ये जन्म संतो की संगत के लिए मिला था फिर दुर्जन के संग से इसे क्यों जाया कर रहे हो। जन्मदिवस सांसारिक उमंग या खुशी का दिन तो है लेकिन उससे बढ़कर ये चिंतन का दिन होता है। चिंतन का इसलिए क्योंकि हमारे अनमोल जीवन का एक और वर्ष कम हो चला है। यह सत्संग वचन परम संत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने भिवानी के रोहतक रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में अपने 77वें जन्मदिवस पर साध संगत को फरमाये।

उलेखनीय है कि 2 मार्च को राधास्वामी सत्संग दिनोद के हुजूर कंवर साहेब जी महाराज का जन्मदिवस होता है। संगत इस दिन को बड़े हर्षोउल्लास से मनाती है। इस अवसर पर साध संगत ने हुजूर का जन्मदिवस मनाया बाद में गुरु महाराज जी ने सत्संग फरमाया। सत्संग फरमाते हुए हुजूर ने फरमाया कि दिन प्रतिदिन हमारी सांस घंट रही है इसलिए अपने अगत की चिंता करो। आपको मानुष देह मिली है तो उसके लायक काम भी करो। मत भूलो कि आप जो आज बो रहे हो कल आप वही काटोगे। इंसान होकर इंसानीयत को मत भूलो। इंसान परमात्मा की ही प्रतिकृति है। परमात्मा रूपी साहूकार आपको दी हुई पूंजी को ब्याज सहित वापिस लेगा। अपने सर्वस्व को गुरु को अर्पण कर दो। हुजूर ने कहा कि जीवन तो थोड़ा ही अच्छा है यदि परमात्मा की भक्ति में उसे लगाते हो।

परमात्मा के बाद इंसान का दर्जा आता है लेकिन माया और काल के प्रपंच में उलझा कर इंसान ने अपने आप को सबसे नीचे दर्जे का बना लिया है। मां के गर्भ के उस काल में ना जाने कितनी बार हमने गुहार लगाई होगी कि मुझे बाहर निकालो मैं आपकी भक्ति करूंगा। लकिन जन्म लेते ही उस वचन को भूल गया। उन्होंने कहा कि चार खान के जीव हैं; कोई अंडे से, तो कोई ज़ेर से पैदा होता है, कोई मल से, तो कोई झिल्ली से। लेकिन इस चौरासी लाख जीवों में इंसान सर्वोत्तम है, लेकिन यह उत्तम है तभी जब आप इसके असल मर्म को समझ लोगे। भक्ति के मार्ग को ढूंढ लोगे, भक्ति का मार्ग बहुत कठिन है क्योंकि प्रेम का मार्ग पाने वाले बहुत कम हैं। इस मार्ग पर चलने वाले ना सिर्फ अपना बल्कि औरों का भी कल्याण कर जाते हैं। गुरु जी ने फरमाया कि सन्तो का संग सुंगंधि के संग जैसा है। सन्तो का मार्ग करनी का मार्ग है और करनी के मर्म को वही जान पाता है जो प्रेम का, दया का, सेवा का अर्थ जानता है।प्रेमाभक्ति बिना गुरु के सम्भव नहीं है। दुनिया में आकर हमें दुनियादारी के काम तो करने ही पड़ेंगे लेकिन इनमें फँसो मत, मुख्य कारज परमात्मा की भक्ति को ही बनाओ।

 हुजूर ने कहा कि गुरु की रजा को हर कोई नहीं समझ सकता। गुरु महाराज जी ने अपने गुरु के साथ बिताए अपने अनमोल दिनों की याद ताजा करते हुए कहा कि मैं भी नहीं समझता था। एक बार मैं महर्षि शिवव्रतलाल महाराज जी की कोई पुस्तक पढ़ रहा था कि अचानक मेरे गुरु ने कहा कि ये तेरे समझ में नहीं आएगी, तब मुझे बहुत गुस्सा आया कि खुद तो अनपढ़ है और मुझ पढ़े लिखे को कह रहे हैं कि समझ नहीं आएगी। लेकिन जब मैंने गुरु की संगत बढाई तो मेरी समझ में आया कि मेरे गुरु कितने सही थे। उन्होंने कहा कि गुरु के प्रति एक बार भी विक्षेप आ गया तो आपने बहुत बड़ा पाप कमा लिया।

उन्होंने कहा कि चार अक्षर ज्ञान हमें समझ कम देता है लेकिन अहंकार बहुत बड़ा दे जाता है। ज्ञान अविद्या को ही कहते हैं। ये अविधा ही हमें सन्त सतगुरु से विमुख कराती है। हुजूर ने कहा कि किस बात का अभिमान। बड़े बड़े राजा सेठ साहूकार वैद ज्योतिषी ही नहीं रहे तो हमारी क्या बिसात। कहा कि अभी भी वक़्त है ख्याल कर नहीं तो सब नाश ही होगा। अगर वक़्त बुरा है तो नीची खींच लो क्योंकि ये वक़्त भी एक दिन टल जाएगा। आपकी सज्जनता की परीक्षा ही ये है कि आप कितने सहनशील हो। धरा की तरह बनो। चंदन की भांति बनो जो काटने वाली कुल्हाड़ी को भी अपनी सुगन्ध से सराबोर कर देता है। उन्होंने कहा कि जन्मदिन की खुशी मत मनाओ। खुशी मनाओ तो गुरु की शरण में बिताए गए एक एक दिन की मनाओ। खुशी मनाओ तो परोपकार और परमार्थ की मनाओ। दुसरो को नहीं अपने आप को ठगों।

हुजूर ने कहा कि मैं ये नहीं दावा करता कि मैं महान शिष्यों की श्रेणी में आता हूँ लेकिन मुझे इस बात का फक्र है कि मुझे अपने गुरु से प्रेम करने का उनकी सेवा करने का अवसर इस जीवन में मिला। गुरु जी ने कहा कि तन की गंदगी पानी से और कपड़ो की गंदगी साबुन सोडे से साफ कर लोगे लेकिन रूह के दाग धब्बे बिना गुरु भक्ति और नाम भक्ति के साफ नहीं होंगे। ऐसी रहनी रहो कि मनसा वाचा और कर्मणा किसी को दुख मत दो। हुजूरने कहा कि रहनी हमारी पाप की करनी हमारी दूषित, मां बाप सास ससुर की सेवा हम नहीं करते, बड़े बुजुर्गों का मान हम नहीं करते, भाई भाई का गला काट रहा है, बहन भाई का झगड़ा हो रहा है फिर भी आस करते है हम भक्ति की तो ये आस बेमानी है। जहां कुमति है वहां दुख के अलावा कुछ नहीं होना। सुमति को पैदा करो तभी भक्ति के मार्ग पर चलना शुरू होगा। मेरे जन्मदिवस को मनाना चाहता है वो ये संकल्प लेकर जाए कि सब से मीठा बोलोगे, नीवां होकर चलोगे। खुद से गलती हो जाये तो माफी मांग लो और दुसरो से गलती हो जाये तो माफी दे दो। इस अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया जिसमें 200 यूनिट रक्त का दान किया गया।