घोटाले के आरोपी 3 अधिकारियों को बर्खास्त करेगी सरकार

हरियाणा विधानसभा में गूंजेगा सहकारिता विभाग का घोटाला, विपक्ष घेरने और सरकार बचाव की तैयारी में

सहकारिता विभाग के 100 करोड़ के घोटाले से बदलने लगे बावल विधानसभा के समीकरण

सहकारिता मंत्री पर अभी तक आंच नहीं, मगर उठने लगी इस्तीफे की मांग

श्याम सुंदर सभरवाल राव इंद्रजीत की शरण में

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में सहकारिता विभाग में 100 नहीं 185 करोड़ रुपए का घोटाला है। हरियाणा एंटी करप्शन ब्यूरो के अधिकारी ऐसा इसलिए मान रहे हैं, क्योंकि घोटालेबाज मास्टरमाइंडों ने इससे जुड़ी रिव्यू रिपोर्ट ही गायब कर दी। इसके बाद अब ACB ने अपनी जांच का दायरा बढ़ाते हुए 2005 से जारी हुई ग्रांट पर फोकस करना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल एक्शन मोड में आ गए हैं। मामले में सख्ती दिखाते हुए सीएम ने विभाग के मंत्री डॉ. बनवारी लाल को तलब किया है। हरियाणा के सहकारिता विभाग में लगभग 180 करोड़ के घोटाले को लेकर प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। सहकारिता विभाग के मंत्री डॉ बनवारीलाल का इसमें अभी कोई नाम नहीं आया है मगर उनकी मुश्किलें बढ़ गई।

हरियाणा के सहकारिता विभाग में हुए सौ करोड़ के घोटाले में कार्रवाई करते हुए सरकार बहुत जल्द मुख्य तीन आरोपियों को नौकरी से बर्खास्त करने जा रही है। मंगलवार को हरियाणा के सहकारिता मंत्री डॉ.बनवारी लाल ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाकात करके इस घोटाले के संबंध में रिपोर्ट देते हुए तीन अधिकारियों को नौकरी से बर्खास्त करने की सिफारिश भी की। सहकारिता विभाग में हुए करोड़ों रुपये का घोटाला इसी माह से शुरू होने हरियाणा विधानसभा के बजट सत्र में गूंजेगा। विपक्षी दल कांग्रेस और इनेलो ने इस पर सरकार को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है। उधर, राज्य सरकार ने घोटाले में शामिल आरोपियों के खिलाफ धड़ाधड़ कार्रवाई करके बचाव की रणनीति तैयार की है। हालांकि, बताया जा रहा है कि मनोहर सरकार पिछली हुड्डा सरकार के कार्यकाल 2005 से इस मामले की जांच करा सकती है।

एसीबी को भी आशंका है कि यह घोटाला 2018 से नहीं बल्कि 2005 से चल रहा था। अगर ऐसा हुआ तो कई सेवानिवृत्त अफसरों के साथ पिछले रजिस्ट्रार भी जांच के घेरे में आ सकते हैं।

इसके अलावा इस मामले में एनसीडीसी (नेशनल कोऑपरेटिव डेवलपमेंट कारपोरेशन) के अधिकारी भी संदेह के घेरे में हैं, क्योंकि आईसीडीपी में पूरा पैसा केंद्र से आता है और बकायदा इसके लिए पूरी रिपोर्ट तैयार की जाती है कि किस प्रोजेक्ट पर कितना खर्च किया जाएगा। इसके अलावा पूरी तरह से निगरानी का कार्य केंद्र के अधिकारियों का होता है लेकिन एनसीडीसी के अधिकारियों ने इतने साल बीतने के बाद भी जमीनी स्तर पर कोई जानकारी नहीं ली और एक के बाद एक करोड़ों रुपये इस प्रोजेक्ट में जारी करते रहे।

बिना रिकॉर्ड कैसे होगी जांच

घोटाले का खुलासा होने के बाद एसीबी और सरकार रिकॉर्ड तलब कर रही है लेकिन विभाग के पास काफी संख्या में रिकॉर्ड ही नहीं है। ऐसे में घोटाले की पूरी जांच होना मुश्किल है, क्योंकि अधिकतर स्थानों पर या तो रिकॉर्ड गायब कर दिया गया या फिर खराब हो गया है। पैक्स समितियों से लेकर सहकारी समितियों और जिला स्तर के कार्यालयों से भी रिकॉर्ड गायब है।

नरेश गोयल से अतिरिक्त चार्ज भी छीने

सहकारिता विभाग के अतिरिक्त निदेशक नरेश गोयल से आईसीडीपी के नोडल अधिकारी का चार्ज वापस लेने के बाद उनके संयुक्त रजिस्ट्रार के साथ एडमिन का चार्ज भी ले लिया है। मुख्यालय की ओर से 2005 से ही सभी जिलों में किस जिले में कौन एआर, डीआर से लेकर आईसीडीपी का जीएम रहा है, उनका डाटा भी तैयार कराया जा रहा है।

अभी तक की जांच में यह भी सामने आया है कि घोटाले के मेन मास्टरमाइंड अनु कौशिश और स्टालिन जीत सिंह ने सरकारी पैसा हवाला के जरिए कनाडा और दुबई भेजा है। दरअसल, सहकारिता विभाग में 2005 के बाद 255 करोड़ रुपए सहकारी समितियों को जारी किए गए।

घोटाले में शामिल समितियों ने 185 करोड़ रुपए का खर्च दिखाया, लेकिन पैसा कहां और कैसे खर्च किया, इसकी कोई रिपोर्ट विभाग के पास नहीं है। सहकारिता विभाग में साल 1992 से कई स्कीमें चल रही हैं, लेकिन साल 2005 से पैसा जारी हुआ है। ऐसे में रिकॉर्ड से जुड़े कर्मचारी जांच के दायरे में आ सकते हैं।

एसीबी ने जांच के दौरान हरियाणा के सहकारिता विभाग में करीब सौ करोड़ रुपये का घोटाला बेनकाब किया है। इसमें एक दर्जन से अधिक अधिकारी व कर्मचारी गिरफ्तार हो चुके हैं। इस मामले की जांच में रोजाना नए-नए खुलासे हो रहे हैं। 

तीन अधिकारियों को किया जाएगा बर्खास्त 

मंगलवार को मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाकात के सहकारिता मंत्री डॉ.बनवारी लाल ने कहा कि एसीबी द्वारा अपनी जांच में जिन कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है, उन्हें निलंबित किया जा चुका है। इस घोटाले के तीन मुख्य किरदार सामने आए हैं। जिसके आधार पर सहकारिता विभाग द्वारा तत्कालीन सहायक रजिस्ट्रार अनु कौशिश, डिप्टी चीफ आडिटर योगेंद्र अग्रवाल और सहायक रजिस्ट्रार सहकारी समितियां रामकुमार को नौकरी से बर्खास्त करने की फाइल सरकार को भेज दी गई है। 

बनवारी लाल ने कहा कि इस मामले की जांच एसीबी द्वारा की जा रही है। जांच के चलते ऐसे संकेत मिले हैं कि यह घोटाला वर्ष 2005 से चल रहा था। जिसके चलते एसीबी को इस मामले में विस्तृत जांच के लिए कहा गया है। वर्ष 2005 से लेकर अब तक की जांच में कई नए खुलासे होंगे।

गिरफ्तार अधिकारियों की संख्या 15 पर पहुंची

एंटी करप्शन ब्यूरो ने जिन अधिकारियों को गिरफ्तार किया है, उसमें अब कैथल के जीएम विजय भांभू, मुख्यालय के आडिट आफिसर बलविंदर, डिप्टी चीफ आडिटर योगेंद्र अग्रवाल, जिला रजिस्ट्रार सहकारी समितियां करनाल रोहित गुप्ता, सहायक रजिस्ट्रार सहकारी समिति अनु कौशिश, सहायक रजिस्ट्रार सहकारी समिति रामकुमार, सहायक रजिस्ट्रार सहकारी समिति जितेंद्र कौशिक, सहायक रजिस्ट्रार सहकारी समिति कृष्ण बेनीवाल शामिल हैं। आइडीपी रेवाड़ी के लेखाकार सुमित अग्रवाल, डेवलपमेंट अधिकारी नितिन शर्मा तथा विजय सिंह की गिरफ्तारी की भी गई है। जिन चार निजी लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनमें स्टालिन जीत, नताशा कौशिश, सुभाष तथा रेखा शामिल हैं। स्टानिल जीत की बैन्स इंडिया लिमिटेड के नाम से कंपनी है, जिसकी ब्रांच कनाडा में भी खोल रखी है। घोटाले में सहकारिता विभाग के पांच अधिकारियों को अभी तक निलंबित किया जा चुका है। इनमें महेंद्रगढ़ के एआर (अतिरिक्त रजिस्ट्रार) सुधीर अहलावत, कैथल के एआर जितेंद्र कौशिश और कृष्ण चंद्र शामिल हैं, जबकि अनु कौशिश और रोहित गुप्ता पहले से निलंबित चल रहे हैं। सरकार द्वारा सुमित अग्रवाल को बर्खास्त किया जा चुका है। इनके विरुद्ध एंटी करप्शन ब्यूरो के गुरुग्राम, अंबाला व करनाल थानों में 10 एफआइआर दर्ज की जा चुकी हैं।

धोखाधड़ी का शिकार लोग एसीबी के समक्ष पेश

एंटी करप्शन ब्यूरो की जांच से पूरे सहकारिता विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। अब वे लोग भी धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं, जिनके साथ धोखाधड़ी हुई। यह वे लोग हैं, जिनके नाम पर फर्जी सहकारी समितियां और स्वयं सहायता समूह बनाए गए। उनके नाम पर लोन पांच से 15 लाख रुपये के स्वीकृत हुए, जबकि उन्हें मिले सिर्फ दो से तीन लाख रुपये। ऐसे लोगों को उनके परिजनों को सहकारिता विभाग में सरकारी नौकरियां लगवाने का लालच भी दिया गया, ताकि वे अपने नाम से सहकारी समितियां, सासाइटियां और स्वयं सहायता समूह खुलवाने पर राजी हो सकें।

मुझे नहीं थी पहले कोई जानकारी : बनवारी

सहकारिता मंत्री बनवारी लाल ने कहा कि एसीबी ने जिस तरह से इस मामले की जांच करके रिपोर्ट दी है यह प्रशंसनीय एवं चौंकाने वाला है। विपक्ष के बयानों को खारिज करते हुए बनवारी लाल ने कहा कि उन्हें इस घोटाले के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी। एसीबी की सिफारिश पर विभागीय कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही है।

घोटाले की तपत बनवारी लाल की टिकट तक

हरियाणा के सहकारिता विभाग में लगभग 180 करोड़ के घोटाले को लेकर प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। सहकारिता विभाग के मंत्री डॉ बनवारीलाल का इसमें अभी कोई नाम नहीं आया है। मगर उनकी मुश्किलें बढ़ गई है क्योंकि प्रदेश के साथ साथ उनके गृह क्षेत्र बावल में प्रत्येक व्यक्ति की जुबान पर है कि इतना बड़ा घोटाला बिना मंत्री के संज्ञान में आए नहीं किया जा सकता। यदि मंत्री जी यह कहते है कि मेरे संज्ञान में नहीं था तो उनपर अपने विभाग पर नजर न रखने की बात से नकारा नहीं जा सकता। 

उनके एक पीए द्वारा इस घोटाले में शामिल होना व मंत्री जी को पता नहीं होना लोगों के गले नहीं उतर पा रहा है। जनता में चर्चा है कि सरकार भ्रष्टाचारियों पर जरूर कार्य करेगी मगर अपनी व पार्टी की छवि बचाने के लिए मंत्री पर आंच नहीं आने देगी। मगर यह भी साफ रहेगा कि इस बार उन्हें बावल विधानसभा की टिकट से हाथ धोना पड़ सकता है। 

विरोधियों की सक्रियता बढ़ी

इसी आशंका के चलते अब बावल में अन्य नेताओं की राजनीतिक सक्रियता बढ़ी है, जो इस मौके का फायदा लेना चाहते हैं। राजनीति के फुस्स बम जो दो बार विधानसभा चुनाव हार चुके जजपा नेता श्याम सुंदर सभरवाल फूले नहीं समा रहे हैं। इस मौके को अपने हाथ से न जाने देने के लिए हर सम्भव प्रयास में जुट गए हैं। राजनीति व जंग में सब जायज है वाली कहावत को अपनाते हुए केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का आशीर्वाद लेने पहुंच गए।

जजपा से ज्यादा राव राजा के आशीर्वाद में दम

बावल की जनता सब जानती है कि पिछले 10 वर्षों में सभरवाल ने कभी रामपुरा हाउस की तरफ मुंह करके नहीं देखा अब वो राव को अपना सब कुछ बताते हैं। वाह री राजनीति, लोगों से पता नहीं कब क्या क्या करवा देती है। अब सभरवाल को जनता की याद आने लगी तो रोजाना मंत्री विधायक की तरह लोगों से चाय पर चर्चा व सुख दुख में जाने का शेड्यूल भी जारी कर दिया। लगता है सभरवाल को जजपा नेताओं के आशीर्वाद की जगह राव के आशीर्वाद में ही दम दिखाई दे रहा है। सभरवाल का यह कहना कि अबकी बार बावल विधानसभा जजपा के खाते में जाएगी तो अभी गलत होगा, क्योंकि अभी तक भाजपा एकला चलो की नीति पर मंथन चल रहा है। अगर दोनों पार्टी अलग अलग लड़ती है तब राव भाजपा के उम्मीदवार को ही आशीर्वाद देंगे न कि जजपा उम्मीदवार को, वे पार्टी से हट कर चलने की भूल कतई नहीं करेंगे।

रंगा ने मांगा इस्तीफा 

इधर कांग्रेस से पूर्व मंत्री डॉ एमएल रंगा भी सक्रिय हो गए हैं वे भी इस घोटाले के बाद सहकारिता मंत्री पर लगातार निशाना साध रहे हैं और इस्तीफे की मांग कर रहे है। डॉ एमएल रंगा आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट ले पाएंगे या नहीं ये भविष्य के गर्भ में है। वैसे भी अभी बावल विधानसभा में कांग्रेस का वजूद रेवाड़ी व कोसली की अपेक्षा कम है, एमएल रंगा कांग्रेस का कितना वोट बैंक बढ़ा पाएंगे यह कहना अभी मुश्किल है।

एडवोकेट कमल निम्बल भी सक्रिय 

सहकारिता विभाग के घोटाले का भरपूर लाभ उठाने के लिए भाजपा के अनुसूचित जाति के प्रदेश सचिव एडवोकेट कमल निम्बल भी पूरी तरह सक्रिय हो चुके है। प्रदेश सचिव बनने पर जहां उनका जगह जगह अभिनन्दन किया जा रहा है तो वहीं वे प्रदेश आलाकमान की पसंद भी बने हुए हैं। वे आरएसएस के स्वयंसेवक रहे हैं व पार्टी  के प्रति वफादार है। यदि आलाकमान एक प्रतिशत डा बनवारीलाल की टिकट काटता है तो कमल निम्बल की टिकट पक्की मानी जा सकती है। संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता होने के नाते उन्हें टिकट दिया जा सकता है। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत का आशीर्वाद मिलने में भी कोई परेशानी नहीं हो सकती क्योंकि वे सभी से मिलनसार व स्नेह रखते हैं।

खैर अभी न तो 100 करोड़ के घोटाले पर मंत्री डा बनवारीलाल पर कोई आरोप है और न ही अभी विधानसभा चुनाव हैं। तब तक सभी तस्वीरे साफ हो जाएंगी मगर इन चर्चाओं का दौर अपने चरम पर है।

error: Content is protected !!